Tuesday 30 October 2012

दिल की कशिश-2 - Dil Ki Kashish 2


दिल की कशिश-2
लेखिका : नेहा वर्मा

मेरे लेटते ही रोहन भी मेरी बगल में लेट गया। फिर उसने अपना सर नीचे किया और मेरी चूचियों में अपना चेहरा दबा कर करवट पर लेट गया।

उफ़्फ़ ! इतना बड़ा लड़का... और मेरी चूचियों में सर घुसा कर... मैं भी प्यार से अभीभूत होने लगी। मैंने धीरे से उसके सर को अपने सीने से और भींच लिया। अपने दूसरे हाथ उसकी पीठ सहलाने लगी। वो मुझसे और चिपक सा गया। उसकी अब एक टांग मेरी कमर पर आ गई और अपना एक हाथ मेरे चूतड़ पर रख कर मुझे अपनी ओर दबा लिया।

उफ़्फ़ ! कैसे शरीर से शरीर कस कर चिपक गये थे। मेरे तन में जैसे ज्वाला धधक उठी। मेरा दिल घायल हो कर जैसे लहूलुहान होने लगा। ये कैसी जलन ! ये कैसी अगन ! चूत में तेज खुजली उठने लगी।

तभी जाने कैसे मेरे गहरे गले का ढीला ढाला सा ब्लाऊज़ एक तरफ़ हो गया और मेरी एक चूची उसने अपने मुख में भर ली और वो चूसने लगा। मैंने भी अपनी चूची उसके मुख में और ठूंसते हुये आह भरी...

"मुन्ना ! यह मत करो... आह्ह्ह... अब बहुत हो गया सीऽऽऽ... अब हट जाओ ना अहःहः"

"प्लीज भाभी, बहुत आनन्द आ रहा है... बस थोड़ी देर और..."

इस थोड़ी देर में तो मेरी जान निकल जाने वाली थी... मैंने कुछ नहीं कहा। मुझे बहुत ही तेज मज़ा आने लगा था... मैं उसे हटने को नहीं बल्कि लण्ड घुसेड़ने को कह रही थी।अब उसने ताकत से मुझे सीधे लेटा दिया था और अपना मुख मेरे मुख से मिला दिया था। मेरे होंठ थरथराने लगे थे। लण्ड घुसने की चाह में मैं तो पागल हुई जा रही थी। पर अब जोर से पुच्च पुच्च की चूमने की आवाजें आने लगी थी। मैं नीचे दब सी गई थी। मैं इधर उधर बल खाकर, अपने शरीर को उसके शरीर से रगड़ कर अपनी उत्तेजना बढ़ा रही थी। उसे लगा कि शायद मैं अपने आप को बचाने में लगी हूँ... सो उसने अपना शरीर खींच कर मेरे ऊपर ले लिया और मुझे अपने कब्जे में ले लिया। अब तो उसका लण्ड भी मेरे पेट के निकट रगड़ खा रहा था। मेरी चूत बल खाकर उसे अपने कब्जे में लेने का प्रयत्न करने लगी थी। पर उसने अब मेरी टांगें भी दबा ली थी। अब लण्ड ठीक चूत के ऊपर आ गया था। जैसे ही उसका लण्ड पेटीकोट के ऊपर से मेरी चूत पर टकराया... मैंने चूत को ऊपर उठा कर जोर से रगड़ मारी।

"भाभी... मुझे तो आपको चोदना है... हः हः... बस लण्ड धुसेड़ना है..."

"मुन्ना... आह्ह्ह्ह मुन्ना... मेरी जान..."

वो अपना लण्ड बड़े प्यार से धीरे धीरे मेरी चूत पर घिसने लगा, मैं भी उसका साथ देने लगी थी। पता नहीं कैसे मेरा पेटीकोट कमर तक उठ गया। उसका पजामा खुल कर पैरों पर सिमट आया था। उसका नंगा गरम लण्ड का मोटा सुपाड़ा अचानक मेरी चूत से टकरा गया। उसने मुझे देखा... मैंने भी उसे देखा और फिर मेरी चूत पर दबाव बढ़ने लगा।

भाभी, बहुत गर्म है आपकी चूत तो...।

"उह्ह्ह्ह... हच्च्च... मां मेरी..." मेरे मुख से निकल पड़ा।

उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में धंस गया था। मेरी तो खुशी के मारे जैसे जान निकली जा रही थी। हाय ! कितने दिनों के बाद कोई बढ़िया लण्ड खाया था मेरी चूत ने...

"हिस्स्स ! क्या कर रहे हो रोहन, सी... मैं तो तुम्हारी भाभी हूँ।" वासना से तड़पती हुई हाँ और ना करती हुई हकलाने लगी।

"हाँ भाभी... मैं तो आपका देवर हूँ ना !"

"जानते हो भाभी किसके बराबर होती है... इस्स्स्स... धीरे से डालो..."

"पता नहीं, पर देवर-भाभी के किस्से तो मैंने बहुत सुने हैं..."

"आह्ह्ह्ह इस्स्स्स, धीरे से... कैसा कैसा लग रहा है ना मुन्ना !!"

"हाँ, बहुत मजा आ रहा है भाभी..."

"तो देख क्या रहा है... चोद दे अपनी प्यारी भाभी को।"

तभी उसने एक शॉट मारा...

"उईईईई मर गई मुन्ना... जरा और मस्ती से..." मेरी चूत की ज्वाला और तेज भड़क उठी।

उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और सरररररर करते हुये उसने पूरा ही घुसा दिया।

"ई ईई ईई... साले मुन्ने... मजा आ गया... पहले कहाँ था रे... चोद जरा मस्ती से..." शरीर आग हुआ जा रहा था।

अब रोहन ने अपने दोनों हाथों को सीधा करके अपना शरीर ऊपर उठा लिया और अपने लण्ड को बिना किसी अंग को छुये हल्के हल्के से चूत में चलाने लगा। इस मधुर चुदाई की मैं तो कायल हो गई। इंजन की धीमी गति, एक सी मंथर गति लिये हुये... मेरे शरीर के अंगों में जादू जगाता हुआ उसके शरीर का लण्ड वाला हिस्सा लयबद्ध तरीके से चल रहा था और लण्ड मेरी चूत की सही मायने में खुजली को मिटा रहा था।

तन में मिठास भरती जा रही थी... मैं अपनी दोनों टांगें पूरी उठाये हुये, चित्त लेटी हुई... चुदाई का मस्त मजा ले रही थी। मन में कोई बात नहीं, कोई संकोच नहीं... कोई गलत भावना नहीं... बस शून्य में मुस्काती हुई, गुदगुदाती हुई मधुर वासना में अभिभूत... आनन्द भोग रही थी।

आनन्द मेरी चुदाई की सीमा को तोड़ने लगी थी। मुझे लग रहा था कि बस मैं चरम सीमा तक पहुँच चुकी हूँ। मेरा जोश उबाल पर था। उसके शॉट बहुत तीव्रता से चलने लगे थे। मैं तो जैसे बल खा कर अपने आप को झड़ाना चाह रही थी।फिर आह्ह्ह्ह्ह ! मैं जोर से झड़ ही गई। पर वो रोहन, मुस्टण्डा जैसा, दे शॉट पर शॉट मुझे चोदे जा रहा था। हाँ, मेरे झड़ने का अहसास उसे हो गया था। उसने अपना फ़ूला हुआ लण्ड चूत से बाहर खींच लिया। मैं लस्त सी पड़ गई।

रोहन ने मुझे जल्दी से पलट दिया... मैं समझ गई थी कि अब मेरी गाण्ड चोद देगा...

"अरे मुन्ना, बस अब नहीं... अरे मैं मर जाऊंगी...!"

"नहीं... नहीं बस भाभी... बस दो मिनट की बात और है... मैं भी झड़ने वाला हूँ... प्लीज !"

फिर तो मेरे मुख से चीख निकल पड़ी। उसके लण्ड ने जबरदस्ती अपना लण्ड मेरी गाण्ड दबा दिया।

"ठहरो तो... मुझे रिलेक्स तो होने दो... "

मैं क्या करती? मैंने अपनी गाण्ड के छेद को ढीला छोड़ा... तो उसका लण्ड अन्दर घुस पड़ा। मेरी आँखें फ़ैलने लगी। मुख से एक चीख निकल गई। उसका सुपारा मुझे बहुत ही मोटा महसूस हो रहा था। लण्ड था या लक्कड़ था ! उसके लण्ड पर मेरी चूत की कुछ चिकनाई भी लगी थी सो रोहन ने थोड़ी सी कोशिश से उसे धीरे धीरे करके अपने लण्ड को पूरा ही अन्दर घुसेड़ दिया। फिर मुझे अधिक तकलीफ़ नहीं हुई। मुझे वो दिन याद आ गये जब शादी के पहले मेरे गर्भ ठहरने के डर से मेरे एक मित्र ने मेरी गाण्ड बहुत प्यार से मारी थी। मुझे उस समय लगा था कि लड़कियाँ सिर्फ़ चूत ही क्यों चुदाती हैं जब गाण्ड मरवाना कितना सुरक्षित और आनन्ददायक था।

फिर तो रोहन ने मेरी गाण्ड को खूब पीटा... खूब पीटा... मुझे तो ऐसा लगने लगा था कि चुद तो मेरी गाण्ड रही है पर मैं चूत से झड़ने वाली हूँ। रोहन के मुख से तेज सिसकारियाँ निकलने लगी थी। उसने बड़े ही जोर से मेरे चूचक को दबाना शुरू कर दिया। मुझे इस बेतरतीब चूचियों के तोड़ने मरोड़ने से बहुत ही तकलीफ़ और दर्द होने लगा था। पर झड़ते हुये मर्द को कौन रोक सका है। फिर एकाएक जोर की हुंकार भरता हुआ उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और फिर जोर जोर से उसने अपनी लण्ड से पिचकारियों के रूप में वीर्य फ़ेंकने लगा। मेरी क्या तो गाण्ड के गोले और क्या तो पीठ, सारी जैसे कीचड़ से भर गई।

उसने अपनी एक अंगुली में वीर्य को भर कर मेरे मुख में डाल दी।

"अरे... छीः ये क्या कर रहे हो...?"

"फ़्रेश माल है भाभी... चखो तो सही...!"

"दूर करो, मुझे तो घिन आती है..."

पर उसका रस मेरे मुख में तो आ ही चुका था। रोहन ठीक कह रहा था। मुझे वो बेस्वाद जरूर लगा... पर मुझे एक तरह से आनन्द भी आया।

"मुन्ना, जरा एक अंगुली और चटाना...!"

"... प्लीज एक और..." यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

फिर तो उसे कहना ही पड़ा- अरे भाभी... ये कोई फ़ेक्टरी थोड़े ही है... जितना था सब तो चटा दिया...

"धत्त मुन्ना... अब की बार मुझे सीधा खिला देना...अंगुली से नहीं...!"

"भाभी मुझे तो लगता है कि जैसे आप अंगुली नहीं, मेरा लण्ड चाट रही हो..."

"अरे बदमाश... अब इतना तो कर लिया, अब क्या लण्ड भी चटायेगा...?"

पर मन में तो था ही ना... मैं झट से उसे सीधा लेटा कर उसका लण्ड अपने मुख में लेकर चाटने लगी। उसका तो एकदम लण्ड तन्ना गया। उसे क्या मालूम था कि मैं तो लण्ड चुसाई में एक्सपर्ट हूँ... कुछ ही देर में मैंने उसका वीर्य एक बार फिर से निकाल कर खूब स्वाद ले लेकर धीरे धीरे पिया। मुझे अच्छा लगा... ओह्ह मैंने बेकार ही कितना वीर्य नष्ट किया...

मेरे पति राजेश जब तक सर्वे पूरा करके लौटे तो मुझे स्वस्थ्य और प्रसन्नचित देख कर बहुत खुश हुये। अब तो मैं और रोहन इनके ऑफ़िस जाने पर खूब जम कर चुदाई किया करते थे। पर वो दिन भी आना ही था कि रोहन को जाना पड़ा।

रोहन तो उस दिन खूब रोया... राजेश ने उसे समझाया कि भई हम तो यहीं है ना... कॉलेज की छुट्टियाँ हो तो आ जाया करना।

"मुन्ना जी, छुट्टियाँ होते ही आ जाना... प्लीज...!"

राहुल का चेहरा मेरी विनती पर खिल गया... और वो खुशी खुशी लौट पड़ा। अब इस दिल की कशिश का क्या करूँ ? मेरा देवर तो मेरा दिल ले गया था। बस अब तो मुझे उसी से चुदना है...

नेहा वर्मा

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