Thursday 13 September 2012

बुद्धू बालम


लेखिका : नेहा वर्मा

आज मेरी भाभी कंचन वापस घर आ गई। यहां से पचास किलोमीटर दूर शहर में भैया काम करते थे। मेरे से कोई चार साल बड़े थे। शादी हुये साल भर होने को आया था। भैया शहर में शराब पीने लग गये थे। इसी कारण घर में झगड़े भी होने लगे थे। भाभी की आये दिन पिटाई भी होने लगी थी।

एक बार भाभी ने मोबाईल पर मुझे रात को दस बजे रिंग किया। मैंने मोबाईल उठाया, पर फ़ोन पर चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई दी तो मैंने पापा को बुला लिया। पापा ने फोन को ध्यान से सुना फिर उन्होंने मुझे आदेश दिया कि सवेरे होते ही कार ले कर जाओ और बहू को यहाँ ले आओ।

गांव में पापा की एक छोटी सी दुकान है पर आमदनी अच्छी है। वो सवेरे नौ बजे दुकान पर चले जाते हैं। मैं भाभी को लेकर घर पर आ गया। भाभी मुझे अपना दोस्त समझती हैं। हम दोनों एक ही उम्र के हैं। शाम तक मेरे पास बैठ कर भाभी अपना दुखड़ा सुनाती रही, उसने अपनी पीठ, हाथ व पैर पर चोट के कई निशान दिखाये। ये सब देख कर मुझे भैया से नफ़रत सी होने लगी। मैंने भाभी को जैसे तैसे मना कर उनके चोटों पर एण्टी सेप्टिक क्रीम लगा दी।

अब मेरा रोज का काम हो गया था कि पापा के जाने के बाद उनकी चोटों पर दवाई लगाता था। भाभी का शरीर सांवला जरूर था पर चमकीला और चिकना था। कसावट थी उनके बदन में। जब वो अपनी पीठ पर से ब्लाउज हटा कर दवाई लगवाती थी उनकी छोटी छोटी चूंचियां सीधी तनी हुई कभी कभी दिखाई दे जाती थी। तभी मैंने भाभी की चूंचियों पर भी चोट के निशान देखे।

"भाभी, आपके तो सामने भी चोटें हैं ... !" मैंने हैरत से कहा।

"देख भैया, तुझसे क्या छिपाना ... ये देख ले ... "

कंचन ने झिझकते हुये सामने से अपनी छाती दिखाई ... चूंचियों और चुचूकों पर खरोंच के निशान थे।

"भाभी प्लीज ऐसे मत करो !" मैंने तुरन्त पास पड़ा तौलिया उनकी छाती पर डाल दिया। उसकी आंखों से आंसू टपक पड़े। पर भाभी के चोटों के निशान मेरे मन में एक नफ़रत भरा बीज बो गये।

"नहीं देखा जाता है ना ... वो आपकी तरह नहीं हैं ... आप तो मेरा कितना ख्याल रखते हैं, दवाई लगाते हैं ... अभी तो आपने मेरी पिछाड़ी नहीं देखी है ... कितना मारते थे

वो यहाँ पर !"

"बस भाभी बस ... अब बस करो ..."

भाभी ने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया। अनायास ही मेरे हाथ उसके बालों पर चले गये और उन्हें सहलाने लगे। मेरा प्यार पा कर वो मुझसे लिपटने सी लगी। मैंने एक हल्का सा चुम्मा उसके गालों पर ले लिया ... वो अपनी आंखें जैसे बन्द करके प्यार का आनन्द लेने लगी।

"भैया मेरी छाती पर दवाई लगा दो ...!"

"क्या छाती पर ?... न ... न ... नहीं ... यहाँ नहीं ... !"

"तो क्या हुआ ... दर्द है ना मुझे ... प्लीज !"

मैंने उसे घूर कर देखा ... पर उसकी आंखों में केवल प्यार था। मैंने उसे लेटा दिया और तौलिया हटा कर उसकी चूंचियों की तरफ़ झिझकते हुये हाथ बढ़ाया ... और दवाई लगा दी। मुझे अहसास हुआ कि उसके चुचूक कड़े हो गये थे। छोटी छोटी चूंचियां कुछ फ़ूल गई थी। मेरा मन भी डोल सा उठा, पर मैंने फिर से उस पर तौलिया डाल दिया। भाभी ने मुझे प्यार से बिस्तर पर लेटा लिया और मेरी कमर पर में एक पांव लपेट कर जाने कब सो गई। मुझे नहीं पता था कि यह उसके दिल की पुकार है कि मुझे बाहों में लेकर खूब प्यार करो। वो प्यार की भूखी थी।

मैंने धीरे से उसका हाथ हटाया और बिस्तर से हट गया। तभी अनायास मुझे ध्यान आया कि उसके चूतड़ों पर भी शायद चोट है, जैसा कि उसने अपनी पिछाड़ी के बारे में कहा था। मैंने धीरे से उसका पेटीकोट ऊपर हटा दिया। उसके गोल गोल चूतड़ों पर नील पड़ी हुई थी। मैंने तुरन्त दवाई उठाई और लगाने लगा। पर आश्चर्य हुआ कि दरारों के बीच गाण्ड के छेद पर भी चोट जैसा सूजा हुआ था।

मैंने चूतड़ों को खोल कर वहां भी दवाई लगा दी। मैं पास ही बैठ कर भैया के बारे में सोचने लगा कि भैया उसकी गाण्ड में चोट कैसे लगा देते हैं? यह तो बहुत नाजुक स्थान है ... इतना बुरा व्यवहार ... मुझे बहुत ही खराब लगने लगा।

कंचन भाभी को यह पता चल गया था कि मैंने उनके बदन में दवाई कहां कहां लगाई थी। अब वो मुझसे रोज ही जिद करके दवाई लगवाने लगी थी। कंचन को अपने गुप्त अंगों पर दवाई लगाने से या मेरे द्वारा छूने पर शायद आनन्द आता था । पर इसके ठीक विपरीत मेरे दिल में कंचन भाभी के लिये प्यार बढ़ता जा रहा था।

पापा के दुकान पर जाने के बाद मैं दवाई लगाता था, फिर वो मेरे साथ लेटे लेटे खूब बातें करती थी। मैं उसके बालों को सहलाता रहता था। वो प्यार में मुझे जाने कितनी ही बार चूम लेती थी।

पर आज जाने मुझे क्या हुआ, मुझे जाने क्यूँ उत्तेजना होने लगी। मेरा लण्ड खड़ा होने लगा। मेरे दिल में एक बैचेनी सी होने लगी। इन दस बारह दिनो में भाभी की चोटें ठीक हो चुकी थी। आज मैंने उनकी चूचियों पर दवाई लगाते हुये कहा भी था कि अब उसे दवाई की आवश्यकता नहीं है .. लेकिन उसका कहना था कि आप रोज ही लगायें ... और मेरा हाथ अपनी चूंचियों पर दबा लिया था।

"आप बहुत शरारती है कांची ... "

बस ... उसने एक कसक भरी हंसी वतावरण में बिखेर दी।

मेरे विचारों में अचानक ही परिवर्तन होने लगा, मुझे अपनी भाभी ही सेक्सी लगने लगी। उनका सांवला रूप मुझे भाने लगा। वो तो निश्चिन्तता से मेरी कमर पर पांव लपेटे आंखें बंद करके कुछ कह रही थी। पर मेरा दिल कहीं और ही था।

मैंने अचानक ही कांची के होठों पर एक चुम्बन ले लिया। उसने कोई विरोध नहीं किया। मैंने साहस करके दुबारा चुम्मा लिया। उसने मुझे देखा और अपने होंठ मेरी तरफ़ बढ़ा दिये। भाभी के दोनों हाथ मेरे गले से लिपट गये। मैंने गहराई से कांची को चूम लिया ... उसने भी प्रत्युत्तर में मुझे प्यार से खूब चूमा।

मैंने जाने कब एक करवट लेकर भाभी को अपने नीचे दबोच लिया और उनके ऊपर चढ़ गया। मेरा कसा हुआ तन्नाया हुआ लण्ड उसकी चूत से टकराने लगा। भाभी के मुख से वासना भरी सिसकारी निकल पड़ी।

"भैया ... आह मुझे जोर से प्यार करो ... मुझे आज प्यार से, आनन्द से भर दो।"

"कंची मुझे जाने क्या हो रहा है... शरीर में जाने कैसी कसावट सी हो रही है ... !"

और मेरे चूतड़ों ने मेरा लण्ड जोर से उसकी चूत पर दबा दिया। मुझे लगा कि भाभी ने भी उत्तर में अपनी चूत का दबाव मेरे लण्ड पर बढ़ा दिया है। तभी मेरा वीर्य निकल पड़ा ... मैं हैरत में रह गया ... मेरा सारा नशा काफ़ूर हो गया।

मेरे लण्ड में से वीर्य का गीलापन देख कर कांची ने मुझे प्यार से उतार दिया।

"सॉरी ... ये ... ये ... सब क्या हो गया ... !!" मुझे अत्यन्त शर्मिन्दगी महसूस हुई।

"क्या पहली बार हुआ है ये ... ?"

मैंने धीमे से हां में सर हिला दिया।

"अरे छोड़ ना यार ... होता है ये ... तुझे कुछ नहीं हुआ है ... ... शर्माना कैसा ..."

"भाभी ... मै तो आपको मुँह दिखाने के लायक भी नहीं रहा ... "

उसने धीरे से खिसक कर मेरी छाती पर अपना सर रख लिया। हम फिर से बातें करने लगे ... पर फिर से मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी। मेरा लण्ड फिर खड़ा होने लगा। इस बार कांची ने कोई मौका मुझे नहीं दिया। मेरे खड़े लण्ड पर उसकी नजर पड़ गई। उसने धीरे से हाथ बढा कर उसे हल्का सा पकड़ लिया।

"भाभी, यह क्या कर रही हो ... छोड़ो तो ...!" मुझे शरम सी लगी, पर शरीर में कंपकपी सी आने लगी।

"मेरे काम की तो यही एक चीज़ है तुम्हारे पास ! है ना भैया ... ? और मेरे पास तो आपके काम की कई चीज़ें हैं, जैसे सामने ये उठे हुये गोल गोल, नीचे ... वहीं जहाँ अभी तुम जोर लगा रहे थे ... और पीछे जहां तुम अन्दर तक दवाई लगाते हो ..."

मैं यह सब सुन कर उत्तेजना से हांफ़ उठा। उसकी बातें मेरी उत्तेजना भड़का रही थी।

"तुमने दवाई लगा लगा कर मेरे सभी चीज़ों को फिर से तैयार कर दिया है ना ... अब उसके मजे भी तो लो !"

भाभी मेरे लण्ड को अब मसलने और मुठ मारने लगी थी। मेरा लण्ड उफ़न पड़ा था। सुपाड़ा फ़ूल कर लाल हो चुका था। जाने कब कांची ने मेरी एलास्टिक वाला पजामा नीचे खींच दिया था।

"हाय भैया ... ये तो बड़े मजे का है ... बड़ा तो तुम्हारे भैया जितना ही है ... पर मोटा बहुत है ...!" कहते हुए वो उठ कर मेरे लण्ड के पास पेटीकोट उठा कर बैठ गई। उसके नंगे चूतड़ मेरी जांघ पर बड़ा मोहक स्पर्श दे रहे थे। अपने मुख में से थूक निकाल कर उसने अपनी गाण्ड पर लगा लिया और मेरे लण्ड पर अपनी गाण्ड का छेद रख दिया। फिर जोर लगा कर उसके सुपाड़ा अन्दर घुसा लिया। मेरे लण्ड में जलन होने लगी। मेरे मुख से आह निकल पड़ी ...

"भैया ... बिल्कुल फ़्रेश हो क्या?" उसने चुटकी लेते हुये कहा।

"फ़्रेश क्या ... दर्द हो रहा है ना ... जैसे आग लग गई है ..." मैंने कराहते हुये कहा।

"भैया ... तू तो बहुत प्यारा है ... लव यू ... कभी किसी को चोदा नहीं क्या ... ?"

उसके मुख से चोदा शब्द सुन कर मेरे मन में गुदगुदी सी हुई।

"भाभी ... आप पहली हैं ... जिसे चोद ...ऽऽ " मैं बोलता हुआ झिझक गया।

"हां ... हां ... बोल ... बोल दे ना प्लीज ... !"

"जी ... पहली बार आप ही चुद रही है ... "

"हाय रे मेरे भैया ... !" चुदाई की बातें उसे बहुत ही रस पूर्ण लग रही थी।

उसने मुस्कराते हुये अपनी गाण्ड पर और जोर लगाया। मेरा लण्ड भीतर सरकता गया और जलन बढ़ गई। पर मौका था और इस मौके को मैं छोड़ना नहीं चहता था। मस्ती भी बहुत आ रही थी। भाभी ने मुझ पर झुकते हुये मेरे अधरों को अपने अधरों से भींच लिया और कहने लगी,"आप शर्माते बहुत है ना ... देखो आपके भैया ने मेरी क्या हालत कर दी थी, मुझे पीट पीट कर मेरा तो पूरा शरीर तोड़ फ़ोड़ कर रख दिया, और आप हैं कि मेरे एक एक अंग को फिर से ठीक कर दिया, मेरे प्यारे भैया, आप बहुत अच्छे हैं।"

"कांची तू बोलती बहुत है ... अब जो हो रहा है उसकी मस्ती तो लेने दे !"

"हाय रे, तेरा लाण्डा पुरजोर है ... "

"ये लाण्डा क्या है ... "

"जिसका लण्ड बहुत मोटा होता है उसे हम लड़कियां लाण्डा कहती हैं ... ही ही ... "

वह मुँह से मेरा होंठ चाटते हुये हंसी। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड में फ़ंसा हुआ था। वह हौले हौले ऊपर नीचे हो कर आनन्द ले रही थी। मेरा लण्ड तरावट में मीठी मीठी लहरों का मजा ले रहा था। मैं भी अपने चूतड़ों को धीरे धीरे हिला कर चुदाई जैसी अनुभूति ले रहा था। जैसे ही उसके धक्के थोड़े तेज हुये, मेरा बांध टूटने लगा। बदन में कसक भरी मिठास उफ़नने लगी और अचानक ही मैंने उसे अपनी बाहों में भींच लिया।

"कांची मेरा तो निकला ... हाय ... आह ... " और उसकी गाण्ड की गहराईयों में लण्ड वीर्य उगलने लगा।

"मेरे प्यारे भैया, निकाल दे ... सारा भर दे मेरे अन्दर ... पूरा निकाल दे ... !" उसने मुझे चूम लिया और प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगी। वीर्य निकलने के बाद मेरा लण्ड सिकुड़ कर बाहर आ गया। उसकी गाण्ड की छेद से वीर्य टप टप करके बाहर टपकने लगा।

"पता है इतना मजा तो मुझे कभी नहीं आया ... हां बलात्कार जैसा अनुभव तो मुझे बहुत है ... आपके भैया तो जानवर बन जाते हैं ... " वह मेरी छाती पर लेटे-लेटे ही बोली।

"भाभी, अब भूख लगी है ... कुछ खिलाओ ना ... !"

"रुक जा ... अभी तो मेरी सू सू बाकी है ... उसे खिलाऊंगी तुझे ...!"

उसकी भाषा पर मैं शरमा गया ... फिर भी कहा,"भाभी ... खाना खाना है ... सू सू नहीं ...!"

कांची खिलखिला कर हंस पड़ी ... वह उठी अपना पेटीकोट ठीक किया और दूध का एक गिलास भर कर ले आई। मैंने एक ही सांस में पूरा गटक लिया।

"हां सू सू खिलाओगी ... या पिलाओगी ...?"

"धत्त ... पागल हो क्या !" अपना पेटीकोट उतारते हुई हंसने लगी।

"इसकी बात कर रही हूँ ... " उसने चूत की तरफ़ इशारा किया।

मैं अनजाना था ... कहा,"हां, हां ... यही तो है सू सू ... "

"चल हट, बुद्धू बालम जी ... " हंसती हुई उसने अपना ब्लाऊज उतार दिया ... "माल तो यहाँ है बालमा ... थोड़ा सा स्वाद तो लो ... " कांची ने अपने ओर इशारा करते हुए कहा।

मैं अब नंगा हो कर बिस्तर पर बैठ गया था,"कांची ... रे ... इसमें तो छोटा सा मुत्ती का छेद है ... फिर तुम्हारा ये लाण्डा ...कैसे डलवाओगी?"

"तुम क्या सच में इतने बुद्धू हो ...? सच है जिसका माल ही आज पहली बार निकला हो, उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?" उसकी खिलखिलाती हंसी से मैं झेंप सा गया।

तभी कांची के छोटे छोटे मम्मे मेरे अधरों से टकराये। उसके मम्मे की नरम सी रगड़ से मेरे रोंगटे खड़े हो गये। सेक्स का इतना मधुर अनुभव होता है, यह मुझे आज ही मालूम हुआ। पता नहीं भैया को इन सबका अनुभव है या नहीं। ...फिर इतनी बेदर्दी क्यूँ ... जंगलीपना ... वहशीपना ... अब यह तो मेरी पत्नी नहीं है ना ... अगर यह सुखों का भण्डार है तो जब स्वयं की पत्नी आयेगी तो वो मुझे निहाल कर देगी।

मेरा लण्ड खड़ा हो चुका था। मेरे जैसे बुद्धू को चोदना तक नहीं आता था ...। वो फिर से एक बार मेरे ऊपर चढ़ गई ... मेरे खड़े उफ़नते लण्ड पर वो अपनी सू सू घिसने लगी ... उसकी सिसकी निकल पड़ी ... फिर मेरा सुपाड़ा फ़क से चूत में उतर गया।

"आह रे कांची ... ये सू सू इतनी चिकनी होती है ... इसे ही चूत कहते हैं क्या?"

"आह्ह्ह्ह ... बस चुप हो जा ... बुद्धू ... ये चूत ही है ... सू सू नहीं ... !" मेरे अधरों से अपने अधरों को रगड़ती हुई बोली। उसकी आवाज में कसक भरी हुई थी। वो अपने ही होठों को काटते हुये बड़ी सेक्सी लग रही थी। उसके सांवले रूप का जबरदस्त लावण्य किसी को भी पिघला सकता था। उसका कोमल गुंदाज़ जिस्म मेरे बदन में जैसे आग लगा रहा था। उसकी कमर ने एक प्यार भरा हटका दे दिया और उसका बदन जैसे शोलों में घिर गया। उसने एक लचीली लड़की की तरह अपना बदन ऊपर उठा लिया और चूत को मेरे लण्ड पर एक सुर में अन्दर बाहर करने लगी।

उसके मुख से सिसकियाँ निकलने लगी। मेरी सीत्कारें भी कुछ कम नहीं थी। फिर से एक बार मेरी तड़प बढ़ने लगी। मेरे चूतड़ नीचे से उछल उछल कर उसके धक्के लगाने में सहायता कर रहे थे। कांची की कमर तेजी से चलने लगी थी जैसे जन्मों की चुदासी हो ... उसके होंठ फ़ड़क रहे थे ... पसीने की बूंदें छलक आई थी चेहरे पर ...

उसका चेहरा लाल हो गया था। उसकी चूचियाँ दबाने से और मसलने से लाल हो गई थी ... उसकी जुल्फ़ें जैसे मेरे चेहरे से उलझ रही थी ... आंखें भींच कर बन्द कर रखी थी। वो अपूर्व आनन्द के सागर में डूबी हुई थी।

अचानक जैसे वो चीख सी उठी,"हाय मेरे भैया ... मुझे समेट ले ... कस ले बाहों में ... मैं तो गई ... माई रे ... मेरे राजा ... मेरे बालमा ... मुझे जोर से प्यार कर ले ... उईईईई ...

ईईईइह्ह्ह्ह्ह ..."

मुझे यह सब समझ में नहीं आया पर उसके कहे अनुसार मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। वो सीत्कार भरती हुई मेरे लण्ड पर दबाव डालने लगी और फिर उसकी चूत में लहरें सी चलने लगी ... जैसे मेरे लण्ड को कोई नरम सी चीज़ लिपट रही थी।

उसका पानी निकल चुका था। तभी मेरा लण्ड भी नरम सी गुदगुदी नहीं सह पाया और एक बार और मेरा वीर्य छूट पड़ा। मुझे लगा कि इस बार वीर्य कम ही निकला।

नीचे दबे हुये मैंने एक दीर्घ श्वास ली ... और अपने ऊपर कांची के तड़पने आनन्द लेता रहा।

थकी हुई सी, उखड़ी हुई तेज सांसें, भारी सी अखियाँ, उलझी हुई जुल्फ़ें, चेहरे पर पसीने की बूंदें ... चेहरे पर अजीब सी शान्ति भरी मुस्कान ... लग रहा था कि बरसों बाद उसे दिली संतुष्टि मिली थी ... उसने अपनी नशे से भारी पलकें मेरी तरफ़ उठाई और अपने होंठों को मेरे होठों से रगड़ती हुई बोली,"मेरे बालमा ... साजना ... तुम मुझे ही अपनी पत्नी बना लो, देखो अपनी उम्र भी बराबर है ... हाय रे, मैं तो तुम्हारे बिना मर जाऊंगी !"

"भाभी मजाक तो खूब कर लेती हो ... पर यह तो बताओ अभी यह सू सू थी या चूत?"

"उह्ह्ह ... तुम तो ... अब मारुंगी ... इस उम्र में मुझे बताना पड़ेगा कि सू सू और चूत में क्या फ़र्क है ...? जाओ हम नहीं बोलते।"

"पर घुसा तो मुत्ती में ही था ना ... ?"

"ओ हो ... अब ये कुर्सी तुम्हारे सर पर दे मारूंगी ... बुद्धू, बेवकूफ़, हाय रे मोरा नादान बालमा ... !!" उसकी खिलखिलाती, ठसके भरी जोर की हंसी मुझे सोचने पर नमजबूर कर रही थी कि मैंने ऐसा क्या कह दिया है ... ?

मेरी प्यारी और अनुभवी पाठिकाओं, यदि आपको ऐसा बालमा मिल जाये तो आपको कैसा लगेगा ...

आपकी नेहा

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