तो लगी शर्त-1
लेखिका : शालिनी राठौर
सम्पादक : राज कार्तिक
दोस्तो, कहानी पढ़ने से पहले मेरा आप सब से परिचय करवा दूँ। मेरा नाम है शालिनी राठौर यानि लेडी रावड़ी राठौर।
मेरे मोहल्ले के लड़के मुझे सविता भाभी के नाम से जानते हैं क्योंकि मैं एकदम मस्त मौला हूँ और अपनी मर्जी से करती हूँ सब कुछ। लड़कों की हिम्मत नहीं होती मेरे आसपास भी फटकने की।
उम्र है मेरी... !!??!! अरे हट ना ! लड़कियों से उनकी उम्र नहीं पूछी जाती जी।
इतना तो है कि मैं बहुत सुन्दर हूँ और मेरे इलाके के लड़के तो क्या बुड्ढे भी लाइन में खड़े होकर मेरे लिए आहें भरते हैं पर मैं किसी को भी घास नहीं डालती।
भगवान ने मेरा शरीर भी फुरसत से बनाया है, एकदम हरा-भरा। मेरी चूचियों का उत्थान देख कर तो बुड्ढों का लण्ड टपक जाता है। भरपूर गोलाई लिए ऊपर को तनी हुई चूचियाँ हैं मेरी। पतली सी कमर और चूतड़ों की तो पूछो ही मत ! ना जाने कितने घायल होकर गिर पड़ते हैं मेरे मटकते चूतड़ देख कर।
तो ऐसी हूँ मैं !
अब मेरी कहानी !
इस कहानी को आप लोगों के बीच मेरे एक मित्र राज कार्तिक लेकर आ रहे हैं।
तो अब कथा-प्रारम्भ :
मेरी शादी को तब दो महीने ही हुए थे, मेरे चाचा की लड़की सुमन की शादी थी तब, मैं भी शादी में गई थी।
क्या बताऊँ !
उस समय क्योंकि मेरी नई-नई शादी हुई थी या अगर खुले शब्दों में कहें तो मुझे नया-नया लण्ड का मज़ा मिला था तो लण्ड के पानी ने मेरी जवानी को और निखार दिया था।
आप लोगों की भाषा में 'क़यामत' हो गई थी मैं।
शादी में जिसने भी मुझे देखा मेरी तारीफ किये बिना ना रह सका।
सभी की जुबान पर एक ही बात थी- हाय छोरी ! तन्ने कैसै की नजर ना लगै... तू तो बौहोत निखरगी है ब्याह क पाच्छै !
भाभियाँ भी मजाक करने से नहीं चूकी- ननद सा... लागे हमारे ननदोई सा पुरा रगडा लगावे है... रूप निखार दियो तेरी तो..."
दिन बीता और शादी की रात भी आई, और शादी हो गई।
हमारे राजस्थान में शादी के बाद एक रात दूल्हा-दुल्हन एक साथ लड़की के घर पर ही रहते हैं। रात को दूल्हा-दुल्हन को उनके कमरे में छोड़ दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मेरी एक भाभी कुछ शरारती किस्म की है तो वो मुझसे बोली- शालू... देक्खाँ त सई के ननदोई सा रात ने कुछ करें बी क नईं !
मैं शरमाई पर फिर मेरा भी दिल किया कि देखा जाए।
हम दोनों ने जैसे-तैसे कमरे में अंदर झाँकने का रास्ता ढूँढा। अंदर देखा तो मेरे तो कान लाल हो गए। पूरे बदन में झुरझुरी सी फ़ैल गई।
सुमन मेरी चचेरी बहन बिस्तर पर नंगी बैठी थी शरमाई सी। उसके सामने ही मेरे नए जीजाजी जिनका नाम राज है, वो खड़े थे बिल्कुल नंगे।
उनका मुँह दूसरी तरफ था।
मैं उनका लण्ड नहीं देख पा रही थी जिसको देखने की लालसा में मैं भाभी के साथ यहाँ बैठी थी।
वो आपस में धीरे धीरे कुछ बोल रहे थे पर समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात कर रहे हैं। तभी राज जीजा हमारी तरफ घूमे तो उनका लण्ड देखते ही मेरी चूत ने तो पानी छोड़ दिया। मस्त मूसल सा लण्ड था राज जीजा का ! एकदम तन कर खड़ा हुआ।
"भाभी आज सुमन की तो खैर नहीं... जीजा इस मूसल से फाड़ डालेंगे सुमन की !"
भाभी ने मुझे चुप करवा दिया और खुद भी चुपचाप अंदर देखते हुए अपनी चूचियाँ मसलती रही।
जीजा तेल की शीशी उठाकर फिर से सुमन के पास गए और सुमन को लेटा कर उसकी चूत पर अच्छे से तेल लगाया। सुमन भी मदहोश होकर मज़ा ले रही थी। तेल लगा कर जीजा ने सुमन की चूत पर लण्ड रखा और जोर से धक्का लगा दिया।
सुमन जोर से चीख उठी।
लण्ड चूत को चीरता हुआ अंदर धस गया। राज जीजा ने बिना तरस खाए जोर जोर से दो तीन धक्के और लगा दिए। लण्ड अंदर की तरफ घुसता चला गया जैसे कोई कील गाड़ दी गई हो।
सुमन चीखती जा रही थी पर जीजा पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था, वो तो अपनी ही मस्ती में धक्के पर धक्के लगा रहे थे।
सुमन छटपटाती रही और जीजा चोदते रहे।
जीजा ने करीब आधा घंटा तक सुमन को रगड़ रगड़ कर चोदा था। उनकी चुदाई देख कर मेरी तो चूत-पैंटी-पेटीकोट सब गीले हो गए थे। मेरी चूत ने पानी ही इतना छोड़ दिया था।
फिर भाभी और मैं नीचे अपने कमरे में आकर लेट गए। भाभी की हालत भी खस्ता हो रही थी। सुमन और राज जीजा की चुदाई देख कर उसकी चूत में भी कीड़े कुलबुलाने लगे थे। तभी कमरे के बाहर भाई नजर आये और उन्होंने भाभी को इशारा किया। भाभी तो इसी इशारे में इन्तजार में थी। वो उठ कर चली गई अब कमरे में मैं अकेली थी। चूत मेरी भी लण्ड लेने को छटपटा रही थी पर मैं भला किस से चुदवाती।
मैं कुछ देर ऐसे ही लेटी रही और फिर उठ कर दुबारा सुमन और जीजा की सुहागरात देखने खिड़की के पास पहुँच गई।
जीजा अब दूसरी बार सुमन को चोद रहे थे और सुमन पहले की तरह ही चीख रही थी। सुमन की चीखों को समझ पाना मुश्किल था क्यूंकि उसकी चीखें कभी तो मस्ती भरी महसूस हो रही थी तो कभी दर्द भरी।
पर अब वो मस्त होकर चुदवा रही थी।
जीजा का गठीला बदन देख कर मेरी चूत फिर से पानी-पानी हो गई। मैं बहुत देर तक अकेली वहाँ बैठी सुमन और जीजा की चुदाई देखती रही।
फिर जब नींद ज्यादा आने लगी तो जाकर सो गई।
सुबह उठते ही मैं सीधा सुमन के कमरे के पास पहुँची। इत्तिफाक ही था कि जैसे ही मैं कमरे के बाहर पहुँची जीजा ने अंदर से दरवाजा खोला।
जीजा बाहर आ रहे थे तो मुझे शरारत सूझी।
"जीजा तुम तो चीखें बहुत निकलवाते हो ...? !"
"तूने कब सुनी...?"
"रात को, जब तुम सुमन को रगड़ रहे थे और वो चीख रही थी, तब सुनी !"
"अजी, हमारे कमरे में तो रात को जो भी रहेगा उसकी ऐसे ही चीखें निकलेंगी... क्यों तुम्हारे वाले नहीं निकलवाते तुम्हारी चीखें?"
"हमारी चीखें निकलवाने वाला तो अभी पैदा ही नहीं हुआ जीजा जी !" कह कर मैं हँस पड़ी।
"और अगर हमने तुम्हारी चीखें निकलवा दी तो ???" जीजा ने भी अपना तीर मुझ पर चलाया।
अगर मैं सतर्क ना होती तो शायद पहली ही बार में घायल हो जाती। पर मैंने अपने ऊपर काबू रखा,"रहने दो जीजा... मैं सुमन नहीं हूँ !"
इस पर जीजा बोले,"तो लगी शर्त? अगर मैंने तुम्हारी चीखें निकलवा दी तो !?"
मैं भी...
कहानी जारी रहेगी !
piyarathore.sr@gmail.com
मेरे प्रिय मित्र राज की आईडी तो आपको पता ही होगी फिर भी बता देती हूँ।
Sharmarajesh96@gmail.com
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