Tuesday 30 October 2012

Sexy Dhoban Aur Uska Beta (सेक्सी धोबन और उसका बेटा)

हमारा परिवारिक काम धोबी (वाशमॅन) का है. हम लोग एक छोटे से गाँव में रहते हैं और वहां धोबी का एक ही घर है इसीलिए हम लोग को ही गाँव के सारे कपड़े साफ करने को मिलते थे. मेरे परिवार में मैं , माँ और पिताजी है. मेरी उमर इस समय 15 साल की हो गई थी और मेरा सोलहवां साल चलने लगा था. गाँव के स्कूल में ही पढ़ाई लिखाई चालू थी. हमारा एक छोटा सा खेत था जिस पर पिताजी काम करते थे. मैं और माँ ने कपड़े साफ़ करने का काम संभाल रखा था. कुल मिला कर हम बहुत सुखी सम्पन थे और किसी चीज़ की दिक्कत नही थी. हम दोनो माँ - बेटे हर सप्ताह में दो बार नदी पर जाते थे और सफाई करते थे फिर घर आकर उन कपड़ो की स्त्री कर के उन्हे वापस लौटा कर फिर से पुराने गंदे कपड़े एकत्र कर लेते थे. हर बुधवार और शनिवार को मैं सुबह 9 बजे के समय मैं और माँ एक छोटे से गधे पर पुराने कपड़े लाद कर नदी की ओर निकल पड़ते . हम गाँव के पास बहने वाली नदी में कपड़े ना धो कर गाँव से थोड़ी दूर जा कर सुनसान जगह पर कपड़े धोते थे क्योंकि गाँव के पास वाली नदी पर साफ पानी नही मिलता था और हमेशा भीड़ लगी रहती थी.

मेरी माँ 34-35 साल के उमर की एक बहुत सुंदर गोरी औरत है. ज़यादा लंबी तो नही परन्तु उसकी लंबाई 5 फुट 3 इंच की है और मेरी 5 फुट 7 इंच की है. सबसे आकर्षक उसके मोटे मोटे चुत्तर और नारियल के जैसी स्तन थे ऐसा लगते थे जैसे की ब्लाउज को फाड़ के निकल जाएँगे और भाले की तरह से नुकीले थे. उसके चूतर भी कम सेक्सी नही थे और जब वो चलती थी तो ऐसे मटकते थे कि देखने वाले के उसके हिलते गांड को देख कर हिल जाते थे. पर उस वक़्त मुझे इन बातो का कम ही ज्ञान था फिर भी तोरा बहुत तो गाँव के लड़को की साथ रहने के कारण पता चल ही गया था. और जब भी मैं और माँ कपड़े धोने जाते तो मैं बड़ी खुशी के साथ कपड़े धोने उसके साथ जाता था. जब मा कपड़े को नदी के किनारे धोने के लिए बैठती थी तब वो अपनी साड़ी और पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा लेती थी और फिर पीछे एक पत्थर पर बैठ कर आराम से दोनो टाँगे फैला कर जैसा की औरते पेशाब करने वक़्त करती है कपरो को साफ़ करती थी. मैं भी अपनी लूँगी को जाँघ तक उठा कर कपड़े साफ करता रहता था. इस स्थिति में मा की गोरी गोरी टाँगे मुझे देखने को मिल जाती थी और उसकी साड़ी भी सिमट कर उसके ब्लाउज के बीच में आ जाती थी और उसके मोटे मोटे चुचो के ब्लाउज के उपर से दर्शन होते रहते थे. कई बार उसकी साड़ी जाँघों के उपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय में उसकी गोरी गोरी मोटी मोटी केले के तने जैसे चिकनी जाँघो को देख कर मेरा लंड खडा हो जाता था. मेरे मन में कई सवाल उठने लगते फिर मैं अपना सिर झटक कर काम करने लगता था. मैं और माँ कपड़ों की सफाई के साथ-साथ तरह-तरह की गाँव - घर की बाते भी करते जाते कई बार हम उस सुन-सन जगह पर ऐसा कुछ दिख जाता था जिसको देख के हम दोनो एक दूसरे से अपना मुँह छुपाने लगते थे.

कपड़े धोने के बाद हम वही पर नहाते थे और फिर साथ लाए हुआ खाना खा नदी के किनारे सुखाए हुए कपड़े को इकट्ठा कर के घर वापस लौट जाते थे. मैं तो खैर लूँगी पहन कर नदी के अंदर कमर तक पानी में नहाता था, मगर माँ नदी के किनारे ही बैठ कर नहाती थी. नहाने के लिए माँ सबसे पहले अपनी साड़ी उतारती थी. फिर अपने पेटिकोट के नाड़े को खोल कर पेटिकोट उपर को सरका कर अपने दाँत से पकड़ लेती थी इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउज पूरा ढक जाता था फिर वो पेटिकोट को दाँत से पकडे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउज को खोल कर उतरती थी. और फिर पेटीकोट को छाती के उपर बाँध देती थी जिस से उसके चुचे पूरी तरह से पेटीकोट से ढक जाते थे और कुछ भी नज़र नही आता था और घुटनो तक पूरा बदन ढक जाता था. फिर वो वही पर नदी के किनारे बैठ कर एक बड़े से जग से पानी भर भर के पहले अपने पूरे बदन को रगड़ - रगड़ कर सॉफ करती थी और साबुन लगाती थी फिर नदी में उतर कर नहाती थी. माँ की देखा देखी मैने भी पहले नदी के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना शुरू कर दिया. फिर मैं नदी में डुबकी लगा के नहाने लगा. मैं जब साबुन लगाता तो मैं अपने हाथो को अपने लूँगी के घुसा के पूरे लंड आंड गांद पर चारो तरफ घुमा घुमा के साबुन लगा के सफाई करता था क्यों मैं भी माँ की तरह बहुत सफाई पसंद था. जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैने कई बार देखा की मा बड़े गौर से मुझे देखती रहती थी और अपने पैर की एडियाँ पत्थर पर धीरे धीरे रगड़ के सॉफ करती होती. मैं सोचता था वो शायद इसलिए देखती है की मैं ठीक से सफाई करता हू या नही. इसलिए मैं भी बारे आराम से खूब दिखा दिखा के साबुन लगता था की कही डांट ना सुनने को मिल जाए कि ठीक से सॉफ सफाई का ध्यान नही रखता हू . मैं अपने लूँगी के भीतर पूरा हाथ डाल के अपने लंड को अच्छे तरीके से साफ करता था इस काम में मैने नोटीस किया कि कई बार मेरी लूँगी भी इधर उधर हो जाती थी जिससे मा को मेरे लंड की एक आध झलक भी दिख जाती थी. जब पहली बार ऐसा हुआ तो मुझे लगा की शायद मा डाटेंगी मगर ऐसा कुछ नही हुआ. तब निश्चिंत हो गया और मज़े से अपना पूरा ध्यान सॉफ सफाई पर लगाने लगा.

माँ की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था और मैं भी चाहता था की मैं उसे साफाई करते हुए देखु पर वो ज्यादा कुछ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी और फिर बड़ी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटीकोट के अंदर ले जा कर अपनी चूत की सफाई करती जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो वो अपना हाथ पेटीकोट में से निकल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती थी. इसीलिए मैं कुछ नही देख पता था और चुकी वो घुटनो को मोड़ के अपने छाती से सताए हुए होती थी इसीलये पेटिकोट के उपर से छाती की झलक मिलनी चाहिए वो भी नही मिल पाती थी. इसी तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने जाँघों और उसके बीच की सफाई करती थी ये ध्यान रखती की मैं उसे देख रहा हू या नही. जैसे ही मैं उसकी ओर घूमता वो झट से अपना हाथ निकाल लेती थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन मसोस के रह जाता था.

एक दिन सफाई करते करते मा का ध्यान शायद मेरी तरफ से हट गया था और बरे आराम से अपने पेटिकोट को अपने जाँघों तक उठा के सफाई कर रही थी. उसकी गोरी चिकनी जाँघों को देख कर मेरा लंड खड़ा होने लगा और मैं जो की इस वक़्त अपनी लूँगी को ढीला कर के अपने हाथो को लूँगी के अंदर डाल कर अपने लंड की सफाई कर रहा था धीरे धीरे अपने लंड को मसल्ने लगा. तभी अचानक मा की नज़र मेरे उपर गई और उसने अपना हाथ निकल लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली "क्या कर रहा है जल्दी से नहा के काम ख़तम कर" मेरे तो होश ही उर गये और मैं जल्दी से नदी में जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया, पर मुझे इस बात का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लूँगी तो खुली हुई है और मेरी लूँगी सरसारते हुए नीचे गिर गई. मेरा पूरा बदन नंगा हो गया और मेरा 8.5 इंच का लंड जो की पूरी तरह से खड़ा था धूप की रोशनी में नज़र आने लगा. मैने देखा की मा एक पल के लिए चकित हो कर मेरे पूरे बदन और नंगे लंड की ओर देखती रह गई मैने जल्दी से अपनी लूँगी उठाई और चुपचाप पानी में घुस गया. मुझे बड़ा डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तो पक्की डाँट पड़ेगी और मैने कनखियो से मा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को नीचे किया हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और अपने पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है. मैं ने राहत की सांस ली. और चुपचाप नहाने लगा. उस दिन हम जायदातर चुप चाप ही रहे. घर वापस लौटते वक़्त भी मा ज़यादा नही बोली.
दूसरे दिन से मैने देखा की मा मेरे साथ कुछ ज्यादा ही खुल कर हँसी मज़ाक करती रहती थी और हमारे बीच डबल मीनिंग में भी बाते होने लगी थी. पता नही मा को पता था या नही पर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था. मैने जब भी किसी के घर से कपडे ले कर वापस लौटता तो

माँ बोलती "क्यों राधिया के कपडे भी लाया है धोने के लिए क्या"?.

तो मैं बोलता, `हा',

इसपर वो बोलती "ठीक है तू धोना उसके कपडे बड़ा गंदा करती है. उसकी सलवार तो मुझसे धोई नही जाती". फिर पूछती थी "अंदर के कपडे भी धोने के लिए दिए है क्या"? अंदर के कपरो से उसका मतलब पेंटी और ब्रा या फिर अंगिया से होता था,

मैं कहता नही तो इस पर हसने लगती और कहती "तू लड़का है ना शायद इसीलिए तुझे नही दिया होगा, देख अगली बार जब मैं माँगने जाऊंगी तो ज़रूर देगी" फिर अगली बार जब वो कपडे लाने जाती तो सचमुच में वो उसकी पेंटी और अंगिया ले के आती थी और बोलती "देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे देगी, तू लड़का है ना, तेरे को देने में शरमाती होंगी, फिर तू तो अब जवान भी हो गया है" मैं अंजान बना पुछ्ता क्या देने में शरमाती है राधिया तो मुझे उसकी पेंटी और ब्रा या अंगिया फैला कर दिखती और मुस्कुराते हुए बोलती "ले खुद ही देख ले" इस पर मैं शर्मा जाता और कनखियों से देख कर मुँह घुमा लेता तो वो बोलती "अर्रे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना परेगा" कह के हसने लगती. पता नही क्यों मा अब कुछ दिनों से इस तरह की बातो में ज़यादा इंटेरेस्ट लेने लगी थी. मैं भी चुप- चाप उसकी बाते सुनता रहता और मज़े से जवाब देता रहता था.जब हम नदी पर कपडे धोने जाते तब भी मैं देखता था की माँ अब पहले से थोरी ज्यादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लाउज को खोलती थी और पेटिकोट को अपनी छाती पर बाँधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस पर ध्यान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लाउज को खोलती और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले वो मेरे नहाने तक इंतेज़ार करती थी और जब मैं थोडा दूर जा के बैठ जाता तब पूरा नहाती थी. मेरे नहाते वक़्त उसका मुझे घुरना बदस्तूर जारी था और मेरे में भी हिम्मत आ गई थी और मैं भी जब वो अपने छातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घूर कर देखता रहता. माँ भी मज़े से अपने पेटिकोट को जाँघों तक उठा कर एक पत्थर पर बैठ जाती और साबुन लगाती और ऐसे एक्टिंग करती जैसे मुझे देख ही नही रही है. उसके दोनो घुटने मुड़े हुए होते थे और एक पैर थोडा पहले आगे पसारती और उस पर पूरा जाँघो तक साबुन लगाती थी फिर पहले पैर को मोड़ कर दूसरे पैर को फैला कर साबुन लगाती. पूरा अंदर तक साबुन लगाने के लिए वो अपने घुटने मोड़े रखती और अपने बाए हाथ से अपने पेटिकोट को थोडा उठा के या अलग कर के दाहिने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती. मैं चूँकि थोड़ी दूर पर उसके बगल में बैठा होता इसीलिए मुझे पेटिकोट के अन्दर का नज़ारा तो नही मिलता था, जिसके कारण से मैं मन मसोस के रह जाता था की काश मैं सामने होता, पर इतने में ही मुझे ग़ज़ब का मज़ा आ जाता था. और उसकी नंगी चिकनी चिकनी जंघे उपर तक दिख जाती थी. माँ अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद बड़े मग को उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटिकोट के अंदर डाल देती और दूसरे हाथ से साथ ही साथ रगडती भी रहती थी. ये इतना जबरदस्त सीन होता था की मेरा तो लंड खड़ा हो के फुफ्करने लगता और मैं वही नहाते नहाते अपने लंड को मसल्ने लगता. जब मेरे से बर्दस्त नही होता तो मैं सीधा नदी में कमर तक पानी में उतर जाता और पानी के अंदर हाथ से अपने लंड को पाकर कर खड़ा हो जाता और मा की तरफ घूम जाता. जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घूम कर नहाते देखती तो वो मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती हुई बोलती " ज्यादा दूर मत जाना , किनारे पर ही नहा ले, आगे पानी बहुत गहरा है", मैं कुछ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसालते हुए नहाने की एक्टिंग करता रहता. इधर मा मेरी तरफ देखती हुई अपने हाथो को उपर उठा उठा के अपने कांख की सफाई करती कभी अपने हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के छाती को साफ करती कभी जाँघों के बीच हाथ घुसा के खूब तेज़ी से हाथ चलने लगती, दूर से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मूठ मार रही है और शायद मारती भी होगी. कभी कभी वो भी खड़े हो नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटिकोट जो की उसके बदन चिपका हुआ होता था गीला होने के कारण मेरी हालत और ज्यादा खराब कर देता था. पेटिकोट चिपकने के कारण उसकी बड़ी बड़ी चुचिया नुमाया हो जाती थी. कपडे के उपर से उसके बड़े बड़े मोटे मोटे निपल तक दिखने लगते थे. पेटिकोट उसके चूतडों से चिपक कर उसके गांड के दरार में फंसा हुआ होता था और उसके बड़े बड़े चूतर साफ साफ दिखाई देते रहते थे. वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खडी हो के डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नज़ारा करवाती जाती. मैं तो वही नदी में ही लंड मसल के मूठ मार लेता था. हालांकि मूठ मारना मेरी आदत नही थी . घर पर मैं ये काम कभी नही करता था पर जब से मा के स्वाभाव में चेंज आया था नदी पर मेरी हालत ऐसे हो जाती थी की मैं मज़बूर हो जाता था. अब तो घर पर मैं जब भी स्त्री करने बैठता तो मुझे बोलती जाती "देख ध्यान से स्त्री करियो . पिछली बार शयामा बोल रही थी की उसके ब्लाउज ठीक से स्त्री नही थे"

मैं भी बोल पड़ता "ठीक है. कर दूँगा, इतना छोटा सा ब्लाउज तो पहनती है, ढंग से स्त्री भी नही हो पाती. , पता नही कैसे काम चलती है इतने छोटे से ब्लाउज में" तो माँ बोलती "अरे उसकी चूचियां ज़यादा बड़ी थोड़े ही है जो वो बड़ा ब्लाउज पहनेगी, हाँ उसकी सास के ब्लाउज बहुत बड़े बड़े है बुधिया की चूची पहाड़ जैसी है. " कह कर माँ हंसने लगती. फिर मेरे से बोलती"तू सबके ब्लाउज की लंबाई चौड़ाई देखता रहता है क्या या फिर स्त्री करता है".

मैं क्या बोलता चुपचाप सिर झुका कर स्त्री करते हुए धीरे से बोलता "अर्रे देखता कौन है, नज़र चली जाती है, बस". स्त्री करते करते मेरा पूरा बदन पसीने से नहा जाता था. मैं केवल लूँगी पहने स्त्री कर रहा होता था. माँ मुझे पसीने से नहाए हुए देख कर बोलती "छोड़ , अब तू कुछ आराम कर ले. तब तक मैं स्त्री करती हू," मा ये काम करने लगती. थोरी ही देर में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी साडी खोल कर एक ओर फेक देती और बोलती "बरी गर्मी है रे, पता नही तू कैसे कर लेता है इतने कपरो की स्त्री मेरे से तो ये गर्मी बर्दस्त नही होती" इस पर मैं वही पास बैठा उसके नंगे पेट, गहरी नाभि और मोटे चुचो को देखता हुआ बोलता, "ठंडा कर दू तुझे"?

"कैसे करेगा ठंडा"? "

डंडे वाले पंखे से मैं तुझे पंखा झल देता हू", फैन चलाने पर तो स्त्री ही ठंडी पर जाएगी".

रहने दे तेरे डंडे वाले पँखे से भी कुछ नही होने जाने का, छोटा सा तो पंखा है तेरा". कह कर अपने हाथ उपर उठा कर माथे पर छलक आए पसीने को पोछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पूरी भीग गई है. और उसके गर्देन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउज के अंदर उसके दोनो चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर उसके ब्लाउज को भींगा रहा होता. घर के अंदर वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी इस कारण से उसके पतले ब्लाउज को पसीना पूरी तरह से भीगा देता था और, उसकी चुचिया उसके ब्लाउज के उपर से नज़र आती थी. कई बार जब वो हल्के रंगा का ब्लाउज पहनी होती तो उसके मोटे मोटे भूरे रंग के निपल नज़र आने लगते. ये देख कर मेरा लंड खडा होने लगता था. कभी कभी वो स्त्री को एक तरफ रख के अपने पेटिकोट को उठा के पसीना पोछने के लिए अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके के इंतेज़ार में बैठा रहता था, क्योंकि इस वक़्त उसकी आँखे तो पेटिकोट से ढक जाती थी पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसका टाँगे पूरा जांघ तक नंगी हो जाती थी और मैं बिना अपनी नज़रो को चुराए उसके गोरी चिटी मखमली जाँघों को तो जी भर के देखता था. माँ अपने चेहरे का पसीना अपनी आँखे बंद कर के पूरे आराम से पोछती थी और मुझे उसके मोटे कंडली के खम्भे जैसे जांघों को पूरा नज़ारा दिखाती थी. रात में जब खाना खाने का टाइम आता तो मैं नहा धो कर किचन में आ जाता, खाना खाने के लिए. मा भी वही बैठा के मुझे गरम गरम रोटिया सेक देती जाती और हम खाते रहते. इस समय भी वो पेटिकोट और ब्लाउज में ही होती थी . क्यों की किचन में गर्मी होती थी और उसने एक छोटा सा पल्लू अपने कंधो पर डाल रखा होता. उसी से अपने माथे का पसीना पोछती रहती और खाना खिलती जाती थी मुझे. हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते.

मैने मज़ाक करते हुए बोलता " सच में मा तुम तो गरम स्त्री (वुमन) हो". वो पहले तो कुछ साँझ नही पाती फिर जब उसकी समझ में आता की मैं आइरन स्त्री ना कह के उसे स्त्री कह रहा हू तो वो हसने लगती और कहती "हा मैं गरम इस्त्री हू", और अपना चेहरा आगे करके बोलती "देख कितना पसीना आ रहा है, मेरी गर्मी दूर कर दे" "

मैं तुझे एक बात बोलू तू गरम चीज़े मत खाया कर, ठंडी चीज़ खाया कर"

"अच्छा , कौन से ठंडी चीज़ मैं खाऊं कि मेरी गर्मी दूर हो जाएगी"

"केले और बैगन की सब्जिया खाया कर"

इस पर मा का चेहरा लाल हो जाता था और वो सिर झुका लेती और

धीरे से बोलती " अर्रे केले और बैगान की सब्जी तो मुझे भी अच्छी लगती है पर कोई लाने वाला भी तो हो, तेरा बापू तो ये सब्जिया लाने से रहा, ना तो उसे केला पसंद है ना ही उसे बैगन".

"तू फिकर मत कर . मैं ला दूँगा तेरे लिए"

"अच्छा बेटा है तू, मा का कितना ध्यान रखता है"

मैं खाना ख़तम करते हुए बोलता, "चल अब खाना तो हो गया ख़तम, तू भी जा के नहा ले और खाना खा ले", "अर्रे नही अभी तो तेरा बापू देसी चढ़ा के आता होगा, उसको खिला दूँगी तब खूँगी, तब तक नहा लेती हू" तू जा और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है". मुझे भी ध्यान आ गया की हाँ कल तो नदी पर भी जाना है मैं छत पर चला गया. गर्मियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे.

सुबह सूरज की पहली किरण के साथ जब मेरी नींद खुली तो देखा एक तरफ बापू अभी भी लुढ़का हुआ है और माँ शायद पहले ही उठ कर जा चुकी थी . मैं भी जल्दी से नीचे पहुचा तो देखा की माँ बाथरूम से आ के हॅंडपंप पर अपने हाथ पैर धो रही थी. मुझे देखते ही बोली "चल जल्दी से तैयार हो जा मैं खाना बना लेती हू फिर जल्दी से नदी पर निकाल जाएँगे, तेरे बापू को भी आज शहर जाना है बीज लाने, मैं उसको भी उठा देती हू". थोरी देर में जब मैं वापस आया तो देखा की बापू भी उठ चुका था और वो बाथरूम जाने की तैयारी में था. मैं भी अपने काम में लग गया और सारे कपड़ों के गट्ठर बना के तैयार कर दिया. थोरी देर में हम सब लोग तैयार हो गये. घर को ताला लगाने के बाद बापू बस पकड़ने के लिए चल दिया और हम दोनो नदी की ओर. मैने मा से पुछा की बापू कब तक आएँगे तो वो बोली "क्या पता कब आएगा मुझे तो बोला है की कल आ जाउंगा पर कोई भरोसा है तेरे बापू का, चार दिन भी लगा देगा, ".

हम लोग नदी पर पहुच गये और फिर अपने काम में लग गये, कपड़ों की सफाई के बाद मैने उन्हें एक तरफ सूखने के लिए डाल दिया और फिर हम दोनो ने नहाने की तैयारी शुरू कर दी. माँ ने भी अपनी साड़ी उतार के पहले उसको साफ किया फिर हर बार की तरह अपने पेटिकोट को उपर चढ़ा के अपनी ब्लाउज निकाली फिर उसको साफ किया और फिर अपने बदन को रगड़ रगड़ के नहाने लगी. मैं भी बगल में बैठा उसको निहारते हुए नहाता रहा बेखयाली में एक दो बार तो मेरी लूँगी भी मेरे बदन पर से हट गई थी पर अब तो ये बहुत बार हो चुका था. इसलिए मैने इस पर कोई ध्यान नही दिया, हर बार की तरह मा ने भी अपने हाथो को पेटिकोट के अंदर डाल के खूब रगड़ रगड़ के नहाना चालू रखा. थोरी देर बाद मैं नदी में उतर गया. माँ ने भी नदी में उतर के एक दो डुबकिया लगाई और फिर हम दोनो बाहर आ गये. मैने अपने कपडे चेंज कर लिए और पाजामा और कुर्ता पहन लिया. माँ ने भी पहले अपने बदन को टॉवेल से सूखाया फिर अपने पेटिकोट के डोर को जिसको की वो छाती पर बाँध के रखती थी उपर से खोल लिया और अपने दांतों से पेटिकोट को पकड़ लिया, ये उसका हमेशा का काम था, मैं उसको पत्थर पर बैठ के एक तक देखे जा रहा था. इस प्रकार उसके दोनो हाथ फ्री हो गये थे अब उसने ब्लाउज को पहन ने के लिए पहले उसने अपना बाया हाथ उसमे घुसाया फिर जैसे ही वो अपना दाहिना हाथ ब्लाउज में घुसाने जा रही थी की पता नही क्या हुआ उसके दांतों से उसकी पेटिकोट छुट गई. और सीधे सरसरते हुए नीचे गिर गई. और उसका पूरा का पूरा नंगा बदन एक पल के लिए मेरी आँखो के सामने दिखने लगा. उसके बड़ी बड़ी चुचिया जिन्हे मैने अब तक कपड़ों के उपर से ही देखा था और उसके भारी बाहरी चूतर और उसकी मोटी मोटी जांघे और झाट के बाल सब एक पल के लिए मेरी आँखो के सामने नंगे हो गये. पेटिकोट के नीचे गिरते ही उसके साथ ही माँ भी तेज़ी के साथ नीचे बैठ गई. मैं आँखे फाड़ फाड़ फर के देखते हुए वही पर खड़ा रह गया. मा नीचे बैठ कर अपने पेटिकोट को फिर से समेटती हुई बोली " ध्यान ही नही रहा मैं तुझे कुछ बोलना चाहती थी और ये पेटिकोट दांतों से छुट गया" .

मैं कुछ नही बोला. मा फिर से खडी हो गई और अपने ब्लाउज को पहनने लगी. फिर उसने अपने पेटिकोट को नीचे किया और बाँध लिया. फिर साड़ी पहन कर वो वही बैठ के अपने भीगे पेटिकोट को साफ कर के तैयार हो गई. फिर हम दोनो खाना खाने लगे. खाना खाने के बाद हम वही पेड़ की छावं में बैठ कर आराम करने लगे. जगह सुनसान थी . ठंडी हवा बह रही थी. मैं पेड़ के नीचे लेटे हुए माँ की तरफ घुमा तो वो भी मेरी तरफ घूमी. इस वक़्त उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कराहट पसरी हुई थी.

मैने पुछा "माँ क्यों हंस रही हो",

तो वो बोली "क्या करू, अब हसने पर भी कोई रोक है क्या"?

"नही मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था, नही बताना है तो मत बताओ"

मा बोली - "अर्रे इतनी अच्छी ठंडी हवा बह रही है चेहरे पर तो मुस्कान आएगी ही . यहा पेड़ की छावं में कितना अच्छा लग रहा है, ठंडी ठंडी हवा चल रही है, और आज तो मैने पूरा हवा खाया है"

"पूरा हवा खाया है, वो कैसे"

"मैं पूरी नंगी जो हो गई थी, फिर बोली ही, तुझे मुझे ऐसे नही देखना चाहिए था,

"क्यों नही देखना चाहिए था"

"अर्रे बेवकूफ़, इतना भी नही समझता एक मा को उसके बेटे के सामने नंगा नही होना चाहिए था"

"कहा नंगी हुई थी तुम बस एक सेकेंड के लिए तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया था" (हालाँकि वही एक सेकेंड मुझे एक घंटे के बराबर लग रहा था).

"हा फिर भी मुझे नंगा नही होना चाहिए था, कोई जानेगा तो क्या कहेगा की मैं अपने बेटे के सामने नंगी हो गयी थी ".

"कौन जानेगा, यहा पर तो कोई था भी नही तू बेकार में क्यों परेशान हो रही है"

"अर्रे नही फिर भी कोई जान गया तो", फिर कुछ सोचती हुई बोली, अगर कोई नही जानेगा तो क्या तू मुझे नंगा देखेगा क्या", मैं और मा दोनो एक दूसरे के आमने सामने एक सूखे चादर पर सुन-सान जगह पर पेड़ के नीचे एक दूसरे की ओर मुँह कर के लेते हुए थे और माँ की साड़ी उसके छाति पर से लुढ़क गई थी. माँ के मुँह से ये बात सुन के मैं खामोश रह गया और मेरी साँसे तेज चलने लगी. माँ ने मेरी ओर देखते हुए पुछा "क्या हुआ, "

मैने कोई जवाब नही दिया और हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी छातियो की तरफ देखने लगा जो उसकी तेज चलती सांसो के साथ उपर नीचे हो रहे थे. वो मेरी तरफ देखते हुए बोली "क्या हुआ मेरी बात का जवाब दे ना, अगर कोई जानेगा नही तो क्या तू मुझे नंगा देख लेगा"?

इस पर मेरे मुँह से कुछ नही निकला और मैने अपना सिर नीचे कर लिया, मा ने मेरी ठोड़ी पकड़ के उपर उठाते हुए मेरे आँखो में झाँकते हुए पुछा , "क्या हुआ रे,? बोल ना क्या तू मुझे नंगा देख, लेगा जैसे तूने आज देखा है,"

मैने कहा " मा, मैं क्या बोलू" मेरा तो गॅला सुख रहा था,.

मा ने मेरे हाथ को अपने हाथो में ले लिया और कहा "इसका मतलब तू मुझे नंगा नही देख सकता, है ना".

मेरे मुँह से निकाल गया- " मा, छोरो ना," मैं हकलाते हुए बोला "नही मा ऐसा नही है".

"तो फिर क्या है, तू अपनी मा को नंगा देख लेगा क्या"

मैं क्या कर सकता था, वो तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया

तभी मुझे नंगा दिख गया नही तो मैं कैसे देख पाता,"

"वो तो मैं समझ गई, पर उस वक़्त तुझे देख के मुझे ऐसा लगा जैसे की तू मुझे घूर रहा है.................इसिलिये पुछा"

" मा ऐसा नही है, मैने तुम्हे बताया ना, तुम्हे बस ऐसा लगा होगा, "

"इसका मतलब तुझे अच्छा नही लगा था ना"

" मा छोरो ", मैं हाथ छुडाते हुए अपने चेहरे को छूपाते हुए बोला"

मा ने मेरा हाथ नही छोड़ा और बोली "सच सच बोल शरमाता क्यों है"

मेरे मुँह से निकाल गया "हा अच्छा लगा था",

इस पर मा ने मेरे हाथ को पकड़ के सीधे अपनी छाती पर रख दिया, और बोली "फिर से देखेगा मा को नंगा, बोल देखेगा?"

मेरी मुँह से आवाज़ नही निकाल पा रहा था मैने बड़ी मुश्किल से अपने अपने हाथो को उसके नुकीले गुदज छातियों पर स्थिर रख पा रहा था. ऐसे में मैं भला क्या जवाब देता? मेरे मुँह से एक क्रहने की सी आवाज़ निकली. माँ ने मेरी ठोडी पकड़ कर फिर से मेरे मुँह को उपर उठाया और बोली "क्या हुआ बोल ना शरमाता
क्यों है, जो बोलना है बोल" .

मैं कुछ ना बोला .

ठोड़ी देर तक उसके चुचियों पर ब्लाउज के उपर से ही हल्का सा मैने हाथ फेरा. फिर मैने हाथ खीच लिया. माँ कुछ नही बोली गौर से मुझे देखती रही फिर पता ना क्या सोच कर वो बोली "ठीक मैं सोती हू यही पर बरी अच्छी हवा चल रही है, तू कपड़ों को देखते रहना और जो सुख जाए उन्हे उठा लेना, ठीक है" और फिर मुँह घुमा कर एक तरफ सो गई. मैं भी चुप चाप वही आँख खोले लेटा रहा. माँ की चुचियाँ धीरे धीरे उपर नीचे हो रही थी. उसने अपना एक हाथ मोड़ कर अपने आँखो पर रखा हुआ था और दूसरा हाथ अपने बगल में रख कर सो रही थी. मैं चुपचाप उसे सोता हुआ देखता रहा, ठोड़ी देर में उसकी उठती गिरती चुचियों का जादू मेरे उपर चल गया और मेरा लंड खडा होने लगा. मेरा दिल कर रहा था की काश मैं फिर से उन चुचियों को एक बार छू लू. मैने अपने आप को गालिया भी निकाली, क्या उल्लू का पट्ठा हूँ . मैं भी जो चीज़ आराम से छुने को मिल रही थी तो उसे छूने की बजाए मैं हाथ हटा लिया. पर अब क्या हो सकता था. मैं चुप चाप वैसे ही बैठा रहा. कुछ सोच भी नही पा रहा था. फिर मैने सोचा की जब उस वक़्त मा ने खुद मेरा हाथ अपनी चुचियों पर रखा दिया था तो फिर अगर मैं खुद अपने मन से रखू तो शायद डाटेंगी नही, और फिर अगर डाटेंगी तो बोल दूँगा तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस वक़्त पाकर कर रखा था, तो अब मैं अपने आप से रख दिया. सोचा शायद तुम बुरा नही मनोगी. यही सब सोच कर मैने अपने हाथो को धीरे से उसकी चुचियों पर ले जा के रख दिया, और हल्के हल्के सहलाने लगा. मुझे ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था मैने हल्के से उसकी साड़ी को पूरी तरह से उसके ब्लाउज पर से हटा दिया और फिर उसकी चुचियों को दबाया. वाह ! इतना ग़ज़ब का मज़ा आया की बता नही सकता, एकदम गुदाज़ और सख़्त चुचियाँ थी मा की इस उमर में भी मेरा तो लंड खड़ा हो गया, और मैने अपने एक हाथ को चुचियों पर रखे हुए दूसरे हाथ से अपने लंड को मसल्ने लगा. जैसे जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी वैसे वैसी मेरे हाथ दोनो जगहो पर तेज़ी के साथ चल रहे थे. मुझे लगता है की मैने मा की चुचियों को कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से दबा दिया था, शायद इसीलिए मा की आँख खुल गई. और वो एकदम से हडबडाते हुए उठ गई और अपने आँचल को संभालते हुए अपनी चुचियों को ढक लिया और फिर, मेरी तरफ देखती हुई बोली, "हाय, क्या कर रहा था तू, हाय मेरी तो आँख लग गई थी?"

मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लंड पर था, और मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था. मा ने मुझे गौर से एक पल के लिए देखा और सारा माजरा समझ गई और फिर अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट बिखेरते हुए बोली "हाय, देखो तो सही क्या सही काम कर रहा था ये? लड़का , मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था".

वो अब एक दम से मेरे नज़दीक आ गई थी और उसकी गरम साँसे मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी. वो एक पल के लिए ऐसे ही मुझे देखती रही फिर मेरे ठोडी पकड़ कर मुझे उपर उठाते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली "क्यों रे बदमाश क्या कर रहा था, बोल ना क्या कर रहा था अपनी मा के साथ" फिर मेरे फूले फूले गाल पाकर कर हल्के से मसल दिया. मेरे मुँह से तो आवाज़ नही निकाल रही थी, फिर उसने हल्के से अपना एक हाथ मेरे जाँघो पर रखा और मेरे लंड को सहलाते हुए बोली "है, कैसे खड़ा कर रखा है मुए ने" फिर सीधा पाजामा के उपर से मेरे खड़े लंड जो की मा के जागने से थोडा ढीला हो गया था पर अब उसके हाथो स्पर्श पा के फिर से खड़ा होने लगा था पर उसने अपने हाथ रख दिया, "उई मा, कैसे खड़ा कर रखा है, क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या, है, बेटा और मेरी इसको भी मसल रहा था, तू तो अब लगता है जवान हो गया है, तभी मैं कहूँ की जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा ये लड़का मुझे घूर घूर के क्यों देख रहा था, ही, इस लड़के की तो अपनी मा के उपर ही बुरी नज़र है". अगर मैं नही जागती तो, तू तो अपना पानी निकाल के ही मानता ना, मेरे छातियों को दबा दबा के, उम्म्म... बोल, निकालता की ऩही पानी?"

" मा ग़लती हो गई,

"वाह रे तेरी ग़लती, कमाल की ग़लती है, किसी का मसल दो दबा दो फिर बोलो की ग़लती हो गई, अपना मज़ा कर लो दूसरे चाहे कैसे भी रहे",

कह कर मा ने मेरे लंड को कस के दबाया, उसके कोमल हाथो का स्पार्स पा के मेरा लंड तो लोहा हो गया था, और गरम भी काफ़ी हो गया था.

"हाय मा, छोडो , क्या कर रही हो"

मा उसी तरह से मुस्कुराती हुई बोली "क्यों प्यारे तूने मेरा दबाया तब तो मैने नही बोला की छोडो , अब क्यों बोल रहा है तू,"

मैने कहा ", मा तू दबाएगी तो सच में मेरा पानी निकाल जाएगा,

"क्यों पानी निकालने के लिए ही तो तू दबा रहा था ना मेरी छातिया, मैं अपने हाथ से निकाल देती हू, तेरे गन्ने से तेरा रूस, चल, ज़रा अपना गन्ना तो दिखा,"

" मा छोडो , मुझे शरम आती है"

"अच्छा , अभी तो बड़ी शरम आ रही है, और हर रोज जो लूँगी और पाजामा हटा हटा के, सफाई जब करता है तब, तब क्या मुझे दिखाई नही देता क्या, अभी बड़ी एक्टिंग कर रहा है,"

" नही मा, तब की बात तो और है, फिर मुझे थोड़े ही पता होता था की तुम देख रही हो",

"ओह ओह मेरे भोले राजा, बरा भोला बन रहा, चल दिखा ना, देखु कितना बड़ा और मोटा है तेरा गन्ना"

मैं कुछ बोल नही पा रहा था, मेरे मुँह से शब्द नही निकाल पा रहे थे, और लग रहा था जैसे, मेरा पानी अब निकला की तब निकला. इस बीच मा ने मेरे पाजामे का नारा खोल दिया और अंदर हाथ डाल के मेरे लंड को सीधा पकड़ लिए, मेरा लंड जो की केवल उसके छुने के कारण से फुफ्करने लगा था अब उसके पकड़ने पर अपनी पूरी औकात पर आ गया और किसी मोटे लोहे के रोड की तरह एक दम टन कर उपर की तरफ मुँह उठाए खड़ा था. मा ने मेरे लंड को अपने हाथो में पकड़ने पूर कोशिश कर रही थी पर, मेरे लंड की मोटाई के कारण से वो उसे अपने मुट्ठी में अच्छी तरह से क़ैद नही कर पा रही थी. उसने मेरे पाजामे को वही खुले में पेड़ के नीचे मेरे लंड पर से हटा दिया,

" मा, छोडो , कोई देख लेगा, ऐसे कपड़ा मत हटाओ"

मगर मा शायद पूरे जोश में आ चुकी थी,

"चल कोई नही देखता, फिर सामने बैठी हू, किसी को नज़र नही आएगा, देखु तो सही मेरे बेटे का गन्ना आख़िर है कितना बड़ा "?

और मेरा लंड देखता ही, आश्चर्य से उसका मुँह खुला का खुला रह गया, एकदम से चौंकती हुई बोली, "हाय दैया, ये क्या इतना मोटा, और इतना लंबा , ये कैसे हो गया रे, तेरे बाप का तो बीतते भर का भी नही है, और यहा तू बेलन के जैसा ले के घूम रहा है. "

"ओह, मा, मेरी इसमे क्या ग़लती है, ये तो शुरू में पहले छोटा सा था पर अब अचानक इतना बड़ा हो गया है तो मैं क्या करू"?

"ग़लती तो तेरी ही है जो तूने , इतना बड़ा जुगाड़ होते हुए भी अभी तक मुझे पता नही चलने दिया, वैसे जब मैने देखा था नहाते वक़्त तब तो इतना बड़ा नही दिख रहा था रे"

" मा, वो वो " मैं हकलाते हुए बोला "वो इसलिए कोयोंकि उस समय ये उतना खडा नही रहा होगा, अभी ये पूरा खडा हो गया है"

"ओह ओह तो अभी क्यों खडा कर लिया इतना बड़ा , कैसे खडा हो गया अभी तेरा?"

अब मैं क्या बोलता की कैसे खडा हो गया. ये तो बोल नही सकता था की मा तेरे कारण खडा हो गया है मेरा.

मैने सकपकते हुए कहा "अर्रे वो ऐसे ही खडा हो गया है तुम छोडो अभी ठीक हो जाएगा"

"ऐसे कैसे खडा हो जाता है तेरा" मा ने पुछा और मेरी आँखो में देख कर अपने रसीले होंठो का एक कोना दबा के मुस्कने लगी .

"अरे तुमने पकड़ रखा है ना इसलिए खड़ा हो गया है मेरा क्या करू मैं, छोड़ दो ना " मैने किसी भी तरह से मा का हाथ अपने लंड पर से हटा देना चाहता था. मुझे ऐसा लग रहा था की मा के कोमल हाथो का स्पर्श पा के कही मेरा पानी निकाल ना जाए. फिर मा ने केवल पकड़ा तो हुआ नही था. वो धीरे धीरे मेरे लंड को सहला भी और बार बार अपने अंगूठे से मेरे चिकने सुपाडे के छू भी रही थी.

" अच्छा अब सारा दोष मेरा हो गया, और खुद जो इतनी देर से मेरी छातियों पकड़ के मसल रहा था और दबा रहा था उसका कुछ नही"

" ग़लती हो गई"

"चल मान लिया ग़लती हो गई, पर सज़ा तो इसकी तुझे देनी परेगी, मेरा तूने मसला है, मैं भी तेरा मसल देती हू," कह कर मा अपने हाथो को थोडा तेज चलाने लगी और मेरे लंड का मूठ मारते हुए मेरे लंड के मुंडी को अंगूठे से थोरी तेज़ी के साथ घिसने लगी. मेरी हालत एकदम खराब हो रही थी. गुदगुदाहट और सनसनी के मारे मेरे मुँह से कोई आवाज़ नही निकाल पा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे की मेरा पानी अब निकला की तब निकला. पर मा को मैं रोक भी नही पा रहा था.

मैने सिसकते हुए कहा "ओह मा, निकल जाएगा, मेरा निकल जाएगा"

इस पर मा ने और ज़ोर से हाथ चलते हुए अपनी नज़र उपर करके मेरी तरफ देखते हुए बोली "क्या निकल जाएगा?".

"ओह ओह, छोडो ना तुम जानती हो क्या निकाल जाएगा क्यों परेशान कर रही हो"

"मैं कहाँ परेशान कर रही हू, तू खुद परेशान हो रहा है"

"क्यों, मैं क्यों भला खुद को परेशान करूँगा, तुम तो खुद ही ज़बरदस्ती, पता नही क्यों मेरा लंड मसले जा रही हो"

"अच्छा, ज़रा ये तो बता शुरुआत किसने की थी मसल्ने की" कह कर मा मुस्कुराने लगी.

मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था मैं भला क्या जवाब देता कुछ समझ में ही नही आ रहा था की क्या करू क्या ना करू, उपर से मज़ा इतना आ रहा था की जान निकली जा रही थी. तभी वो हल्का सा आगे की ओर सरकी और झुकी, आगे झुकते ही उनका आँचल उनके ब्लाउज पर से सरक गया. पर उन्होने कोई प्रयास ऩही किया उसको ठीक करने का. अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी. मेरी आँखो के सामने उनकी नारियल के जैसी सख़्त चुचिया जिनको सपने में देख कर मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था और जिनको दूर से देख कर ही तड़पता रहता था नुमाया थी. भले ही चूचियां अभी भी ब्लाउज में ही क़ैद थी परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके उपर से ही लगाया जा सकता था. ब्लाउज के उपरी भाग से उनकी चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा गोरा हिस्सा नज़र आ रहा था. हलकी चुचियों को बहुत बड़ा तो ऩही कहा जा सकता पर, उतनी बड़ी तो थी ही जितनी एक स्वस्थ शरीर की मालकिन का हो सकता है . मेरा मतलब है की इतनी बड़ी जितनी की आप के हाथो में ना आए पर इतनी बड़ी भी ऩही की आप को दो दो हाथो से पकड़ना पड़े और फिर भी आपके हाथ ना आए. एकदम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी और सामने की ओर निकली हुई थी. मेरी आँखे तो हटाए ऩही हट रही थी. तभी मा ने अपने हाथो को मेरे लंड पर थोरा ज़ोर से दबाते हुए पुछा "बोल ना दबाउ क्या और"

" मा छोडो ना"

उन्होने ने ज़ोर से मेरे लंड को मुट्ठी में भर लिया,

" मा छोडो ना बहुत गुदगुदी होती है "

"तो होने दे ना, तू खाली बोल दबाऊं या ऩही"

" दबाओ, मा मस्लो"

"अब आया ना रास्ते पर"

" मा तुम्हारे हाथो में तो जादू है "

"जादू हाथो में है या फिर इसमे है (अपने ब्लाउज की तरफ इशारा कर के पुछा)

" मा तुम तो बस"

"शरमाता क्यों हाई, बोल ना क्या अच्छा लग रहा है "

"माँ मैं क्या बोलू"

"क्यों क्या अच्छा लग रहा है ?", "अर्रे अब बोल भी दे शरमाता क्यों है "

"माँ अच्छा लग रहा है "

"तो फिर शर्मा क्यों रहा था बोलने में, फिर मा ने बड़े आराम से मेरे पूरे लंड को मुट्ठी के अंदर क़ैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलना शुरू कर दिया.

"तू तो पूरा जवान हो गया है रे"

"हाँ मा"

" पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू तो, अब तो बर्दाश्त भी ऩही होता होगा, कैसे करता है"

"क्या मा"

"वही, बर्दाश्त, और क्या, तुझे तो अब छेद चाहिए, समझा?

छेद मतलब "? मा, ऩही समझा"

"क्या उल्लू लड़का है रे तू, छेद मतलब ऩही सकझता"

मैने नाटक करते हुए कहा "ऩही मा ऩही समझता".

इस पर मा हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और बोली "चल समझ जाएगा, फिर उसने अपने हाथो को तेज़ी से मेरे लंड पर चलाने लगी. मारे गुदगुदी और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था. समझ में ऩही आ रहा था क्या करू, दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढ़ा कर मा के दोनो चुचियों को कस के पकड़ लूँ और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाऊं . लेकिन डर रहा था की कही बुरा ना मान जाए. इसी चक्कर में मैने कराहते हुए सहारा लेने के लिए सामने बैठी मा के कंधे पर अपने दोनो हाथ रख दिए. वो बोली तो कुछ ऩही पर अपनी नज़रे उपर कर के मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली "क्यों मज़ा आ रहा है की ऩही""

हाँ , मा मज़े की तो बस पूछो मत बहुत मज़ा आ रहा है" मैं बोला. इस पर मा ने अपने हाथ और तेज़ी से चलना शुरू कर दिया और बोली "साले हरामी कही का, मैं जब नहाती हू तब घूर घूर के मुझे देखता रहता है, मैं जब सो रही थी तो मेरे चुचे दबा रहा था और, और अभी मज़े से मूठ मरवा रहा है, कमीने तेरे को शरम ऩही
आती" मेरा तो होश ही उड़ गया ये मा क्या बोल रही थी. पर मैने देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाए जा रहा था. तभी मा मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर हंसने लगी और हँसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पड़ लगा दिया. मैने कभी भी इस से पहले मा को ना तो ऐसे बोलते देखा था ना ही इस तरह से व्यवहार करते हुए नही देखा था इसलिए मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था. पर उनके हसते हुए थप्पड़ लगाने पर तो मुझे और भी ज़यादा आशचर्य हुआ की आख़िर ये चाहती क्या है. और मैने बोला की "माफ़ कर दो मा अगर कोई ग़लती हो गई हो तो" . इस पर मा ने मेरे गालो को हल्के सहलाते हुए कहा की "ग़लती तो तू कर बैठा है बेटे अब, केवल ग़लती की सज़ा मिलेगी तुझे,"

मैने कहा "क्या ग़लती हो गई मेरे से मा"

सबसे बरी ग़लती तो ये है की तू खाली घूर घूर के देखता है बस, करता धरता तो कुछ है ऩही, खाली घूर घूर के कितने दिन देखता रहेगा" .

"क्या करू मा, मेरी तो कुचछ समझ में ऩही आ रहा"

"साले बेवकूफ़ की औलाद, अर्रे करने के लिए इतना कुछ है और तुझे समझ में ही ऩही आ रहा है",

"क्या मा बताओ ना, "

"देख अभी जैसे की तेरा मन कर रहा है की तू मेरे अनारो से खेले,
उन्हे दबाए, मगर तू ऩही वो काम ना कर के केवल मुझे घूरे जा रहा है, बोल तेरा मन कर रहा है की ऩही, बोल ना"

"हाँ , मा मन तो मेरे बहुत कर रहा है,

"तो फिर दबा ना, मैं जैसे तेरे औज़ार से खेल रही हू वैसे ही तू मेरे समान से खेल, दबा बेटा दबा, बस फिर क्या था मेरी तो बांछे खिल गई मैने दोनो हथेलियो में दोनो चुचो को थाम लिया और हल्के हल्के उन्हे दबाने लगा., मा बोली "शाबाश , ऐसे ही दबाने का. जितना दबाने का मन उतना दबा ले, कर ले मज़े".

मैं फिर पूरे जोश के साथ हल्के हाथो से उसके चुचियों को दबाने लगा. ऐसी मस्त मस्त चुचिया पहली बार किसी ऐसे के हाथ लग जाए जिसने पहले किसी चुचि को दबाना तो दूर छुआ तक ना हो तो बंदा तो जन्नत में पहुच ही जाएगा ना. मेरा भी वही हाल था, मैने हल्के हाथो से संभाल संभाल के चुचियों को दबाए जा रहा था. उधर मा के हाथ तेज़ी से मेरे लंड पर चल रहे थे, तभी मा जो अब तक काफ़ी उत्तेजित हो चुकी थी ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा "क्यों मज़ा आ रहा है ना, ज़ोर से दबा मेरे चुचयों को बेटा तभी पूरा मज़ा मिलेगा, मसलता जा, देख अभी तेरा माल मैं कैसे निकलती हू".

मैने ज़ोर से चुचियों को दबाना शुरू कर दिया था, मेरा मन कर रहा था की मैं मा के ब्लाउज खोल के चुचियों को नंगा करके उनको देखते हुए दबाऊं , इसीलये मैने मा से पुछा " मा तेरा ब्लाउज खोल दू?"

इस पर वो मुस्कुराते हुए बोली "ऩही अभी रहने दे, मैं जानती हू की तेरा बहुत मन कर रहा होगा की तू मेरी नंगी चुचियों को देखे मगर, अभी रहने दे"

मैं बोला ठीक है मा, पर मुझे लग रहा हाई की मेरे औज़ार से माल निकालने वाला है ".

इस पर मा बोली "कोई बात ऩही बेटा निकालने दे, तुझे मज़ा आ रहा है ना?"

"हा मा मज़ा तो बहुत आ रहा है"

"अभी क्या मज़ा आया है बेटे अभी तो और आएगा, अभी तेरा माल निकाल ले फिर देख मैं तुझे कैसे जन्नत की सैर कराती हू" कह कर मा ने अपना हाथ और ज़यादा तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया. मेरे पानी अब बस निकालने वाला ही था, मैने भी अपना हाथ अब तेज़ी के साथ मा के अनारो पर चलाना शुरू कर दिया था. मेरा दिल कर रहा था उन प्यारे प्यारे चुचियों को अपने मुँह में भर के चुसू, लेकिन वो अभी संभव ऩही था. मुझे केवल चुचियों को दबा दबा के ही संतोष करना था. ऐसा लग रहा था जैसे की मैं अभी सातवे आसमान पर उड़ रहा था, मैं भी खूब ज़ोर ज़ोर सिसकते हुए बोलने लगा "ओह मा, हा मा और ज़ोर से मस्लो, और ज़ोर से मूठ मारो, निकाल दो मेरा सारा पानी"

पर तभी मुझे ऐसा लगा जैसे की मा ने लंड पर अपनी पकर ढीली कर दी है. लंड को छोड़ कर मेरे आंडो को अपने हाथ से पकड़ के सहलाते हुए मा बोली "अब तुझे एक नया मज़ा चखती हू, ठहर जा" और फिर धीरे धीरे मेरे लंड पर झुकने लगी, लंड को एक हाथ से पकडे हुए वो पूरी तरह से मेरे लंड पर झुक गई और अपने होठों को खोल कर मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया. मेरे मुँह से एक आह निकल गई, मुझे विश्वास ऩही हो रहा था की वो ये क्या कर रही है.

मैं बोला "ओह मा ये क्या कर रही हो, है छोड़ ना बहुत गुदगुदी हो रही है"

मगर वो बोली "तो फिर मज़े ले इस गुदगुदी के, करने दे तुझे अच्छा लगेगा".

" मा क्या इसको मुँह में भी लिया जाता,"

"हा मुँह में भी लिया जाता है और दूसरी जगहो पर भी, अभी तू मुँह में डालने का मज़ा लूट" कह कर तेज़ी के साथ मेरे लंड को चूसने लगी, मेरी तो कुछ समझ में ऩही आ रहा था, गुदगुदी और सनसनी के कारण मैं मज़े के सातवे आसमान पर झूल रहा था. मा ने पहले मेरे लंड के सुपारे को अपने मुँह में भरा और धीरे धीरे चूसने लगी, और मेरी ओर बड़ी सेक्सी अंदाज़ में अपने नज़रो को उठा के बोली, "कैसा लाल लाल सुपारा है रे तेरा, एकदम पहरी आलू के जैसे, लगता है अभी फट जाएगा, इतना लाल लाल सुपरा कुंवारे लड़कों का ही होता है" फिर वो और कस कस के मेरे सुपारे को अपने होंठो में भर भर के चूसने लगी. नदी के किनारे, पेड़ की छावं में मुझे ऐसा मज़ा मिल रहा था जिसकी मैने आज तक कल्पना तक ऩही की थी. मा अब मेरे आधे से अधिक लौरे को अपने मुँह में भर चुकी थी और अपने होंठो को कस के मेरे लंड के चारो तरफ से दबाये हुए धीरे धीरे उपर सुपारे तक लाती थी और फिर उसी तरह से सरकते हुए नीचे की तरफ ले जाती थी. उसकी शायद इस बात का अच्छी तरह से अहसास था की ये मेरा किसी औरत के साथ पहला संबंध है और मैने आज तक किसी औरत हाथो का स्पर्श अपने लंड पर ऩही महसूस किया है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वो मेरे लंड को बीच बीच में ढीला भी छोड़ देती थी और मेरे अंडों को दबाने लगती थी. वो इस बात का पूरा ध्यान रखे हुए थी की मैं जल्दी ना झाडूं . मुझे भी गजब का मज़ा आ रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे की मेरा लंड फट जाएगा मगर. मुझसे अब रहा ऩही जा रहा था मैने मा से कहा " मा, अब निकाल जाएगा मा, मेरा माल अब लगता है ऩही रुकेगा".

उसने मेरी बातो की ओर कोई ध्यान ऩही दिया और अपनी चूसाई जारी रखी.

मैने कहा "मा तेरे मुँह में ही निकल जाएगा, जल्दी से अपना मुँह हटा लो"

इस पर मा ने अपना मुँह थोरी देर के लिए हटाते हुए कहा की "कोई बात ऩही मेरे मुँह में ही निकाल मैं देखना चाहती हू की कुंवारे लड़के के पानी का स्वाद कैसा होता है" और फिर अपने मुँह में मेरे लंड को कस के जकड़ते हुए उसने अब अपना पूरा ध्यान केवल अब मेरे सुपाडे पर लगा दिया और मेरे सुपारे को कस कस के चूसने लगी, उसकी जीभ मेरे सुपारे के कटाव पर बार बार फिर रही थी. मैं सिसकते हुए बोलने लगा "ओह मा पी जाओ तो फिर, चख लो मेरे लंड का सारा पानी, ले लो अपने मुँह में, ओह ले लो, कितना मज़ा आ रहा है, ही मुझे ऩही पाता था की इतना मज़ा आता है, ही निकाल गया, निकाल गया, मा-निकला .

तभी मेरे लंड का फ़ौवारा छुट पड़ा और. तेज़ी के साथ भालभाला कर मेरे लंड से पानी गिरने लगा. मेरे लंड का सारा सारा पानी सीधे मा के मुँह में गिरता जा रहा था. और वो मज़े से मेरे लंड को चूसे जा रही थी. कुछ ही देर तक लगातार वो मेरे लंड को चुस्ती रही, मेरा लंड अब पूरी तरह से उसके थूक से भीग कर गीला हो गया था और धीरे धीरे सिकुड़ रहा था. पर उसने अब भी मेरे लंड को अपने मुँह से ऩही निकाला था और धीरे धीरे मेरे सिकुड़े हुए लंड को अपने मुँह में किसी चॉक्लेट की तरह घुमा रही थी. कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद जब मेरी साँसे भी कुछ शांत हो गई तब मा ने अपना चेहरा मेरे लंड पर से उठा लिया और अपने मुँह में जमा मेरे वीर्या को अपना मुँह खोल कर दिखाया और हल्के से हंस दी. फिर उसने मेरा सारा पानी गटक लिया और अपने सारी पल्लू से अपने होंठो को पोछती हुई बोली, " मज़ा आ गया, सच में कुंवारे लंड का पानी बड़ा मीठा होता है, मुझे ऩही पाता था की तेरा पानी इतना मजेदार होगा" फिर मेरे से पुछा "मज़ा आया की ऩही", मैं क्या जवाब देता, जोश ठंडा हो जाने के बाद मैने अपने सिर को नीचे झूका लिया था, पर गुदगुदी और सनसनी तो अब भी कायम थी, तभी मा ने मेरे लटके हुए लौरे को अपने हाथो में पकड़ा और धीरे से अपने साड़ी के पल्लू से पोछती हुई पूछी "बोल ना, मज़ा आया की ऩही," मैने शर्माते हुए जवाब दिया "हाँ मा बहुत मज़ा आया, इतना मज़ा कभी ऩही आया था",

तब मा ने पुछा "क्यों? अपने हाथ से नही करता था क्या",

"करता हूँ मा, पर उतना मज़ा ऩही आता था जितना आज आया है"

"औरत के हाथ से करवाने पर तो ज़यादा मज़ा आएगा ही, पर इस बात का ध्यान रखियो की किसी को पता ना चले "

"हा मा किसी को पता ऩही चलेगा"

तब मा उठ कर खडी हो गई, अपने साड़ी के पल्लू को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउज को ठीक किया और मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए अपने बुर के सामने अपने साड़ी को हल्के से दबाया और साड़ी को चूत के उपर ऐसे रगडा जैसे की पानी पोछ रही हो. मैं उसकी इस क्रिया को बरे गौर से देख रहा था. मेरे ध्यान से देखने पर वो हसते हुए बोली "मैं ज़रा पेशाब कर के आती हू, तुझे भी अगर करना है तो चल अब तो कोई शरम ऩही है" मैं हल्के से शरमाते हुए मुस्कुरा दिया तो बोली "क्यों अब भी शर्मा रहा है क्या". मैने इस पर कुछ ऩही कहा और चुप चाप उठ कर खडा हो गया. वो आगे चल दी और मैं उसके पीछे पीछे चल दिया. जब हम झाड़ियों के पास पहुच गये तो मा ने एक बार पीछे मुड कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरई फिर झाड़ियों के पीछे पहुच कर बिना कुछ बोले अपने साड़ी उठा के पेशाब करने बैठ गई. उसकी दोनो गोरी गोरी जंघे उपर तक नंगी हो चुकी थी और उसने शायद अपने साड़ी को जान बुझ कर पीछे से उपर उठा दिया था जिस के कारण उसके दोनो चूतर भी नुमाया हो रहे थे. ये सीन देख कर मेरा लंड फिर से फुफ्करने लगा. उसका गोरे गोरे चूतर बड़े कमाल के लग रहे थे. मा ने अपने चूतडों को थोरा सा उचकाया हुआ था जिस के कारण उसके गांड की खाई भी दिख रही थी. हल्के भूरे रंग की गांड की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा उस गांड की खाई में धीरे धीरे उंगली चलाऊं और गांड की भूरे रंग की छेद को अपनी उंगली से छेड़ूँ और देखूं की कैसे पाक-पकती है. तभी मा पेशाब कर के उठ खडी हुई और मेरी तरफ घूम गई. उसने अभी तक साड़ी को अपने जाँघों तक उठा रखा था. मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए उसने अपने साड़ी को छोड़ दिया और नीचे गिरने दिया, फिर एक हाथ को अपनी चूत पर साड़ी के उपर से ले जा के रगड़ने लगी जैसे की पेशाब पोछ रही हो और बोली "चल तू भी पेशाब कर ले . खडा खडा मुँह क्या टाक रहा है".

मैं जो की अभी तक इस शानदार नज़ारे में खोया हुआ था थोडा सा चौंक गया पर फिर और हकलाते हुए बोला "हा हा अभी करता हू,,,,,, मैने सोचा पहले तुम कर लो इसलिए रुका था". फिर मैने अपने पाजामा के नाड़े को खोला और सीधा खड़े खड़े ही मूतने की कोशिश करने लगा. मेरा लंड तो फिर से खड़ा हो चुका था और खड़े लंड से पेशाब ही ऩही निकाल रहा था. मैने अपनी गांड तक का ज़ोर लगा दिया पेशाब करने के चक्कर में.
मा वही बगल में खडी हो कर मुझे देखे जा रही थी. मेरे खरे लंड को देख कर वो हसते हुए बोली "चल जल्दी से कर ले पेशाब, देर हो रही है घर भी जाना है" मैं क्या बोलता पेशाब तो निकाल ऩही रहा था. तभी मा ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को अपने हाथो में पकड़ लिया और बोली "फिर से खाद कर लिया, अब पेशाब कैसे उतरेगा' ? कह कर लंड को हल्के हल्के सहलाने लगी, अब तो लंड और टाइट हो गया पर मेरे ज़ोर लगाने पर पेशाब की एक आध बूंदे नीचे गिर गई,

मैने मा से कहा "अर्रे तुम छोडो ना इसको, तुमहरे पकड़ने से तो ये और खड़ा हो जाएगा, छोडो "

और मा का हाथ अपने लंड पर से झटकने की कोशिश करने लगा, इस पर मा ने हसते हुए कहा "मैं तो छोड़ देती हू पर पहले ये तो बता की खडा क्यों किया था, अभी दो मिनिट पहले ही तो तेरा पानी निकाला था मैने, और तूने फिर से खडा कर लिया, कमाल का लड़का है तू तो". मैं कुछ ऩही बोला, अब लंड थोडा ढीला पड़ गया था और मैने पेशाब कर लिया. मूतने के बाद जल्दी से पाजामा के नाड़े को बाँध कर मैं मा के साथ झारियों के पीछे से निकल आया, मा के चेहरे पर अब भी मंद मंद मुस्कान आ रही थी. मैं जल्दी जल्दी चलते हुए आगे बढ़ा और कपडे के गट्ठर को उठा कर अपने माथे पर रख लिया, मा ने भी एक गट्ठर को उठा लिया और अब हम दोनो मा बेटे जल्दी जल्दी गाँव के पगडंडी वाले रास्ते पर चलने लगे.

शाम होते होते तक हम अपने घर पहुच चुके थे. कपड़ों के गट्ठर को इस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद हमने हाथ मुँह धोया और फिर मा ने कहा कि बेटा चल कुछ खा पी ले. भूख तो वैसे मुझे नहीं लगी ऩही थी (दिमाग़ में जब सेक्स का भूत सवार हो तो भूख तो वैसे भी मार जाती हाई) पर फिर भी मैने अपना सिर सहमति में हिला दिया. मा ने अब तक अपने कपड़ों को बदल लिया था, मैने भी अपने पाजामा को खोल कर उसकी जगह पर लूँगी पहन ली क्यों की गर्मी के दिनों में लूँगी ज्यादा आरामदायक होती है . मा रसोई घर में चली गई.
रात के 9:30 ही बजे थे. पर गाँव में तो ऐसे भी लोग जल्दी ही सो जाया करते है. हम दोनो मा बेटे आ के बिछावन पर लेट गये. बिछावन पर मेरे पास ही मा भी आ के लेट गई थी. मा के इतने पास लेटने भर से मेरे शरीर में एक गुदगुदी सी दौड़ गई. उसके बदन से उठने वाली खुशबु मेरी सांसो में भरने लगी और मैं बेकाबू होने लगा था. मेरा लंड धीरे धीरे अपना सिर उठाने लगा था. तभी मा मेरी ओर करवट कर के घूमी और पुछा "बहुत तक गये हो ना"?
"हाँ , माँ , जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज्यादा हो ही जाती है"
"हाँ , मुझे भी बड़ी थकावट लग रही है, जैसे पूरा बदन टूट रहा हो"
"मैं दबा दूँ , थोड़ी थकान दूर हो जाएगी"
"ऩही रे, रहने दे तू, तू भी तो थक गया होगा"
"ऩही माँ उतना तो ऩही थका की तेरी सेवा ना कर सकु"
माँ के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वो हँसते हुए बोली....."दिन में इतना कुछ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ़ गई होगी"
"नही दिन में थकान बढ़ने वाला तो कुछ ऩही हुआ था".

इस पर माँ थोड़ा सा और मेरे पास सरक कर आई, माँ के सरकने पर मैं भी थोड़ा सा उसकी तरफ सरका. हम दोनो की साँसे अब आपस में टकराने लगी थी. माँ ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जाँघो को सहलाने लगी. माँ की इस हरकत पर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई और लंड अब फुफ्करने लगा था. माँ ने हल्के से मेरी जाँघो को दबाया. मैने हिम्मत कर के हल्के से अपने हाथो को बढ़ा के माँ की कमर पर रख दिया. वो कुछ ऩही बोली बस हल्का सा मुस्कुरा दी. मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने हाथो से माँ के नंगे कमर को सहलाने लगा. माँ ने केवल पेटिकोट और ब्लाउज पहन रखा था. उसके ब्लाउज के उपर के दो बटन खुले हुए थे. इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नज़र आ रही थी और मन कर रहा था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकड़ लूँ . पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था. माँ ने जब मुझे चुचियों को घूरते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली, "क्या इरादा है तेरा, शाम से ही घूरे जा रहा है, खा जाएगा क्या मेरी चूची को ? "
"नही ,माँ तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहा घूर रहा था? "
"चल झूठे , मुझे क्या पता ऩही चलता, रात में भी वही करेगा क्या"
"क्या माँ ?"
"वही जब मैं सो जाउंगी तो अपना लंड भी मसलेगा और मेरी चुचियों को भी दबाएगा."
"नहीं , माँ "
"तुझे देख के तो यही लग रहा है कि तू फिर से वही हरकत करने वाला है"
"ऩही, मा" .
मेरे हाथ अब माँ की नंगी जाँघो को सहला रहे थे.
"वैसे दिन में मज़ा आया था? " पुछ कर माँ ने हल्के से अपने हाथो को मेरे लूँगी के उपर लंड पर रख दिया.

मैने कहा "हाँ मा, बहुत अच्छा लगा था"
"फिर करने का मन कर रहा है क्या"
"हाँ , माँ "
इस पर उस ने अपने हाथो का दवाब ज़रा सा मेरे लंड पर बढ़ा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी. उस के हाथो का स्पर्श पा के मेरी तो हालत खराब होने लगी थी. ऐसा लग रहा था की अभी के अभी पानी निकल जाएगा.

तभी माँ बोली, "जो काम तू मेरे सोने के बाद करने वाला है वो काम अभी कर ले, चोरी चोरी करने से तो अच्छा है कि जो करना है तू मेरे सामने ही कर ले "

मैं कुछ ऩही बोला और अपने हाथो को हल्के से माँ की चुचियों पर रख दिया. माँ ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकड़ कर अपनी चुचियों पर कस के दबाया और मेरी लूँगी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकड़ लिया. मैने भी अपने हाथो का दवाब उसकी चुचियों पर बढ़ा दिया. मेरे अंदर की आग एकदम भड़क उठी थी और अब तो ऐसा लग रहा था की जैसे इन चुचियों को मुँह में ले कर चूस लू. मैने हल्के से अपने गर्दन को और आगे की तरफ बढ़ाया और अपने होठों को ठीक चुचियों के पास ले गया. मा शायद मेरे इरादे को समझ गई थी. उसने मेरे सिर के पीछे हाथ डाला और अपने चुचियों को मेरे चेहरे से दबा दिया. हम दोनो अब एक दूसरे की तेज़ चलती हुई सांसो को महसूस कर रहे थे. मैने अपने होठों से ब्लाउज के उपर से ही माँ की चुचियों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा मेरा दूसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रहा था कभी उसके मोटे मोटे चूतडों को. माँ ने भी अपना हाथ तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया था और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठिया रही थी. मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. तभी मैने सोचा ऐसे करते करते तो माँ फिर मेरा माल निकल देगी और शायद फिर कुछ देखने भी ऩही दे जबकि मैं आज तो मा को पूरा नंगा करके जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था. इसलिए मैने मा के हाथो को पकड़ लिया और कहा " माँ रूको"
"क्यों मज़ा ऩही आ रहा है क्या, जो रोक रहा है"
"माँ , मज़ा तो बहुत आ रहा है मगर"
"फिर क्या हुआ,"
"फिर माँ , मैं कुछ और करना चाहता हू, ये तो दिन के जैसे ही हो जाएगा"
इस पर माँ मुस्कुराते हुए पूछा " तो तू और क्या करना चाहता है, तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना और कैसे निकलेगा"
"ऩही मा, पानी ऩही निकलना मुझे"
"तो फिर क्या करना है"
"माँ , देखना है"
"क्या देखना है रे"
"माँ , ये देखना है" कह कर मैने एक हाथ सीधा माँ के बुर पर रख दिया.
"बदमाश, ये कैसी तमन्ना पल ली तूने"
" माँ बस एक बार दिखा दो ना"
"इधर आ , मेरे पैरो के बीच में अभी तुझे दिखाती हूँ . पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा समझा"

फिर माँ ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पकड़ा और धीरे धीरे उपर उठाने लगी. मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी मैने धीरे से माँ से कहा "ओह माँ ऐसे ऩही" "
माँ- "तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा"
"माँ , पूरा खोल के दिखाओ ना"
"पूरा खोल के से तेरा क्या मतलब है"
" पूरा कपड़ा खोल के, मेरी बड़ी तमन्ना है की मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखूं "
माँ ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथो में पकड़ लिया और मुठियाने लगी. इस पर मैं बोला "ओह छोड़ दो माँ , ज्यादा करोगी तो अभी निकल जाएगा"
"कोई बात ऩही अभी निकल ले . अगर पूरा खोल के दिखा दूँगी तो फिर तो तेरा देखते ही निकल जाएगा, पूरा खोल के देखना है ना अभी", इतना सुनते ही मेरा दिल तो बल्लियों उछलने लगा.
"हाँ माँ , सच में दिखाओगी ना?"
"हाँ दिखाउंगी , मेरे राजा बेटा, ज़रूर दिखाउंगी , अब तो तू पूरा जवान हो गया है और, काम करने लायक भी हो गया है, अब तो तुझे ही दिखना है सब कुछ और तेरे से अपना सारा काम करवाना है मुझे.

माँ और तेज़ी के साथ मेरे लंड को मुठिया रही थी और बार बार मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंगूठे से दबा भी रही थी.

माँ बोली "अभी जल्दी से तेरा निकल देती हू फिर देख तुझे कितना मज़ा आएगा, अभी तो तेरी ये हालत है की देखते ही झर जाएगा, एक पानी निकल दे फिर देख तुझे कितना मज़ा आता है"
"ठीक है माँ निकाल दो एक पानी, मैं भी तेरी चूची दबाऊं ?"
" अब आया ना लाइन पर. पूछता क्या है, दबा ना, दबा मेरी चुचियों को . इस से तेरा पानी जल्दी निकलेगा, क्या भयंकर लौड़ा है, पता ऩही इस उमर में ये हाल है, जब इस छोकरे के लंड का, तो पूरा जवान होगा तो क्या होगा"
मैने अपने दोनो हथेलियो में माँ की चुचिया भर ली और उन्हे खूब कस कस के दबाने लगा. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे की मैं पागल हो जाउंगा . दोनो चुचिया किसी अनार की तरह से सख़्त और गुदाज़ थी. उसके मोटे मोटे निपल भी ब्लाउज के उपर से पकड़ में आ रहे थे. मैं दोनो निपल के साथ साथ पूरी चूची को ब्लाउज के उपर से पकड़ कर दबाए जा रहा था. माँ के मुँह से अब सिसकारिया निकलने लगी थी और वो मेरा उत्साह बढाते जा रही थी.
"हाँ बेटा, शाबाश... ऐसे ही दबा मेरी चुचियों को, है क्या लंड है, पता ऩही घोड़े का है या सांड का, ठहर जा अभी इसे चूस के तेरा पानी निकलती हूँ " कह कर वो नीचे की तरफ झुक गई जल्दी से मेरा लंड अपने होंठो के बीच क़ैद कर लिया और सुपाडे को होंठो के बीच दबा के खूब कस कस के चूसने लगी जैसे कि पीपे लगा के कोई कोका-कोला पीता है. मैं उसकी चुचियो को अब और ज्यादा ज़ोर से दबा रहा था, मेरी भी सिसकारिया निकलने लगी थी, मेरा पानी अब छूटने वाला ही था.
"रे मेरी माँ निकला रे निकला मेरा निकल गया ओह माँ सारा सारा का सारा पानी तेरे मुँह में ही निकल गया रे". माँ का हाथ अब और तेज गति से चलने लगा ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे पानी को गटागट पीते जा रही है. मेरे लंड के सुपरे से निकले एक-एक बूँद पानी चूस जाने के बाद माँ ने अपने होंठो मेरे को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई मुझे देखने लगी और बोली कैसा लगा.

मैने कहा "बहुत अच्छा ..
और बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गया. मेरे साथ साथ माँ भी लुढ़क के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोड़ी देर तक चूमती रही.थोड़ी देर तक आँख बंद कर के पड़े रहने के बाद जब मैं उठा तो देखा की माँ ने अपनी आँखे बंद कर रखी है और अपने हाथो से अपने चुचियों को हल्के हल्के सहला रही थी. मैं उठ कर बैठ गया और धीरे से माँ के पैरों के पास चला गया. माँ ने अपना एक पैर मोड़े रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ उसका पेटिकोट उसके जाँघों तक उठा हुआ था. पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गैप सा बन गया था. उस गैप से उसकी झाँट अंदर तक नज़र आ रही थी. उसकी गुदज जाँघों के उपर हाथ रख के मैं हल्का सा झुक गया और अंदर तक देखने के लिए. हालाँकि अन्दर रोशनी बहुत कम थी परंतु फिर भी मुझे उसके काले काले झाटों के दर्शन हो गये. झाटों के कारण चूत तो ऩही दिखी परंतु चूत की खुशबु ज़रूर मिल गई. तभी माँ ने अपनी आँखे खोल दी और मुझे अपने जाघों के बीच झकते हुए देख कर बोली "हाय दैया... उठ भी गया तू मैं तो सोच रही थी अभी कम से कम आधा घंटा शांत पडा रहेगा, और मेरी जाँघों के बीच क्या कर रहा है? , देखो इस लड़के को बुर देखने के लिए दीवाना हुआ बैठा है,"

फिर मुझे अपने बाँहो में भर कर मेरे गाल पर चुम्मि काट कर बोली "मेरे लाल को अपनी माँ का बुर देखना है ना, अभी दिखती हू मेरे छोरे , है मुझे ऩही पता था कि तेरे अंदर इतनी बेकरारी है बुर देखने की"
मेरी भी हिम्मत बढ़ गई थी " माँ जल्दी से खोलो और दिखा दो"
"अभी दिखती हू, कैसे देखेगा, बता ना"
"कैसे क्या माँ , खोलो ना बस जल्दी से"
"तो ले ये है मेरे पेटिकोट का नाड़ा . खुद ही खोल के माँ को नंगा कर दे और देख ले"
"हाय , माँ मेरे से ऩही होगा, तुम खोलो ना"
"क्यों ऩही होगा, जब तू पेटिकोट ऩही खोल पाएगा तो आगे का काम कैसे करेगा"
" माँ आगे का भी काम करने दोगी क्या?"
मेरे इस सवाल पर माँ ने मेरे गालो को मसलते हुए कहा , "क्यों आगे का काम ऩही करेगा क्या, अपनी माँ को ऐसे ही प्यासा छोड़ देगा, तू तो कहता था कि तुझे ठंडा कर दूँगा, पर तू तो मुझे गरम कर छोड़ने की बात कर रहा है"
" माँ , मेरा ये मतलब ऩही था, मुझे तो अपने कानो पर विश्वास ऩही हो रहा कि तुम मुझे और आगे बढ़ने दोगी "
"गधे के जैसा लंड होने के साथ साथ तेरा तो दिमाग़ भी गधे के जैसा ही हो गया है, लगता है सीधा खोल के ही पुछना पडेगा , बोल चोदेगा मुझे? , चोदेगा अपनी माँ को, माँ की बुर चाटेगा ? , और फिर उसमे अपना लंड डालेगा, बोल ना."
"हाँ माँ , सब करूँगा, सब करूँगा जो तू कहेगी वो सब करूँगा, है मुझे तो विश्वास ऩही हो रहा की मेरा सपना सच होने जा रहा है, ओह मेरे सपनो में आने वाली परी के साथ सब कुछ करने जा रहा हू"
"क्यों सपनो में तुझे और कोई ऩही मैं ही दिखती थी क्या"
"हा माँ , तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी, पूरे गावं में तुमसे सुंदर कोई ऩही"
"है, मेरे 16 साल का जवान छोकरे को उसकी माँ इतनी सुंदर लगती है क्या?"
"हा माँ , सच में तुम बहुत सुंदर हो और मैं तुम्हे बहुत दिनों से चोदना चाहता हूँ ....पर कह ऩही पाता था"
"कोई बात ऩही बेटा अभी भी कुछ ऩही बिगड़ा है.. वो भला हुआ कि आज मैने खुद ही पहल कर दी, चल आ देख अपनी माँ को नंगा और आज से बन जा उसका सैयां "
कह कर माँ बिस्तर के नीचे उतर गई और मेरे सामने आके खडी हो गई और धीरे धीरे करके अपने ब्लाउज के एक बटन को खोलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे चाँद बादल में से निकल रहा है. धीरे धीरे उसकी गोरी गोरी चुचिया दिखने लगी. ओह गजब की चुचिया थी, देखने से लग रहा था जैसे की दो बड़े बड़े नारियल हों . दोनो तरफ लटक रहे हो. एकदम गोल और आगे से नुकीले तीर के जैसे. चुचियों पर नसों की नीली रेखाएं स्पष्ट दिख रही थी. निपल थोड़े मोटे और एकदम कड़े थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलाबीपन लिए हुए गोल गोल घेरा था. निपल भूरे रंग के थे.

माँ अपने हाथो से अपने चुचियों को नीचे से पकड़ कर मुझे दिखाती हुई बोली "पसंद आई अपनी माँ की चूची , कैसी लगी बेटा बोल ना, फिर आगे का दिखाउंगी "
"हाँ माँ तुम सच में बहुत सुंदर हो, ओह कितनी सुंदर चूची है .....ओह"
माँ ने अपने चुचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुए हल्का सा हिलाया और बोली "खूब सेवा करनी होगी इसकी तुझे, देख कैसे शान से सिर उठाए खडा है इस उमर में भी, तेरे बाप के बस का तो है ऩही अब तू ही इन्हे संभालना" कह कर वो फिर अपने हाथो को अपने पेटिकोट के नाड़ा पर ले गई और बोली "अब देख बेटा तुझे जन्नत का दरवाजा दिखती हूँ , अपनी माँ का स्पेशल मालपुआ देख, जिसके लिए तू इतना तरस रहा था".

कह कर मा ने अपने पेटिकोट के नाड़ा को खोल दिया. पेटिकोट उसके कमर से सरसरते हुए सीधा नीचे गिर गया और माँ ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उछल कर फेंक दिया और बिस्तर के और नज़दीक आ गई फिर बोली " बेटा तूने तो मुझे एकदम बेशरम बना दिया", फिर मेरे लंड को अपने मुट्ठी में भर के बोली "ओह तेरे इस सांड जैसे लंड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी माँ को जी भर के"

मेरी नज़रे माँ के जाँघों के बीच में उसकी मस्त चूत पर टिकी हुई थी. माँ की गोरी गोरी चिकनी रानों के बीच में काले काले झाटों का एक तिकोना बना हुआ था. झांट बहुत ज्यादा बड़े ऩही थे. झांटों के बीच में से उसकी गुलाबी चूत की हल्की झलक मिल रही थी, मैने अपने हाथो को माँ के जाँघों पर रखा और थोडा नीचे झुक कर ठीक चूत के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगा. माँ ने अपने दोनो हाथ को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालो से खेलने लगी फिर बोली "रुक जा ऐसे ऩही दिखेगा तुझे आराम से बिस्तर पर लेट के दिखाती हूँ "
"ठीक है, आ जाओ बिस्तर पर,माँ एक बार ज़रा पीछे घुमो ना"
"ओह, मेरा राजा मेरा पिछवाडा भी देखना चाहता है क्या, चल गांड तो मैं तुझे खड़े खड़े ही दिखा देती हूँ . ले देख अपनी माँ के बुर और गांड को". इतना कह कर वो पीछे घूम गई.

ओह कितना सुंदर दृश्य था वो. इसे मैं अपनी पूरी जिंदगी में कभी ऩही भूल सकता. उस के चूत सच में बड़े खुबसूरत थे. एकदम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गुदज, मांसल. और उस चूत के बीच में एक गहरी लकीर सी बन रही थी. जो कि उसके गांड की खाई थी. मैने उसे को थोडा झुकने को कहा तो वो झुक गई और मै आराम से दोनों मक्खन जैसे चूतडों को पकड के अपने हाथो से मसलते हुए उनके बीच की खाई को देखने लगा. दोनो चूतडों को बीच में गांड की भूरे रंग की छेद फुकफुका रही थी. एकदम छोटी सी गोल छेद, मैने हल्के से अपने हाथ को उस छेद पर रख दिया और हल्के हल्के उसे सहलाने लगा, साथ में मैं चूतडों को भी मसल रहा था. पर तभी माँ आगे घूम गई.

"चल मैं खड़े खड़े थक गई. अब जो करना है बिस्तर पर करेंगे". और वो बिस्तर पर चढ़ गई. पलंग की पुष्ट से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरो को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली "अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता तू देखने के बाद क्या करेगा कुछ मालूम भी है तुझे या ऩही" "
हाँ , माँ तुझे चोदुंगा "
"अच्छा चोदेगा? , पर कैसे ज़रा बता तो सही कैसे चोदेगा "
" मैं पहले तुम्हारी चूत चुसना चाहता हू"
"चल ठीक है चूस लेना, और क्या करेगा"
"ओह और.......... पता नहीं ...
"पता ऩही ये क्या जवाब हुआ पता ऩही, जब कुछ पता ऩही तो माँ पर डोरे क्यों डाल रहा था?"
"ओह माँ मैने पहले किसी को किया ऩही है ना इसलिए मुझे पता ऩही है, मुझे बस थोडा बहुत पता है, जो कि मैने गाँव के लड़कों के साथ सीखा था"
"तो गाँव के छोकरों ने ये ऩही सिखाया कि कैसे किया जाता है, खाली यही सिखाया कि माँ पर डोरे डालो"
"ओह माँ तू तो समझती ही ऩही... अरे वो लोग मुझे क्यों सिखाने लगे कि तुम पर डोरे डालो, वो तो... वो तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो इसलिए मैं तुम्हे देखता था"
"ठीक है चल तेरी बात समझ गई बेटा कि मैं तुझे सुंदर लगती हू पर मेरी इस सुंदरता का तू फायदा कैसे उठाएगा उल्लू ये भी तो बता दे ना, कि खाली देख के मूठ मार लेगा"
" माँ , ऩही मैं तुम्हे चोदना चाहता हूँ , माँ तुम सीखा देना, सीखा दोगी ना ?" कह कर मैने बुरा सा मुँह बना लिया"
"हाँ मेरा बेटा देख तो माँ की लेने के लिए कैसे तड़प रहा, आजा मेरे प्यारे मैं तुझे सब सीखा दूँगी, तेरे जैसे लंड वाले बेटे को तो कोई भी माँ सीखना चाहेगी, तुझे तो मैं सीखा पढ़ा के चुदाई का बादशाह बना दूँगी, आजा पहले अपनी माँ की चुचियों से खेल ले जी भर के फिर तुझे चूत से खेलना सिखाती हूँ बेटा"
मैं माँ के कमर के पास बैठ गया और माँ तो पूरी नंगी पहले से ही थी मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे धीरे सहलाने लगा. मेरे हाथ में शायद दुनिया की सबसे खूबसूरत चुचिया थी. ऐसी चुचिया जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाए. मैं दोनो चुचियों की पूरी गोलाई पर हाथ फेर रहा था. चुचिया मेरी हथेली में ऩही समा रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में घूम रहा हू. माँ की चुचियो का स्पर्श ग़ज़ब का था. मुलायम, गुदज, और सख़्त गठीलापन. ये सब अहसास शायद अच्छी गोल मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है. मुझे इन सारी चीज़ो का एक साथ आनंद मिल रहा था. ऐसी चूची दबाने का सौभाग्य नसीब वालो को ही मिलता है इस बात का पता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला जब मैने दूसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया.
माँ के मुँह से हल्की हल्की आवाज़े आनी शुरू हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खीच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनूठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया. हम दोनो के होंठ एक दूसरे से मिल गये और मैं माँ की दोनो चुचियों को पकडे हुए उसके होंठो का रस ले रहा था. कुछ ही सेकेंड्स में हमारे जीभ आपस में टकरा रहे थे. मेरे जीवन का ये पहला चुंबन करीब दो तीन मिनिट्स तक चला होगा. माँ के पतले होंठो को अपने मुँह में भर कर मैने चूस चूस कर और लाल कर दिया. जब हम दोनो एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हाँफ रहे थे. मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचिया पर थे और मैं अब उनको ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. माँ के मुँह से अब और ज्यादा तेज सिसकारिया निकलने लगी थी.

माँ ने सिसकते हुए मुझसे कहा " ओह ओह स्स्सि......शाबाश .. ऐसे ही प्यार करो मेरी चुचियो से, हल्के हल्के आराम से मसलो बेटा, ज्यादा ज़ोर से ऩही, ऩही तो तेरी माँ को मज़ा ऩही आएगा, धीरे धीरे मसलो "
.मेरे हाथ अब माँ की चुचियों के निपल से खेल रहे थे. उसके निपल अब एकदम सख़्त हो चुके थे. हल्का कालापन लिए हुए गुलाबी रंग के निपल कड़े होने के बाद ऐसे लग रहे थे जैसे दो गोरे गुलाबी पहाड़ियों पर बादाम की गिरी रख दी गई हो. निपल के चारो ओर उसी रंग का घेरा थे. ध्यान से देखने पर मैने पाया कि उस घेरे पर छोटे छोटे दाने से उगे हुए थे. मैं निपलो को अपनी दो उंगलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था और प्यार से उनको खींच रहा था. जब भी मैं ऐसा करता तो माँ की सिसकियाँ और तेज हो जाती थी. माँ की आँखें एकदम नशीली हो चुकी थी और वो सिसकारी लेते हुए बुदबुदाने लगी "ओह बेटा ऐसे ही, ऐसे ही, तुझे तो सीखने की भी ज़रूरत ऩही है रे, ओह क्या खूब मसल रहा है मेरे प्यारे , ऐसे ही कितने दिन हो गये जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या प्यार किया है, कैसे तरसती थी मैं कि काश कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे . प्यार से सहला दे, पर आख़िर में अपना बेटा ही काम आया, आजा मेरे लाल" कहते हुए उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चुचियों पर झुका लिया. मैं माँ का इशारा समझ गया और मैने अपने होंठ माँ की चुचियों से भर लिए. मेरे एक हाथ में उसकी एक चूची और दूसरी चूची पर मेरे होंठ चिपके हुए थे. मैने धीरे धीरे उसके चुचियों को चूसना शुरू कर दिया था. मैं ज्यादा से ज्यादा चूची को अपने मुँह में भर के चूस रहा था. मेरे अंदर का खून इतना उबाल मरने लगा था कि एक दो बार मैने अपने दाँत भी चुचियों पर गड़ा दिए थे, जिस से माँ के मुँह से अचानक से चीख निकल गई थी. पर फिर भी उसने मुझे रोका ऩही वो अपने हाथो को मेरे सिर के पीछे ले जा कर मुझे बालो से पकड़ के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और ज़ोर ज़ोर से दबा रही थी और दांत काटने पर एकदम से घुटि घुटि आवाज़ में चीखते हुए बोली "ओह धीरे बेटा, धीरे से चूसो चुछी को ऐसे ज़ोर से ऩही काटते है",

फिर उसने अपनी चूची को अपने हाथ से पकडा और उसको मेरे मुँह में घुसाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी चूची को पूरा का पूरा मेरे मुँह में घुसा देना चाहती हो और कहा "ओह राजा मेरे निपल को चूसो ज़रा, पूरे निपल को मुँह में भर लो और कस कस के चूसो राजा.. जैसे बचपन में दूध पीने के लिए चूस्ते थे".
मैने अब अपना ध्यान निपल पे कर दिया और निपल को मुँह में भर कर अपनी जीभ उसके चारो तरफ गोल गोल घूमते हुए चूसने लगा. मैं अपनी जीभ को निपल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था. निपल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए निपल को चूसने पर माँ एकदम मस्त हो जा रही थी और उसके मुँह से निकलने वाली सिसकिया इसकी गवाही दे रही थी. मैं उसकी चीखे और सिसकिया सुन कर पहले पहल तो डर गया था पर माँ के द्वारा ये समझाए जाने पर की ऐसी चीखे और सिसकिया इस बात को बतला रही है कि उसे मज़ा आ रहा है तो फिर दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था. जिस चूची को मैं चूस रहा था वो अब पूरी तरह से मेरे लार और थूक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी फिर भी मैं उसे चूसे जा रहा था, तभी माँ ने मेरे सिर को अपनी उस चूची से हटा के अपनी दूसरी चूची की तरफ करते हुए कहा " खाली इसी चूची को चूस्ता रहेगा, दूसरी को भी चूस, उसमे भी वही स्वाद है", फिर अपनी दूसरी चुची को मेरे मुँह में घुसाते हुए बोली "इसको भी चूस चूस के लाल कर दे मेरे लाल, दूध निकल दे मेरे सैय्या, एकदम आम के जैसे चूस और सारा रस निकल दे अपनी माँ की चुचियों का, किसी काम की ऩही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आएँगी" मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहली वाली चुची दबाते हुए दूसरी को पूरे मनोयोग से चूसने लगा. माँ सिसकिया ले रही थी और चुसवा रही थी . कभी कभी अपना हाथ मेरे कमर के पास ले जा के मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड के मरोड़ रही थी कभी अपने हाथो से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी. इस तरह काफ़ी देर तक मैं उसकी चुचियों को चूसता रहा, फिर माँ ने खुद अपने हाथो से मेरा सिर पकड के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी. माँ की बायीं चुची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी जबकि दाहिनी चुची पर लगा थूक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचिया लाल हो चुकी थी, और निपलो का रंग हल्का काला से पूरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चूसने पर खून का दौरा भर जाने के कारण हुआ था).
माँ ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खीच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुंबन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली "खाली दूध ही पियेगा या मालपुआ भी खायेगा , देख तेरा मालपुआ तेरा इंतेज़ार कर रहा है राजा"

मैने भी माँ के होंठो का चुंबन लिया और फिर उसके भरे भरे गालो को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा और फिर उसके नाक को चूमा और फिर धीरे से बोला "ओह माँ तुम सच में बहुत सुंदर हो"

इस पर माँ ने पुछा - "क्यों मज़ा आया ना चूसने में"
"हा माँ , गजब का मज़ा आया, मुझे आज तक ऐसा मज़ा कभी ऩही आया था".

तब माँ ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा " नीचे और भी मज़ा आएगा, यहाँ तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है, आजा बेटे आज तुझे असली मालपुआ खिलती हूँ "

मैं धीरे से खिसक कर माँ के पैरो पास आ गया. माँ ने अपने पैरो को घुटने के पास से मोड कर फैला दिया और बोली "यहाँ , बीच में, दोनो पैर के बीच में आ के बैठ तब ठीक से देख पाएगा अपनी माँ का खजाना"

मैं उठ कर माँ के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका, सामने मेरे वो चीज़ थी जिसको देखने के लिए मैं मरा जा रहा था. माँ ने अपनी दोनो जांघें फैला दी और अपने हाथो को अपने बुर के उपर रख कर बोली "ले देख ले अपना मालपुआ, अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा"

मेरी खुशी का तो ठिकाना ऩही था. सामने माँ की खुली जाँघो के बीच झांटों का एक तिकोना सा बना हुआ था. इस तिकोने झांटों के जंगल के बीच में से माँ की फूली हुए गुलाबी बुर का चीड़ झाँक रहा था जैसे बादलों के झुरमुट में से चाँद झांकता है. मैने अपने हाथो को माँ के चिकने जाँघो पर रख दिया और थोडा सा झुक गया. उसके बुर के बाल बहुत बड़े बड़े ऩही थे छोटे छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकीर से चीरी हुई थी. मैने अपने दाहिने हाथ को जाँघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा "माँ मैं इसे छू लूँ ?......."
"छू ले, तेरे छुने के लिए ही तो खोल के बैठी हूँ "
मैने अपने हाथो को माँ की चूत को उपर रख दिया. झांट के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे और ऐसा लग रहा थे, हालाँकि आम तौर पर झांट के बाल मोटे होते है और उसके झांट के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे. हल्के हल्के मैं उन बालो पर हाथ फिरते हुए उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रहा था. अब चूत की दरार और उसकी मोटी मोटी फांके स्पष्ट रूप से दिख रही थी. माँ का बुर एक फूला हुआ और गद्देदार पावरोटी की तरह लगता था. चूत की मोटी मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी. मेरे से रहा ऩही गया और मैं बोल पडा "ओह मा ये तो सचमुच में मालपुए के जैसा फूला हुआ है".
"हाँ बेटा यही तो तेरा असली मालपुआ है. आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे यही खाना"
"हाँ माँ . मैं तो हमेशा यही मालपुआ खाउंगा , ओह माँ देखो ना इस से तो रस भी निकल रहा है" (चूत से रिस्ते हुए पानी को देख कर मैने कहा).
"बेटा यही तो असली माल है हम औरतो का, ये रस मैं तुझे अपनी बुर की थाली में सज़ा कर खिलाउंगी , दोनो फाँक को खोल के देख कैसा दिखता है, हाथ से दोनो फाँक पकड़ कर खीच कर बुर को चीर कर देख"
सच बताता हूँ . दोनो फांको को चिर कर मैने जब चूत के गुलाबी रस से भीगे छेद को देखा तो मुझे यही लगा कि मेरा तो जनम सफल हो गया है. चूत के अंदर का भाग एकदम गुलाबी था और रस से भीगा हुआ था जब मैने उस चीर को छुआ तो मेरे हाथो में चिपचिपा सा रस लग गया. मैने उस रस को वही बिस्तर के चादर पर पोछ दिया और अपने सिर को आगे बढ़ा कर माँ के बुर को चूम लिया. माँ ने इस पर मेरे सिर को अपने चूत पर दबाते हुए हल्के से सिसकते हुए कहा "बिस्तर पर क्यों पोछ दिया, उल्लू, यही माँ का असली प्यार है जो कि तेरे लंड को देख के चूत के रास्ते छलक कर बाहर आ रहा है, इसको चख के देख, चूस ले इसको "
"हाँ माँ मैं तेरे बुर को जरुर चुसुंगा".
"हाँ बेटा चूस ले अपनी माँ के चूत के सारे रस को, दोनो फांको को खोल के उसमे अपनी जीभ डाल दे और चूस, और ध्यान से देख तू तो बुर के केवल फांको को देख रहा है, देख मैं तुझे दिखाती हू"

और माँ ने अपने चूत को पूरा फैला दिया और अंगुली रख कर बताने लगी "देख ये जो छोटा वाला छेद है ना वो मेरे पेशाब करने वाला छेद है, बुर में दो - दो छेद होते है, उपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचे वाला जो ये बड़ा छेद है वो चुदवाने के काम आता है इसी छेद में से रस निकालता है ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चूत को छोड़ सके, और बेटा ये जो पेशाब वाले छेद के ठीक उपर जो ये नुकीला सा निकला हुआ है वो क्लिट कहलाता है और ये औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है. इसको छूटे ही औरत एकदम गरम हो जाती है, समझ में आया?"
"हाँ माँ , आ गया समझ में . हाय , कितनी सुंदर है ये तुम्हारी बुर, मैं चाटुं अब इसे माँ .."

"हाँ बेटा, अब तू चाटना शुरू कर दे, पहले पूरी बुर के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाट फिर मैं आगे बताती जाती हूँ कि कैसे कैसे करना है"
मैने अपनी जीभ निकाल ली और माँ की बुर पर अपने ज़ुबान को फिरना शुरू कर दिया, पूरी चूत के उपर मेरी जीभ चल रही थी और मैं फूली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी ज़बान से उपर से नीचे तक चाट रहा था. अपनी जीभ को दोनो फांको के उपर फेरते हुए मैं ठीक बुर के दरार पर अपनी जीभ रखी और धीरे धीरे उपर से नीचे तक पूरे चूत की दरार पर जीभ को फिराने लगा, बुर से रिस रिस कर निकालता हुआ रस जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मेरे मुझे मिल रहा था. जीभ जब चूत के उपरी भाग में पहुच कर क्लिट से टकराती थी तो मा की सिसकिया और भी तेज़ हो जाती थी. माँ ने अपने दोनो हाथो को शुरू में तो कुछ देर तक अपनी चुचियों पर रखा था और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही मगर बाद में उसने अपने हाथो को मेरे सिर के पीछे लगा दिया और मेरे बालो को सहलाते हुए मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी. मेरी चूत चुसना बदस्तूर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि माँ को सबसे ज्यादा मज़ा अपनी क्लिट की चूसाने में आ रहा है इसलिए मैने इस बार अपने जीभ को नुकीला कर के क्लिट से सटा दिया और केवल क्लिट पर अपनी जीभ को तेज़ी से चलाने लगा. मैं बहुत तेज़ी के साथ क्लिट के उपर जीभ चला रहा था और फिर पूरे क्लिट को अपने होंठो के बीच दबा कर ज़ोर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा, माँ ने उत्तेजना में अपने चूतडों को उपर उछाल दिया और ज़ोर से सिसकिया लेते हुए बोली "है दैया, उईईइ मा सी सी..... चूस ले ओह चूस ले मेरे भगनसे को ओह, सी क्या खूब चूस रहा है रे तू, ओह मैने तो सोचा भी ऩही थऽआअ की तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी, हाय रे बेटा तू तो कमाल का निकला ओह ऐसे ही चूस अपने होंठो के बीच में भगनसे को भर के इसी तरह से चूस ले, ओह बेटा चूसो, चूसो बेटा......"
माँ के उत्साह बढ़ने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी और मैं दुगुने जोश के साथ एक कुत्ते की तरह से लॅप लॅप करते हुए पूरे बुर को चाटे जा रहा था. अब मैं चूत के भगनसे के साथ साथ पूरे चूत के माँस (गुड्डे) को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था और, माँ की मोटी फूली हुई चूत अपने झाटों समेत मेरे मुँह में थी. पूरी बुर को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुँह में भर कर चूसने के बाद मैने अपने होंठो को खूल कर चूत के चोदने वाले छेद के सामने टिका दिया और बुर के होंठो से अपने होंठो को मिला कर मैने खूब ज़ोर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया. बुर का नशीला रस रिस रिस कर निकल रहा था और सीधा मेरे मुँह में जा रहा था. मैने कभी सोचा भी ऩही था की मैं चूत को ऐसे चुसूंगा या फिर चूत की चूसाई ऐसे की जाती है, पर शायद चूत सामने देख कर चूसने की कला अपने आप आ जाती है. फुददी और जीभ की लड़ाई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है कि इसे सीखने और सीखाने की ज़रूरत ऩही पड़ती. , बस जीभ को फुददी दिखा दो बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है. माँ की सिसकिया और शाबाशी और तेज हो चुकी थी, मैने अपने सिर को हल्का सा उठा के मा को देखते हुए अपने बुर के रस से भीगे होंठो से माँ से पुछा, "कैसा लग रहा है माँ , तुझे अच्छा लग रहा है?"
माँ ने सिसकते हुए कहा " हाय बेटा, मत पुछ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे लाल, इसी मज़े के लिए तो तेरी माँ तरस रही थी. चूस ले मेरे बुर को और ज़ोर से चुस्स्स्स्सस्स.. . सारा रस पी लीई मेरे सैय्या, तू तो जादूगर है रीईईई, तुझे तो कुछ बताने की भी ज़रूरत ऩही, है मेरे बुर के फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चूस बेटा, और उसमे अपने जीभ को लिबलिबते हुए अपनी जीभ को मेरी चूत के अंदर तक घुमा दे, हाय घुमा दे राजा बेटा घुमा दे...."

माँ के बताए हुए रास्ते पर चलना तो बेटे फ़र्ज़ बनता है और उस फ़र्ज़ को निभाते हुए मैने बुर के दोनो फांको को फैला दिया और अपनी जीभ को उसके चूत में पेल दिया. बर के अंदर जीभ घुसा कर पहले तो मैने अपनी जीभ और उपरी होंठ के सहारे बुर के एक फाँक को फाड़ कर के खूब चूसा फिर दूसरी फाँक के साथ भी ऐसा ही किया . फिर चूत को जितना चिदोर सकता था उतना चिदोर कर अपने जीभ को बुर के बीच में डाल कर उसके रस को चटकारे ले कर चाटने लगा. चूत का रस बहुत नशीला था और माँ की चूत कामो-उत्तेजना के कारण खूब रस छोड़ रही थी रुँघहीन, हल्का चिपचिपा रस पीने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था,

माँ धीमी आवाज़ में चीखते हुए बोल पड़ी "ओह चाटो, ऐसे ही चाटो .. मेरे राजा, चाट चाट के मेरे सारे रस को पी जाओ, हाय रे मेरा बेटा, देखो कैसे कुत्ते की तरह से अपनी माँ की बुर को चाट रहा है ..ओह ...चाट ना ऐसे ही चाट मेरे कुत्ते बेटे.. अपनी कुतिया माँ की बुर को चाट और उसके बुर के अंदर अपने जीभ को हिलाते हुए मुझे अपने जीभ से चोद डाल ".

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक तो माँ मुझे कुत्ता कह रही है फिर खुद को भी कुतिया कह रही है. पर मेरे दिलो-दिमाग़ में तो अभी केवल माँ की रसीली बुर की चटाई घुसी हुई थी इसलिए मैने इस तरफ से ध्यान ऩही दिया. माँ की आज्ञा का पालन किया और जैसा उसने बताया था उसी तरह से अपने जीभ से ही उसकी चूत को चोदना शुरू कर दिया. मैं अपनी जीभ को तेज़ी के साथ बुर में से अंदर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ चूत में जीभ को घुमाते हुए चूत के गुलाबी छेद से अपने होंठो को मिला के अपने मुँह को चूत पर रगड़ भी रहा था. मेरी नाक बार बार चूत के भगनसे से टकरा रही थी और शायद वो भी माँ के आनंद का एक कारण बन रही थी. मेरे दोनो हाथ माँ के मोटे गुदज जाँघो से खेल रहे थे. तभी माँ ने तेज़ी के साथ अपने चूतडों को हिलाना शुरू कर दिया और ज़ोर ज़ोर से हांफते हुए बोलने लगी "ओह निकल जाएगा ऐसे ही बुर में जीभ चलते रहना बेटा ओह, सी सी सीईई, साली बहुत खुजली करती थी आज निकल दे इसका सारा पानी" और अब माँ दाँत पीस कर लग भर चीखते हुए बोलने लगी ओह हूऊओ सीईईईईईई साले कुत्ते, मेरे प्यारे बेटे मेरे लाल है रे चूस और ज़ोर से चूस अपनी माँ के बुर को जीभ से चोद दे अभी,,,,,,,सीईईईईई ईईइ छोड़ना नही... कुत्ते हरमजाड़े और ज़ोर से चोद साले .., ,,,,,,,, चोद डाल अपनी माँ को है निकाला रे मेरा तो निकल गया ओह मेरे चुदक्कड बेटे ने निकाल दिया रे तूने तो.... अपनी माँ को अपने जीभ से चोद डाला" कहते हुए मा ने अपने चूतडों को पहले तो खूब ज़ोर ज़ोर से उपर की तरफ उछाला फिर अपनी आँखो को बंद कर के चूतडों को धीरे धीरे फुदकते हुए झरने लगी "ओह गई मैं मेरे राजा, मेरा निकल गया मेरे सैय्या हाय . तूने मुझे जन्नत की सैर करवा दी रे, है मेरे बेटे ओह ओह मैं गई……." माँ की बुर मेरे मुँह पर खुल बंद हो रही थी. बुर के दोनो फांको से रस अब भी रिस रहा था पर माँ अब थोड़ी ठंडी पड़ चुकी थी और उसकी आँखे बंद थी उसने दोनो पैर फैला दिए थे और सुस्त सी होकर लंबी लंबी साँसे छोडती हुई लेट गई. मैने अपने जीभ से चोद चोद कर अपनी माँ को झार दिया था. मैने बुर पर से अपने मुँह को हटा दिया और अपने सिर को माँ की जाँघो पर रख कर लेट गया. कुछ देर तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद मैने जब सिर उठा के देखा तो पाया कि माँ अब भी अपने आँखो को बंद किए बेसुध होकर लेटी हुई है. मैं चुपचाप उसके पैरो के बीच से उठा और उसकी बगल में जा कर लेट गया. मेरा लंड फिर से खडा हो चुका था पर मैने चुपचाप लेटना ही बेहतर समझा और मा की ओर करवट लेट कर मैने अपने सिर को उसके चुचियों से सटा दिया और एक हाथ पेट पर रख कर लेट गया. मैं भी थोड़ी बहुत थकावट महसूस कर रहा था, हालाँकि लंड पूरा खडा था और चोदने की इच्छा बाकी थी. मैं अपने हाथो से माँ के पेट नाभि और जाँघो को सहला रहा था. मैं धीरे धीरे ये सारा काम कर रहा था और कोशिश कर रहा था की माँ ना जागे. मुझे लग रहा था कि अब तो माँ सो गई और मुझे शायद मूठ मार कर ही संतोष करना पडेगा . इसलिए मैं चाह रहा था कि सोते हुए थोड़ा सा माँ के बदन से खेल लूँ और फिर मूठ मार लूँगा. मुझे माँ के जाँघ बड़े अच्छे लगे और मेरे दिल कर रहा था की मैं उन्हे चुमू और चाटूं. . इसलिए मैं चुप चाप धीरे से उठा और फिर माँ के पैरो के पास बैठ गया. माँ ने अपना एक पैर फैला रखा था और दूसरे पैर को घुटनो के पास से मोड़ कर रखा हुआ था. इस अवस्था में वो बरी खूबसूरत लग रही थी, उसके बाल थोड़े बिखरे हुए थे एक हाथ आँखो पर और दूसरा बगल में. पैरो के इस तरह से फैले होने से उसकी बुर और गांद दोनो का छेद स्पष्ट रूप से दिख रहा था. धीरे धीरे मैने अपने होंठो को उसके जाँघो पर फेरने लगा और हल्की हल्की चुम्मिया उसके रानों से शुरू कर के उसके घुटनो तक देने लगा. एकदम मक्खन जैसी गोरी चिकनी जाँघो को अपने हाथो से पकर कर हल्के हल्के मसल भी रहा था. मेरा ये काम थोड़ी देर तक चलता रहा, तभी माँ ने अपनी आँखे खोली और मुझे अपने जाँघो के पास देख कर वो एकदम से चौंक कर उठ गई और प्यार से मुझे अपने जाँघो के पास से उठाते हुए बोली "क्या कर रहा है बेटे....... ज़रा आँख लग गई थी, देख ना इतने दिनों के बाद इतने अच्छे से पहली बार मैने वासना का आनंद उठाया है, इस तरह पिछली बार कब झड़ी थी मुझे तो ये भी याद ऩही, इसीलिए सयद संतुष्टि और थकान के कारण आँख लग गई"
"कोई बात ऩही माँ तुम सो जाओ".

तभी माँ की नज़र मेरे 8.5 इंच के लंड की तरफ गई और वो चौंक के बोली "अरे ऐसे कैसे सो जाऊं ? और मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया. बोली - मेरे लाल का लंड खडा हो के बार बार मुझे पुकार रहा है और मैं सो जाऊं ? "
"ओह माँ , इसको तो मैं हाथ से ढीला कर लूँगा. तुम सो जाओ"
"ऩही मेरे लाल आजा ज़रा सा माँ के पास लेट जा, थोरा दम ले लूँ फिर तुझे असली चीज़ का मज़ा दूँगी"
मैं उठ कर मा के बगल में लेट गया. अब हम दोनो मा बेटे एक दूसरे की ओर करवट लेते हुए एक दूसरे से बाते करने लगे. माँ ने अपना एक पैर उठाया और अपनी मोटी जाँघो को मेरे कमर पर डाल दिया. फिर एक हाथ से मेरे खड़े लंड को पकड़ के उसके सुपाडे के साथ धीरे धीरे खेलने लगी. मैं भी माँ की एक चुची को अपने हाथो में पकड कर धीरे धीरे सहलाने लगा और अपने होंठो को माँ के होंठो के पास ले जा कर एक चुंबन लिया. माँ ने अपने होंठो को खोल दिया. चूमा चाटी ख़तम होने के बाद माँ ने पुछा "और बेटे, कैसा लगा माँ की बुर का स्वाद, अच्छा लगा या ऩही?"
"हाँ मान बहुत स्वादिष्ट था, सच में मज़ा आ गया"
"अच्छा , चलो मेरे बेटे को अच्छा लगा इस से बढ़ कर मेरे लिए कोई बात ऩही"
"माँ तुम सच में बहुत सुंदर हो, तुम्हारी चुचिया कितनी खूबसूरत है, मैं.... मैं क्या बोलू मा, तुम्हारा तो पूरा बदन खूबसूरत है."
"कितनी बार बोलेगा ये बात तू मेरे से, मैं तेरी आँखें ऩही पढ़ सकती क्या, जिनमे मेरे लिए इतना पायर छलकता है".
मैं माँ से फिर पूरा चिपक गया. उसकी चुचिया मेरी छाती में चुभ रही थी और मेरा लंड अब सीधा उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था. हम दोनो एक दूसरे की आगोश में कुछ देर तक ऐसे ही खोए रहे फिर मैने अपने आप को अलग किया और मसलते मसलते मेरी नज़र मा के सिकुड़ते - फैलते हुए गांड के छेद पर पडी . मेरे मन मैं आया कि क्यों ना इसका स्वाद भी चखा जाए. देखने से तो माँ की गांड वैसे भी काफ़ी खूबसूरत लग रही थी जैसे गुलाब का फूल हो. मैने अपनी लपलपाति हुई जीभ को उसके गांद की छेद पर लगा दिया और धीरे धीरे उपर ही उपर लपलपते हुए चाटने लगा. गांद पर मेरी जीभ का स्पर्श पा कर माँ पूरी तरह से हिल उठी.
"ओह ये क्या कर रहा है, ओह बड़ा अच्छा लग रहा है , कहा से सीखा ये, तू तो बड़ा कलाकार है रे.... , हाय राम देखो कैसे मेरी बुर को चाटने के बाद मेरी गांड को चाट रहा है, तुझे मेरी गांड इतनी अच्छी लग रही है कि इसको भी चाट रहा है, ओह बेटा सच में गजब का मज़ा आ रहा है, चाट ले चाट ले पूरे गांड को चाट ले ओह ओह उूुुुुुऊउगगगगगगगग" .
मैने पूरे लगन के साथ गांड के छेद पर अपने जीभ को लगा के, दोनो हाथो से दोनो चूतडों को पकड कर छेद को फैलया और अपनी नुकीली जीभ को उसमे ठेलने की कोशिश करने लगा. माँ को मेरे इस काम में बड़ी मस्ती आ रही थी और उसने खुद अपने हाथो को अपने चूतडों पर ले जा कर गांद के छेद को फैला दिया और मुझे जीभ पेलने के लिए उत्साहित करने लगी. "हाय रे जालिम ... पेल दे जीभ को जैसे मेरी बुर में पेला था वैसे ही गांड के छेद में भी पेल दे और पेल के खूब चाट .. मेरी गांड को है...हाय दैया...मै तो मर ही जाउंगी आज.खुशी के मारे..., ओह इतना मज़ा तो कभी ऩही आया था, ओह देखो कैसे गांद चाट रहा है,,,,,,,,सस्स्स्स्ससे ईईई चाटो बेटा चाटो और ज़ोर से चाटो , माधरचोद....असली गांडू है रे तू.. "
मुझे माँ की गालियाँ बहुत प्यारी लग रही थी. मैं पूरी लगन से गांड चाट रहा था. मैने देखा कि चूत का गुलाबी छेद अपने नशीले रस को टपका रहा है तो मैने अपने होंठो को फिर से बुर के गुलाबी छेद पर लगा दिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा जैसे कि पीपे लगा के कोकोकॉला पी रहा हूँ , सारे रस को चाट के खाने के बाद मैने बुर के छेद में जीभ को पेल कर अपने होंठो के बीच में बुर के भगनसे को क़ैद कर लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से चूसना शुरू कर दी. माँ के लिए अब बर्दाश्त करना शायद मुश्किल हो रहा था उसने मेरे सिर को अपनी बुर से अलग करते हुए कहा "अब छोड़ बहिनचोद.., फिर से चूस के ही झार देगा क्या, अब तो असली मज़ा लूटने का टाइम आ गया है, है बेटा राजा अब चल मैं तुझे जन्नत की सैर कराती हू अब अपनी माँ की चुदाई करने का मज़ा लूट मेरे राजा, चल मुझे नीचे उतरने दे साले"
मैने माँ की बुर पर से मुँह हटा लिया. वो जल्दी से नीचे उतर कर लेट गई और अपने पैरो को घुटनो के पास से मोड कर अपनी दोनो जाँघो को फैला दिया और अपने दोनो हाथो को अपनी बुर के पास ले जा कर बोली "आ जा राजा जल्दी कर अब ऩही रहा जाता, जल्दी से अपने मूसल को मेरी ओखली में डाल के कूट दे, जल्दी कर बेटा डाल दे अपना लंड अपनी माँ की प्यासी चूत में"

मैं उसके दोनो जाँघो के बीच में आ गया पर मुझे कुछ समझ में ऩही आ रहा था कि क्या करू, फिर भी मैने अपने खड़े लंड को पकडा और माँ के उपर झुकते हुए उसकी बुर से अपने लंड को सटा दिया. माँ ने लंड के बुर से सटते ही कहा "हाँ अब मार धक्का और घुसा दे अपने घोड़े जैसे लंड को माँ की बिल में"

मैने धक्का मार दिया पर ये क्या लंड तो फिसल कर बुर के बाहर ही रगड़ खा रहा था, मैने दुबारा कोशिश की फिर वही नतीज़ा ढाक के तीन पात .. फिर लंड फिसल के बाहर, इस पर माँ ने कहा "रुक जा मेरे अनाडी सैय्या, मुझे ध्यान रखना चाहिए था. तू तो पहली बार चुदाई कर रहा है ना, अभी तुझे मैं बताती हूँ. " फिर अपने दोनो हाथो को बुर पर ले जा कर चूत के दोनो फांको को फैला दिया, बुर के अंदर का गुलाबी छेद नज़र आने लगा था, बुर एकदम पानी से भीगी हुई लग रही थी, बुर चिदोरकर माँ बोली "ले मैने तेरे लिए अपने चूत को फैला दिया है अब आराम से अपने लंड को ठीक निशाने पर लगा के पेल दे".
मैने अपने लंड को ठीक चूत के खुले हुए मुँह पर लगाया और धकका मारा, लंड थोड़ा सा अंदर को घुसा, पानी लगे होने के कारण लंड का सुपरा अंदर चला गया था, माँ ने कहा "शाबाश ऐसे ही सुपाडा चला गया अब पूरा घुसा दे . मार धक्का कस के और चोद डाल मेरी बुर को बहुत खुजली मची हुई है"

मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा के धक्का मार दिया पर मेरा लंड में ज़ोर की दर्द की लहर उठी और मैने चीखते हुए झट से लंड को बाहर निकल लिया.

माँ ने पुछा "क्या हुआ, चिल्लाता क्यों है"
"ओह मा, लंड में दर्द हो रहा है".

माँ उठ कर बैठ गई और मेरी तरफ देखते हुई बोली "देखूं तो कहाँ दर्द है"

मैने लंड दिखाते हुए कहा "देखो ना जैसे ही चूत में घुसाया वैसे ही दर्द करने लगा"

माँ कुछ देर तक देखती रही फिर हंसने लगी और बोली "साले अनाडी चुदक्कड चला है माँ को चोदने अबे अभी तक तो तेरे सुपाडे की चमडी ढंग से उलटी ही ऩही है तो दर्द ऩही होगा तो और क्या होगा, चला है माँ को चोदने . , चल कोई बात ऩही मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था, मेरी ग़लती है, मैने सोच तूने खूब मूठ मारी होगी तो चमडी अपने आप उलटने लगी होगी मगर तेरे इस गुलाबी सुपाडे की शकल देख के ही मुझे समझ जाना चाहिए था की तूने तो अभी तक ढंग से मूठ भी ऩही मारी, चल नीचे लेट अब मुझे ही कुछ करना padega लगता है".

मैने तो अब तक यही सुना था कि लड़का लड़की के उपर चढ़ कर चोदता है. मगर जब माँ ने मुझे नीचे लेटने के लिए कहा तो मैं सोच में पड गया और माँ से पुछ "नीचे क्यों लेटना है माँ , क्या अब चुदाई ऩही होगी".

मुझे लग रहा था कि माँ फिर से मेरा मूठ मार देगी. माँ ने हँसते हुए कहा "ऩही बे चुदाई तो होगी ही, जितनी तुझे चोदने की आग लगी है मुझे भी चुदवाने की उतनी ही आग लगी है, चुदाई तो होगी ही, तुझे तो अभी रात भर मेरी बुर का बाजा बजाना है मेरे राजा, तू नीचे लेट अब उल्टी तरफ से चुदाई होगी.
"उल्टी तरफ से चुदाई होगी, इसका क्या मतलब है माँ "
"इसका मतलब है मैं तेरे उपर चढ़ के खुद से चुदवाउंगी.

कैसे चुदवाओगी ?

ये तो तू खुद ही थोड़ी देर के बाद देख लियो मगर, फिलहाल तू नीचे लेट और अपना लंड खडा कर के रख फिर देख मैं कैसे तुझे मज़ा देती हूँ "
मैं नीचे लेट तो गया पर अब भी मैं सोच रहा था कि माँ कैसे करेगी. माँ ने जब मेरे चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव देखे तो वो मेरे गाल पर एक प्यार भरा तमाचा लगते हुए बोली "सोच क्या रहा है माधरचोद? . अभी चुप चाप तमाशा देख फिर बताना कि कैसा मज़ा आता है"

कह कर माँ ने मेरे कमर के दोनो तरफ अपनी दोनो टाँगे कर दी और अपनी बुर को ठीक मेरे लंड के सामने ला कर मेरे लंड को एक हाथ से पकड़ा और सुपाडे को सीधा अपनी चूत के गुलाबी मुँह पर लगा दिया. सुपाडे को बुर के गुलाबी मुँह पर लगा कर वो मेरे लंड को अपने हाथो से आगे पीछे कर के अपनी बुर के दरार पर रगड़ने लगी. उसकी चूत से निकला हुआ पानी मेरे सुपाडे पर लग रहा था और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरी साँसे उस अगले पल के इंतेज़ार में रुकी हुई थी जब मेरा लंड उसके चूत में घुसता. मैं दम साधे इंतेज़ार कर रहा था तभी माँ ने अपने चूत के फाँक को एक हाथ से फैलाया और मेरे लंड के सुपाडे को सीधा बुर के गुलाबी मुँह पर लगा कर उपर से हल्का सा ज़ोर लगाया. मेरे लंड का सुपाडा उसके चूत के फांको बीच समा गया. फिर माँ ने मेरे छाती पर अपने हाथो को जमाया और उपर से एक हल्का सा धक्का दिया मेरे लंड का थोडा सा और भाग उसकी चूत में समा गया. उसके बाद माँ स्थिर हो गई और इतने से ही लंड को अपनी बुर में घुसा कर आगे पीछे करने लगी. थोड़ी देर तक ऐसा करने के बाद उसने फिर से एक धक्का मारा, इस बार धक्का थोरा ज्यादा ही जोरदार था और मेरे लंड का लगभग आधा से अधिक भाग उसकी चूत में समा गया. मेरे मुँह से एक ज़ोर की चीख निकल गई. क्यों कि मेरे लंड के सुपाडे की चमडी एकदम से पीछे उलट गई थी. पर माँ ने इस पर कोई ध्यान ऩही दिया और उतने ही लंड पर आगे पीछे करते हुए धक्का मरते हुए बोली "बेटा चुदाई कोई आसान काम ऩही है, लड़की भी जब पहली बार चुदती है तो उसको भी दर्द होता है, और उसका दर्द तो तेरे दर्द के सामने कुछ भी ऩही है, जैसे उसके बुर की सील टूटती है वैसे ही तेरे लंड की भी आज सील टूटी है, थोड़ी देर तक आराम से लेटा रह फिर देख तुझे कैसा मज़ा आता है".

माँ अब उतने लंड को ही बुर में ले कर धीरे धीरे धक्के लगा रही थी. वो अपने गांड को उछल उछल के धक्के पर धक्का मारे जा रही थी. थोडी देर में ही मेरा दर्द कम हो गया और मुझे गीलेपन का अहसास होने लगा. माँ की चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था और उसकी बुर से निकलते पानी के कारण मेरे लंड का घुसना और निकलना भी आसान हो गया था. माँ अब और ज़ोर ज़ोर से अपनी गांड उछाल उछाल के धक्के लगा रही थी और मेरे लंड का ज़यादा से ज़यादा भाग उसके चूत के अंदर घुसता जा रहा था. माँ ने इस बार एक ज़ोरदार धक्का मारा और मेरे लंड का ज्यादातर भाग अपनी चूत में छूपा लिया और सिसकरते हुए बोली "सस्स्स्स्स्सिईईईईई हाय दैयया, कितना मोटा लंड है जैसे की गरम लोहे का रोड हो, एकदम सीधा बुर के दीवारो को रगडी मार रहा है, मेरे जैसी चुदी हुई औरत के बुर में जब ये इतना कसा हुआ है तो जवान लौंडियों की चूत फाड़ के रख देगा, मज़ा आ गया, ले साले और घुसा लंड और घुसा" कह कर तेज़ी से तीन चार धक्के मार दिए. माँ के द्वारा तेज़ी से लगाए गये इन धक्को से मेरा पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अंदर चला गया. माँ ने सिसकरते हुए धक्के लगाना जारी रखा और अपने एक हाथ को लौरे के जड़ के पास ले जाकर देखने लगी कि पूरा लंड अंदर गया है कि ऩही. जब उसने देखा कि पूरा का पूरा लंड उसकी बुर में घुस चुका है तब उसने अपनी चूतडों को उछालते हुए एक तेज धक्का मारा और मेरे होंठो का चुम्मा ले कर बोली "कैसा लग रहा है बेटा, अब तो दर्द ऩही हो रहा है ना"
"ऩही माँ अब दर्द ऩही हो रहा है, देखो ना मेरा पूरा लौड़ा तुम्हारे बुर के अंदर चला गया है"
"हा बेटा अब दर्द ऩही होगा अब तो बस मज़ा ही मज़ा है, मेरे बुर के पानी के गीलेपन से तेरी चमडी उलटने में अब आसानी हो रही है इसलिए तुझे अब दर्द ऩही हो रहा होगा, बल्कि मज़ा आ रहा होगा, क्यों बेटा बोल ना मज़ा आ रहा है या ऩही अपनी माँ के बुर में लौड़ा पेल के, अब तो तुझे पता चल रहा होगा कि चुदाई क्या होती है बेटा , ले मज़े चुदाई का और बता कि तुझे कैसा लग रहा है माँ की चूत में लौड़ा घुसाने में "
"हाय मा, सच में गजब का मज़ा आ रहा है, ओह माँ तुम्हारी चूत कितनी कसी हुई है मेरा लंड तो इसमे बड़ी मुश्किल से घुसा है जबकि मैने सुना था कि शादी शुदा औरतो की चूत ढीली हो जाती है"
"बेटा ये तेरी माँ की चूत है, ये ढीली होने वाली चूत ऩही है"

कह कर माँ ने लंड को पूरे सुपाडे तक खींच कर बाहर निकाला और फिर उपर से गांड का ज़ोर लगा के एक ज़ोरदार शॉट मार का पूरा लंड एक ही बार में गपक से अपनी बुर के अंदर लील लिया. माँ अब तेज तेज शॉट लगा के पूरा का पूरा लंड अपनी बुर में एक ही बार में गपक से लील लेती थी. उसने मेरा उत्साह बढ़ते हुए कहा " आबे साले नीचे क्या औरतो की तरह से पड़े रह कर चुदवा रहा है अपना गांद उछल उछल के तू भी धक्का मार साले माधरचोद. , चोद अपनी माँ को, ऐसे पड़े रहने से थोड़े ही मज़ा आएगा, देख मेरी चूत कैसे तेरे सारे लंड को एक ही बार में निगल रही है, तेरा लंड मेरी बुर के दीवारो को कुचालता हुआ कैसे मेरी बुर के जड़ तक ठोकर मार रहा है, बहिनचोद, तू भी नीचे से धक्का मार मेरे राजा और बता कि कैसा लग रहा है माँ की चुदाई करने में, मज़ा आ रहा है या ऩही माँ की बुर चोदने में"
मैने भी नीचे से गांद उछल कर धक्का मारना शुरू कर दिया. और माँ के चूतडों को अपने हथेलियों के बीच दबोच कर बोला "हाँ मा, बहुत मज़ा आ रहा है, सच में इतना मज़ा तो जिंदगी में कभी ऩही आया, ओह तुम्हारी बुर में मेरा लंड एकदम कसा कसा जा रहा है और ऐसा लगता है जैसे कि मैने किसी गरम भट्टी में अपने लंड को डाल दिया है, ओह कितना गरम है तेरी बुर माँ ,,,,,,,और ज़ोर से मारो धक्का और ले लो अपने बेटे का लंड अपनी बुर में ऊऊओह साली मज़ा आ गया..तू भी कम कुतिया नहीं है.." कह कर मैने अपनी एक उंगली को माँ के गांड के दरार पर लगा कर उसको हल्का सा उसके गांड में डाल दिया.
माँ का जोश मेरी इस हरकत पर दुगुना हो गया और वो अपनी चूतडों को और तेज़ी के साथ उछालने लगी और कहने लगी "हाय माधरचोद , माँ की गांड में उंगली डालता है, बेटीचोद तेरी माँ को चोदु, साले गांडू ले, और ले मेरी बुर का धक्का अपने लंड पर, तोड़ दूँगी साले तेरा लंड गांडू , बहिनचोद. , ले साले , मुँह क्या देख रहा है, चुची दबा साले मुँह में लेकर चूस और चुदाई का मज़ा ले, है कितने वर्षो के बाद ऐसी चुदाई का आनंद मिल रहा हाईईईईईईईईई ओह ऊऊऊऊऊओह ह,"
मैने माँ के आदेश पर उसकी चुचियों को अपने हाथो में थाम लिया और उसकी एक चुचि को खींच कर उसके निपल से अपने मुँह को सटा कर चूसते हुए दूसरी चुची को खूब ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा. माँ अब अपने गांड को पूरा उछल उछाल कर मेरे लंड को अपनी गरम बुर में पेलवा रही थी. उसकी चूत एकदम अंगीठी की तरह से गरम हो चुकी थी और खूब पानी चू रही थी मेरा लंड उसकी चूत के पानी से भीग कर सटासट उसकी बुर के अंदर बाहर हो रहा था. माँ के मुँह से गलियों की बौछार हो रही थी.

वो बोल रही थी "साले माधरचोद.... चोद मेरी बुर को दम लगा के, है कितना मज़ा आ रहा है, तेरे बाप से अब कुछ ऩही होता रे , अब तो तू ही मेरी चूत की आग को ठंडी करना,,,,,,, मैं तुझे चुदाई का बादशाह बना दूँगी,,,,,,, ,,तेरे उस भडुए माधरचोद बाप को छुने भी ऩही दूँगी अपनी बुर, तू चोदियो मेरी बुर को और मेरी आग ठंडी करियो, कहाँ था रे बहनचोद ..? अब तक तू अब तक तो मैं तेरे लंड का कितना पानी पी चुकी होती... चोद रे लौंडे .. चोद, अपनी गांड तक का ज़ोर लगा दे चोदने में आज, आज अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो फिर मैं तेरी गुलाम हो जाउंगी "
मैं माँ की चुचियों को मसलते हुए अपनी गांद को नीचे से उछलता जा रहा था . मेरा लंड उसकी कसी बुर में गॅप गप...फच फ़च की आवाज़ करता हुआ अंदर बाहर हो रहा था. हम दोनो की साँसे तेज हो गई थी और कमरे में चुदाई की मादक आवाज़ गूँज रही थी. दोनो के बदन से पसीना चु रहा था और सांसो की गर्मी एक दूसरे के बदन को महका रही थी. माँ अब शायद थक चुकी थी. उसके धक्के मरने की रफ़्तार अब थोड़ी धीमी हो गई थी और अब वो हांफने भी लगी थी. थोडी देर तक हांफते हुए वो धक्का लगाती रही फिर अचानक से पस्त हो कर मेरे बदन के ऊपर गिर गई और बोली "ओह मैं तो थक गई रे , इतने में आम तौर पर मेरा पानी तो निकल जाता है पर आज नये लंड के जोश में मेरा पानी भी ऩही निकल रहा, ओह मज़ा आ गया, आज से पहले ऐसी चुदाई कभी ऩही की, पर थक गई रे मैं तो, अब तो तुझे मेरे उपर चढ़ कर धक्का मारना होगा तभी चुदाई हो पाएगी साले" कह कर वो अपने पूरे शरीर का भर मेरे बदन पर दे कर लेट गई.
मेरी साँसे भी तेज चल रही थी मगर लंड अब भी खड़ा था. दिल में चुदाई की ललक बरकरार थी और अब तो मैने चुदाई भी सीख ली थी. मैने धीरे से माँ के चुतद को पकड कर नीचे से ही धक्का लगाने का प्रयास किया और दो तीन छोटे छोटे धक्के मारे मगर क्यों कि माँ थक गई थी इसलिए वो उसी तरह से लेटी रही. माँ के भारी शरीर के कारण मैं उतने ज़ोर के धक्के ऩही लगा पाया जितना लगा सकता था. मैने माँ को बाँहो में भर लिया और उसके कान के पास अपने मुँह को ले जा कर फुसफुसते हुए बोला "ओह माँ जल्दी कर ना, और धक्का मार ना, अब ऩही रहा जा रहा है,,,,,जल्दी से मारो ना माँ ". माँ ने मेरे चेहरे को गौर से देखते हुए मेरे होंठो को चूम लिया और बोली "थोरा दम तो लेने दे साले, कितनी देर से तो चुदाई हो रही है, थकान तो होगी ही"
"पर मा मेरा तो लंड लगता है फट जाएगा, मेरा जी कर रहा है की खूब ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाऊं "
"तो मार ना, मैने कब माना किया है, आजा मेरे उपर चढ़ के खूब ज़ोर ज़ोर से चुदाई कर दे अपनी माँ की, बजा दे बाजा उसकी बुर का" कह कर माँ धीरे से मेरे उपर से उतर गई. उसके उतरने पर मेरा लंड भी फिसल के उसकी चूत से बाहर निकल गया था मगर माँ ने कुछ ऩही कहा और बगल में लेट कर अपनी दोनो जाँघो को फैला दिया. मेरा लंड एकदम रस से भीगा हुआ था और उसका सुपदा लाल रंग का किसी पाहरी आलू के जैसे लग रहा था. मैने अपने लंड को पकड़ा और सीधा अपनी माँ के जाँघो के बीच चला गया. उसकी जाँघो के बीच बैठ कर मैं उसकी चूत को गौर से देखने लगा. उसकी चूत फूल पिचक रही थी और चूत का मुँह अभी थोडा सा खुला हुआ लग रहा था, बुर का गुलाबी छेद अंदर से झाँक रहा था और पानी से भीगा हुआ महसूस हो रहा था. मैं कुछ देर तक अपलक उसके चूत की सुंदरता को निहारता रहा.
माँ ने मुझे जब कुछ करने की बजाए केवल घूरते हुए देखा तो वो सिसकते हुए बोली "क्या कर रहा है, जल्दी से डाल ना चूत में लंड को ऐसे खड़े खड़े खाली घूरता रहेगा क्या, कितना देखेगा बुर को, अबे उल्लू देखने से ज़यादा मज़ा चोदने में है, जल्दी से अपना मूसल डाल दे मेरे चोदु भरतार, अब नाटक मत चोद" माँ ने इतना कह कर मेरे लंड को अपने हाथो में पकड़ लिया और बोली "ठहर मैं लगाती हूँ साले" और मेरे लंड के सुपरे को बुर के खुले छेद पर घिसने लगी और बोली "बुर का पानी लग जाएगा और चिकना हो जाएगा समझा , फिर आराम से चला जाएगा" मैं माँ के उपर झुक गया और अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर लिया अपने जीवन की पहली चुदाई के लिए. माँ ने मेरे लंड को चूत को छेद पर लगा कर स्थिर कर दिया और बोली "हाँ अब मारो धक्का और पेल दो चूत में"

मैने अपनी ताक़त को समेटा और कस के एक ज़ोरदार धक्का लगा दिये मेरे लंड का सुपदा तो पहले से भीगा हुआ था इसलिए वो सटाक से अंदर चला गया उसके साथ साथ मेरे लंड का आधा से अधिक भाग चूत की दीवारो को रगाडता हुआ अंदर घुस गया. ये सब अचानक तो ऩही था मगर फिर भी माँ ने सोचा ऩही था कि मैं इतनी ज़ोर से धक्का लगा दूँगा इसलिए वो चौंक गई और उसके मुँह से एक घुटि घुटि सी चीख निकल गई. मगर मैने तभी दो तीन और ज़ोर के झटके लगा दिए और मेरा लंड पूरा का पूरा अंदर घुस गया. पूरा लंड घुसा कर जैसे ही मैं स्थिर हुआ माँ के मुँह से गलियों की बौछार निकल परी "साला , हरामी... क्या समझ रखा है रे, कमीने, ऐसे कही धक्का मारा जाता है, सांड की तरह से घुसा दिया सीधा एक ही बार में माधरचोद.., धीरे धीरे करना ऩही आता है तुझे, साले कमीने पूरी चूत छिल गई मेरी, बाप है कि घुसाना ही ऩही जानता और बेटा है कि घुसाता है तो ऐसे घुसाता है जैसे की मेरी चूत फाड़ने के लिए घुसा रहा हो, हरामी कही का"
"माफ़ कर देना माँ , मगर मुझे ऩही पाता था की तुम्हे चोट लग जायेगी , तू तो जानती है ना की ये मेरी पहली चुदाई है" कह कर मैने माँ की दोनो चुचियों को अपने हाथो में थाम लिया और उन्हे दबाते हुए एक चुचि के निपल को चूसने लगा. कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद शायद माँ का दर्द कुछ कम हो गया और वो भी अब नीचे से अपनी गांड उचकाने लगी और मेरे बालो में हाथ फेरते हुए मेरे सिर को चूमने लगी. मैने पूरी तरह से स्थिर था और चुची को चूसने और दबाने में लगा हुआ था, माँ ने कहा "हाँ बेटा, अब धक्का लगाओ और चोदना शुरू करो अब देर मत करो तेरी माँ की प्यासी बुर अब तेरे लंड का पानी पीना चाहती है".
मैने दोनो चुचियों को थाम लिया और धीरे धीरे अपनी गांद उछलने लगा. मेरा लंड मा के पनियाए हुए चूत के अंदर से बाहर निकालता और फिर घुस जाता था. माँ ने अब नीचे से अपने चुतद उछालना शुरू कर दिया था. दस बारह झटके मारने के बाद ही बुर से गछ गछ,,,,फ़च फ़च की आवाज़े आनी शुरू हो गई थी. ये इस बात को बतला रहा था की उसकी चूत अब पानी छोड़ने लगी है और अब उसे भी मज़ा आना शुरू हो गया है. माँ ने अपने पैरो को घुटनो के पास से मोड लिया था और अपनी टांगों की कैंची बना के मेरे कमर पर बाँध दिया था. मैं ज़ोर ज़ोर से धक्का मरते हुए उसके होंठो और गालो को चूमते हुए उसके चुचियों को दबा रहा था. माँ की मुँह से सिसकारियों का दौर फिर से शुरू हो गया था और वो हांफते हुए बडबडाने लगी "हाय मारो, और ज़ोर से मारो राजा,छोड़ो मेरी चूत को, चोद चोद के भोसरा बना दो बेटा, कैसा लग रहा है बेटा चोदने में मज़ा आ रहा है या ऩही, मेरी बुर कैसी लगा रही है तुझे बता ना राजा, अपनी माँ की बुर चोदने में मज़ा आ रहा है या ऩही, पूरा जड़ तक लौदा पेल के छोड़ो ..राजा और कस कस के धक्के मार के पक्के माधरचोद बन जाओ, बता ना राजा बेटा कैसा लग रहा है माँ की चूत में लंड डालने में"
मैने धक्का लगाते हुए कहा "हाँ मेरी रानी.. बहुत मज़ा आ रहा है, बहुत कसी हुई है तुम्हारी बुर तो, मेरा लंड तो एकदम फस फस के जा रहा है तेरी बुर में, ऐसा लग रहा है जैसे किसी बॉटल में लकड़ी का ढक्कन फसा रहा हू, है क्या सच में मेरा बापू तुझे चोद्ता ऩही था क्या, या फिर तुम उस को चोदने ऩही देती थी, तुम्हारी चूत इतनी कसी हुई कैसे है माँ , जबकि मेरे दोस्त कहते थे कि उमर के साथ औरतो की चूत ढीली हो जाती है, है तुम्हारी तो एकदम कसी हुई है".
इस पर माँ ने अपने पैरो का शिकंजा और कसते हुए दाँत पीसते हुए कहा "साला तेरा बाप तो गान्डू है, वो क्या खाक चोदेगा मुझे, उस गान्डू ने तो मुझे ना जाने कब से चोदना छोड़ा हुआ है, पर मैं किसी तरह से अपने चूत की खुजली को अंदर ही दबा लेती थी, क्या करती किस से चुदवाती? , फिर जिसके पास चुदवाने जाती वो कही मुझे संतुष्ट ऩही कर पाता तो क्या होता, बदनामी अलग से होती और मज़ा भी ऩही आता, तेरा हथियार जब देखा तो लग गया की तू ना केवल मुझे संतुष्ट कर पाएगा बल्कि, तेरे से चुदवाने से बदनामी भी ऩही होगी, और तू भी मेरी चूत का प्यासा है फिर अपने बेटे से चुदवाने का मज़ा ही कुछ और है, जब सोच के इतना मज़ा आ रहा था तो मैने सोचा की क्यों ना चोदवा के देख लिया जाए"
"हाँ माँ तो फिर कैसा लग रहा है अपने बेटे से चुदवाने में, मज़ा आ रहा है ना, मेरा लंड अपने चूत में ले के, बोलो ना बुर मारनी, साली मेरा लंड तुझे मज़ा दे रहा है या ऩही"
"हाँ गजब का मज़ा आ रहा है राजा, तेरा लंड तो मेरी चूत के जर तक टकरा रहा है और मेरी चूत के दीवारो को मसल रहा है और मेरी नाभि तक पहुच जा रहा है, तू बहुत सुख दे रहा है अपनी माँ को मार कस के मार धक्का बन जा माधरचोद..., चोदु राम ....हलवाईचोद... ले अपनी मैया के चूत को और इसको दो फाँक कर दे मेरे प्यारे माधरचोद.."
"हाँ जब चुदवाने में इतना मज़ा आ रहा है और चोद्वाने का इतना मन था तो फिर सोते वक़्त इतना नाटक क्यों कर रही थी, जब मैं तुझे नंगा हो कर दिखाने को बोल रहा था"
"हाय रे मेरे भोलू राम, इतना भी ऩही समझता क्या, इसको कहते है नखरा, औरते दो तरह का छिनालपनी दिखा सकती है या तो सीधा तेरा लंड पकड़ के कहती की चोद मुझे या फिर धीरे धीरे तुझे तदपा तदपा के एक एक चीज़ दिखाती और तब तदपा तदपा के च्दवाती.. मुझे सीधे चुदाई में मज़ा ऩही आता, मैं तो खूब खेल खेल के चुदवाना चाहती थी, चक्की जितनी धीरे चलती है उतना ही महीन पीसती है साले, इसलिए मैने थोरा सा छिनालपन दिखया था, समझा अब बाते चोदना बंद कर और लगा ज़ोर ज़ोर से धक्का और चोद मेरी बुर को माधरचोद , तेरी मा की छूततततत्त में डंडा डालु बहन्चोद माररर्ररर ज़ोर से और बक्चोदि बंद कर"
"ठीक मेरी छिनाल माँ अब तो मैं भी पूरा सीख गया हू, देख अब मैं कैसे चोदता हू तेरी इस मस्तानी चूत को और कितना मज़ा देता हू तुझे, देख साली बुरचोदि रंडी...फिर ना बोलना की बेटे ने ठीक से चोदा ऩही, रंडी जितना तूने मुझे सिखाया है मैं उस से कही ज़यादा मज़ा दूँगा तुझे,,,,,,, ,,साली माधरचोद.."
मैं अब पूरे जोश के साथ धक्का मरने लगा था और मेरा पूरा लंड सुपाडे तक निकल कर बाहर आ जा रहा था, फिर सीधा सरसरते हुए गचक से अंदर मा की चूत की गहराइयों में समा जा रहा था. लंड की चमडी तो अब शायद पूरी तरह से उलट चुकी थी, और चुदाई में अब कोई दिक्कत ऩही आ रही थी. माँ की चूत एकदम से गरम भट्टी की तरह तप रही थी और मेरे लंड को सटासट लील रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत की सैर कर रहा हू. मेरी गांड पर माँ का हाथ था और वो उपर से दबाते हुए मुझे अपनी चूत पर दबा रही थी और साथ में नीचे गांड उछल कर मेरे लंड को अपनी चूत में ले रही थी. बुर के होंठो को मसलते हुए मेरा लंड सीधा बुर की जड़ से टकराता था और फिर उतनी ही तेज गति से बाहर आ कर फिर घुस जाता था. कमरे का माहौल फिर से गरम हो गया था और वातावरण में चुदाई की महक फैल गई थी. पूरे कमरे में गछ गछ फ़च फ़च की आवाज़ गूँज रही थी. हम दोनो की साँसे धोकनि की तरह से चल रही थी. दोनो के बदन से निकलता पसीना एक दूसरे को भिगो रहा था मगर, इसकी फिकर किसे थी.
माँ ने अपने तेज चलती सांसो के बीच से बडबडाते हुए मेरा उत्साह बढ़ाया "ओह चोदो और ज़ोर से पेलो अपना डंडा, घुमा घुमा के डालो राजा, अब तो बस अपने रस से बुझा दे मेरी चूत के प्यास को, चोद दे मुझे माधरचोद , साले मेरे सैया, ऐसे ही धक्का मारे जा, ऐसे ही चोद कर मुझे ठंडा कर दे, तेरे डंडे से ही ठंडी होगी तेरी माँ , पँखे से ठंडे होनी वाली ऩही हू मैं, तेरी माँ को तो तेरा मोटा मुसलांड चाहिए जो की उसकी बुर को दो फाँक कर के उसकी चूत के अंदर की ज्वाला को ठंडा कर दे, मार साले बहिनचोद , बुरचत्ता... ज़ोर से मार ना, बेतिचोद गांडू..हाय रे आज से तू ही मेरा भतार है तू ही मेरा सैय्या और तू ही मेरा चोदु है"
"हाँ , ले साली बुर्चोदी और ले, और ले मेरे लंड को अपनी मस्तानी चूत में, ले ना छिनाल खा जा मेरे लंड को अपनी बुर से, पूरा लंड खा जा साली बेटाचोदी माँ , ,तेरी बहन के गांद में भी लंड डालूं. , हाय रे मेरी चुदक्कड मैया, कहा से सीखा है तूने इतना मज़ा देना, एक दम से रंडी कि तरह करती है रे तू तो मेरी जान..ओह मेरा तो जनम सफल हो गया साली और ले माधरचोद माँ "
"दे और कस कस के दे बेटा, इसी लंड के लिए तो मैं इतनी प्यासी थी, ऐसे ही लंड से चुदवाने की चाहत को पाले हुए थी मैं मन में ना जाने कब से, आज मेरी तम्माना पूरी हो गई, आने दे तेरे उस भडुए बाप को.. उसके सामने तुझसे चुदवाउंगी. तब दिखाउंगी तेरा लंड उसे ..और बताउंगी देख साले इसको कहते हैं औरत की चुदाई... उसने अगर कभी हाथ भी लगाया मेरे इस बदन को या कोई रुकावट डाली तो साले के गांड पर चार लात मार कर घर से निकल दूँगी, साला माधरचोद वो क्या जानेगा चोदना , अभी यहा होता तो दिखाती कि चोदना किसको कहते है, तू लगा रह बेटा चोद के मेरी चूत को मथ दे और इसमे से अपने लिए मक्खन निकाल ले, मेरे चुदक्कर बलम"
अब तो बस आँधी आए या तूफान कोई भी हमें ऩही रोक सकता था हम दोनो अब अपने चरम पर पहुच चुके थे और चुदाई की रफ़्तार में कोई कमी ऩही चाहते थे. चाहते थे तो बस इतना की कैसे भी एक दूसरे के बदन में समा जाए और मार मार के चोद चोद के एक दूसरे के लंड और चूत का भुर्ता बना दे. माँ की सिसकारिया तेज हो गई थी और अब दोनो में से कोई भी एक दूसरे को छोड़ने वाला ऩही था दोनो, जी जान से एक दूसरे से चिपके हुए धक्के धक्के पर धक्का लगाए जा रहे थे मैं ऊपर से और माँ नीचे से.

माँ सिसकते हुए बोली "हाय मेरे राजा ऐसे ही मेरा निकलने वाला है, मारता रह धक्का.. धीरे मत करियो, ऐसे ही माधरचोद ... अब निकल जाएगा मेरा, निकल जाएगा साले आआआह्ह्ह्ह....मेरा निकल रहा हाईईईईईईईईई ,, ,,,,,,,, चोद कस के और ज़ोर ज़ोर से माआआआआअरर्र्र्ररर र्र, गंद्द्द्द्द्द्द्द्द्दद्डुऊऊउ अयू, छोद्द्द्द्द्द्द्दद्ड डाआाआल मिटा दे खुज्जज्ज्ज्ज्ज्ज्जलीइीईई ईई, चोद, चोद ज़ोर ज़ोर सीईईईईई, तेरी माँ के बुर में गधे का लौदा डालुउउुुुुुुुुउउ चोद ना साले और मारीईईई जा, निकलाआआआआआअ रे मेरा तो निकलाआाआ, झारी रीईईई मैं तो झरीईईईईईईई कह कर मेरे मेरे कंधो पर अपने दाँत गड़ा दिए.

मेरा भी अब निकलने वाला था और मैं भी ज़ोर ज़ोर से धकका लगते हुए चोदने लगा और गालिया बकते हुए झरने लगा "ओह साली मेरा भी निकल रहा है रीईईई, रंडी , निकल रहा हैओह रंडी, छीनाल साली, तूने तो आज जन्नत की सैर करा दी रे.. मेरी जान. मेरी सोना..मेरी रानी.. मेरी माँ , ओह गया मैं तो, ओह चुड़ैल ...डायन.... तेरी बुर में मेरा पानी निकल रहा है रीईईईईई ले पी ले अपनी चूत से मेरे लौड़े के पानी को पी ले और निगल ज़ा...मेरे लंड को पूरा का पूरा बुर मारनी बुरचोदी "''' ''....... ......... ... हाय रे रंडी निकल गया रे मेरा तो पूरााआआआआआ" कह कर मैं माँ के उपर लेट गया. हम दोनो की आँखे बंद थी और दोनो एक दूसरे बदन से चिपके हुए थे. थकान के मारे दोनो में से किसी को होश ऩही था कि क्या हो गया है.
एक दूसरे से चिपके हुए कब आँख लगी कब मेरा लंड उसकी चूत से बाहर निकल गया कब हम दोनो सो गये इसका पता हमे ऩही लगा.

5 comments:

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