Tuesday 30 October 2012

मेरी नैनीताल वाली दीदी-1 - Nainital Vali Didi 1



मेरी नैनीताल वाली दीदी-1
प्रेषक : सोनू कुमार

मेरी बी ए की परीक्षा ख़त्म हो गई थी। मैं अपनी चचेरी दीदी के यहाँ घूमने नैनीताल गया। उनसे मिले हुए मुझे कई साल हो गए थे। जब मैं सातवीं में पढ़ता था तभी उनकी शादी फौज के रणवीर सिंह के साथ हो गई। अब वो लोग नैनीताल में रहते थे। मैंने सोचा कि दीदी से मिलने के साथ साथ नैनीताल भी घूम लूँगा।

वहाँ पहुँचने पर दीदी बहुत खुश हुई, बोली- अरे तुम इतने बड़े हो गए? मैंने तुम्हे जब अपनी शादी में देखा था तो तुम सिर्फ़ 11 साल के थे।

मैंने कहा- जी दीदी, अब तो मैं बीस साल का हो गया हूँ।

दीदी ने मुझे खूब खिलाया-पिलाया। जीजा जी अभी पिछले तीन महीने से कश्मीर में अपनी ड्यूटी पर थे। दीदी की शादी हुए नौ साल हो गए थे। दीदी की एक मात्र संतान तीन साल की जूही थी जो बहुत ही नटखट थी। वो भी मुझसे बहुत ही घुल-मिल गई।

शाम को जीजा जी का फ़ोन आया तो मैंने उनसे बात की। वो भी बहुत खुश थे मेरे आने पर, बोले- एक महीने से कम रहे तो कोर्ट मार्शल कर दूँगा।

रात को यूँ ही बातें करते करते और पुरानी यादों को ताज़ा करते करते मैं अपने कमरे में सोने चला गया। दीदी ने मेरे लिए बिस्तर लगा दिया और बोली- अब आराम से सो जाओ।

मैं आराम से सो गया। किंतु रात के एक बजे नैनीताल की ठंडी हवा से मेरी नींद खुल गई। मुझे ठण्ड लग रही थी। हालाँकि अभी मई का महीना था लेकिन मैं मुंबई का रहने वाला आदमी भला नैनीताल की मई महीने की भी हवा को कैसे बर्दाश्त कर सकता। मेरे पास चादर भी नहीं थी, मैंने दीदी को आवाज लगाई लेकिन वो शायद गहरी नींद में सो रही थी। थोड़ी देर तो मैं चुप रहा लेकिन जब बहुत ठण्ड लगने लगी तो मैं उठ कर दीदी के कमरे के पास जाकर उन्हें आवाज लगाई। दीदी मेरी आवाज़ सुन कर हड़बड़ी से उठ कर मेरे पास चली आई और कहा- क्या हुआ सोनू?

वो सिर्फ़ एक गंजी और छोटी सी निक्कर जो औरतों की पैंटी से थोड़ी ही बड़ी थी, पहने थी। गंजी भी सिर्फ़ छाती को ढकने की अधूरी सी कोशिश कर रही थी। मैं उनके वस्त्र को देख कर दंग रह गया। दीदी की उमर अभी उनतीस या तीस की ही रही होगी। सारा बदन सोने की तरह चमक रहा था।

मैं उनके बदन को एकटक देख ही रहा था कि दीदी ने फिर कहा- क्या हुआ सोनू?

मेरी तंद्रा भंग हुई, मैंने कहा- दीदी मुझे ठण्ड लग रही है। मुझे चादर चाहिए।

दीदी ने कहा- अरे मुझे तो गर्मी लग रही है और तुझे ठंडी?

मैंने कहा- मुझे यहाँ की हवाओं की आदत नहीं है ना।

दीदी ने कहा- अच्छा तू कमरे में जा, मैं तेरे लिए चादर लेकर आती हूँ।

मैं कमरे में आकर लेट गया। मेरी आंखों के सामने दीदी का बदन अभी भी घूम रहा था। दीदी का अंग अंग तराशा हुआ था। थोड़ी ही देर में दीदी एक कम्बल लेकर आई और मेरे बिस्तर पर रख दिया, बोली- पता नहीं कैसे तुम्हें ठण्ड लग रही है। मुझे तो गर्मी लग रही है। खैर, कुछ और चाहिए तुम्हें?

मैंने कहा- नहीं, लेकिन कोई शरीर दर्द की गोली है क्या?

दीदी बोली- क्यों क्या हुआ?

मैंने कहा- लम्बी सफर से आया हूँ, बदन टूट सा रहा है।

दीदी ने कहा- गोली तो नहीं है, रुक मैं तेरे लिए कॉफ़ी बना कर लाती हूँ, इससे तेरा बदन दर्द दूर हो जायेगा।

मैंने कहा- छोड़ो दीदी, इतनी रात को क्यों कष्ट करोगी?

दीदी ने कहा- इसमें कष्ट कैसा? तुम मेरे यहाँ आए हो तो तुम्हें कोई कष्ट थोड़े ही होने दूँगी।

कह कर वो चली गई। थोड़ी ही देर में वो दो कप कॉफ़ी बना लाई। रात के डेढ़ बज़ रहे थे। हम दोनों कॉफ़ी पीने लगे।

कॉफ़ी पीते पीते वो बोली- ला, मैं तेरा बदन दबा देती हूँ, इससे तुम्हें आराम मिलेगा।

मैंने कहा- नहीं दीदी, इसकी कोई जरूरत नहीं है। सुबह तक ठीक हो जाएगा।

लेकिन दीदी मेरे बिस्तर पर चढ़ गई और बोली- तू आराम से लेटा रह, मैं अभी तेरी बदन की मालिश कर देती हूँ।

कहते कहते वो मेरी टाँगों को अपनी जाँघों पर रख कर उसे अपने हाथों से दबाने लगी। मैंने पजामा पहन रखा था। वो अपनी नंगी जाँघों पर मेरे पैर रख कर उसे दबाने लगी।

दबाते हुए बोली- एक काम कर, पजामा खोल दे, पूरी टांगों पर अच्छी तरह से तेल मालिश कर दूँगी।

अब मैंने किसी बात से इन्कार करने का विचार त्याग दिया, मैंने झट अपना पजामा खोल दिया, मैं अंडरवियर और बनियान में था।

दीदी फिर से मेरे पैर को अपनी नंगी जांघों पे रख कर तेल लगा कर मालिश करने लगी। जब मेरे पैर उनकी नंगी और चिकनी जाँघों पर रखे थे तो मुझे बहुत आनन्द आने लगा। दीदी की चूची उनकी ढीली गंजी से बाहर दिख रही थी, उसकी चूची की घुण्डी उनकी पतली गंजी में से साफ़ दिख रही थी। मैं उनकी चूची को देख देख कर मस्त हुआ जा रहा था। उनकी जांघ इतनी चिकनी थी कि मेरे पैर उस पर फिसल रहे थे। उनका हाथ धीरी धीरे मेरे अंडरवियर तक आने लगा। उनके हाथ के वहाँ तक पहुँचने पर मेरे लण्ड में तनाव आने लगा। मेरा लण्ड अब पूरी तरह से फनफनाने लगा, लण्ड अंडरवियर के अन्दर करीब छः इंच ऊँचा हो गया। दीदी मेरी पैरों को पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींच लाई और मेरे दोनों पैर को अपने कमर के अगल-बगल करते हुए मेरे लण्ड को अपने चूत में सटा लिया।

मुझे दीदी की मंशा गड़बड़ लगने लगी लेकिन अब मैं भी चाहता था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ हो जानी चाहिए।

दीदी ने कहा- गुड्डू, तू अपनी बनियान उतार दे, छाती की भी मालिश कर दूँगी।

मैंने बिना समय गंवाए बनियान भी उतार दिया। अब मैं सिर्फ़ अंडरवियर में था। वो जब भी मेरी छाती की मालिश के लिए मेरे सीने पर झुकती उनका पेट मेरे खड़े लण्ड से सट रहा था। शायद वो जानबूझ कर मेरे लण्ड को अपने पेट से दबाने लगी।

एक जवान औरत मेरी तेल मालिश कर रही है, यह सोच कर मेरा लिंग महाराज एक इंच और बढ़ गया। इससे थोड़ा थोड़ा रस निकलने लगा जिससे मेरा अंडरवियर गीला हो गया।

अचानक दीदी ने मेरे लिंग को पकड़ कर कहा- यह तो काफी बड़ा हो गया है तेरा।

दीदी ने जब मुझसे यह कहा तो मुझे शर्म सी आ गई कि शायद दीदी को मेरा लण्ड बड़ा होना अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे लगा शायद वो मेरे सुख के लिए मेरा बदन मालिश कर रही है और मैं उनके बदन को देख कर मस्त हुआ जा रहा हूँ और गंदे गंदे ख्याल सोच कर अपना लण्ड को खड़े किये हुआ हूँ।

इसलिए मैंने धीमे से कहा- यह मैंने जानबूझ कर नहीं किया है, खुद-ब-खुद हो गया है।

लेकिन दीदी ने मेरे लण्ड को दबाते हुए मुस्कुराते हुए कहा- बच्चा बड़ा हो गया है। जरा देखूँ तो कितना बड़ा है मेरे भाई का लण्ड?

यह कहते हुए उसने मेरा अंडरवियर को नीचे सरका दिया। मेरा सात इंच का लहलहाता हुआ लण्ड मेरी दीदी की हाथ में आ गया। अब मैं पूरी तरह से नंगा अपनी दीदी के सामने था।दीदी ने बड़े प्यार से मेरे लिंग को अपने हाथ में लिया और उसमे तेल लगा कर मालिश करने लगी।

दीदी ने कहा- तेरा लिंग लंबा तो है मगर तेरी तरह दुबला पतला है। मालिश नहीं करता है इसकी?

मैंने पूछा- जीजा जी का लिंग कैसा है?

दीदी ने कहा- मत पूछो। उनका तो तेरे से भी लंबा और मोटा है।

वो बोली- कभी किसी लड़की को नंगा देखा है?

मैंने कहा- नहीं।

उसने कहा- मुझे नंगा देखेगा?

मैंने कहा- अगर तुम चाहो तो !

दीदी ने अपनी गंजी एक झटके में उतार दी, गंजी के नीचे कोई ब्रा नहीं थी, उनकी बड़ी बड़ी चूची मेरे सामने किसी पर्वत की तरह खड़े हो गई। उनकी दो प्यारी प्यारी चूची मेरे सामने थी।

दीदी पूछी- मुठ मारते हो?

मैंने कहा- हाँ।

दीदी- कितनी बार?

मैं- एक दो दिन में एक बार।

दीदी- कभी दूसरे ने तेरी मुठ मारी है?

मैं- हाँ।

दीदी- किसने मारी तेरी मुठ?

मैं- एक बार मैंने और मेरा एक दोस्त ने एक दूसरे की मुठ मारी थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

दीदी- कभी अपने लिंग को किसी से चुसवा कर माल निकाला है तूने?

मैं- नहीं।

दीदी- रुक, आज मैं तुम्हे बताती हूँ कि जब कोई लिंग को चूसता है तो चुसवाने वाले को कितना मज़ा आता है।

इतना कह कर दीदी ने मेरे लिंग को अपने मुंह में ले लिया और पूरे लिंग को अपने मुंह में भर लिया। मुझे ऐसा लग रहा था कि वो मेरे लिंग को कच्चा ही खा जायेगी, अपने दाँतों से मेरे लिंग को चबाने लगी।

करीब तीन चार मिनट तक मेरे लिंग को चबाने के बाद वो मेरे लिंग को अपने मुंह से अन्दर-बाहर करने लगी। एक ही मिनट हुआ होगा कि मेरा माल बाहर निकलने को बेताब होने लगा।

मैं- दीदी, छोड़ दो, अब माल निकलने वाला है।

दीदी- निकलने दे ना !

उन्होंने मेरे लिंग को अपने मुंह से बाहर नहीं निकाला, मेरा माल बाहर आने लगा। दीदी ने सारा माल पी जाने की पूरी कोशिश की लेकिन मेरे लिंग का माल उनके मुंह से बाहर निकल कर उनके गालों पर भी बहने लगा।

कहानी जारी रहेगी।

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1 comment:

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