चरित्र बदलाव–8
प्रेषक : अमित अग्रवाल
अन्तर्वासना के पाठकों को एक बार फिर से मेरा प्यार और नमस्कार ! काफी सारे मित्रों के ढेरों मेल मिले, आप लोगों को मेरी जीवन की कहानी इतनी अच्छी लगेगी, मैंने सोचा भी नहीं था। इस बारे में और अपने बारे में ज्यादा बात ना करते हुए मैं अपनी कहानी को आगे बढ़ाता हूँ। नए पाठकों से निवेदन है कि पहले की कहानी जानने के लिए पहले के सातों भाग
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पढ़ें।
अगले दिन प्रिया भाभी सुबह ही अपने मायके से वापिस आ गई क्योंकि रविवार था, प्रिया भाभी कि छुट्टी थी। शायद थकान के कारण प्रिया भाभी आते ही सीधे अपने कमरे में चली गई। चूँकि सभी सदस्य घर पर थे इसलिए उस दिन प्रिया भाभी से अकेले में बात ही नहीं हो पाई।
मैंने सोचा कि जब प्रिया भाभी अकेले में होंगी तब बात करूँगा, इसलिए मैं शाम होने का इंतज़ार करने लगा। शाम को लगभग सात बजे का समय था, भैया टहलने के लिए बाहर गए हुए थे, मैं मौका पाकर सीधा प्रिया भाभी के कमरे में घुस गया और अंदर से कुण्डी लगा ली।
प्रिया भाभी बिस्तर पर उलटी लेटकर कोई किताब पढ़ रही थी। मैं जाते ही प्रिया भाभी के कूल्हों पर हाथ फेरने लगा तो प्रिया भाभी ने उसका जवाब हँसते हुए दिया और सीधा होकर मुझसे बातें करने लगी।
क्योंकि अंदर से दरवाजा बंद था इसलिए मुझे किसी का डर नहीं था, मैंने अपनी पैंट की ज़िप खोलते हुए अपना लण्ड प्रिया भाभी की तरफ किया और एक बार चूसने को बोला। प्रिया भाभी बिना कुछ कहे हुए मेरे लण्ड को लॉलीपोप की तरह चूसने लगी। चूँकि भैया के आने का समय हो गया था इसलिए कुछ देर अपना लण्ड चुसवाने के बाद मैं वापिस अपने कमरे में लौट आया।
अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो देखा कि प्रिया भाभी अभी भी घर पर हैं। मैं हैरान था क्योंकि उस वक्त तक प्रिया भाभी अपनी जॉब पर चली जाती थी। पूछने पर पता चला कि मनीषा और बुआ आज हमारे घर आ रहे थे क्योंकि मनीषा को लड़के वाले देखने आने वाले थे इसलिए प्रिय भाभी ने छुट्टी ले ली थी।
जैसा कि मैंने पहले ही बताया था मनीषा देखने में बहुत ही सुन्दर है और बहुत आधुनिक भी है क्योंकि उसका बचपन अमेरिका में अपने चाचा के यहाँ बीता है। सुबह के करीब दस बजे मनीषा और बुआ हमारे घर आ गए। घर में बहुत से काम होने की वजह से मैं भी कॉलेज नहीं गया।
मैं अपने कमरे में बैठा था, तभी मनीषा मेरे कमरे में आई। जैसे ही मैंने उसे देखा मैं एक पथरा सा गया क्योंकि मैंने उसे तीन साल पहले देखा था और अब वो पहले से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी।
मनीषा ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और मेरे बिस्तर पर आकर बैठ गई और हम दोनों बैठ कर बातें करने लगे।
मनीषा वैसे तो बहुत ही ज्यादा सुन्दर थी मगर उसमें बाकी लड़कियों की तरह घमंड बिल्कुल भी नहीं था। कुछ देर बाद मम्मी ने मुझे बुलाया कि बाजार से कुछ सामान लाना है और मैं बाजार चला गया।
जब मैं वापिस घर आया तो मैं मनीषा को ढूंढने लगा क्योंकि मैं मनीषा की तरफ काफी मोहित हो चुका था। मगर मुझे मनीषा कहीं भी नजर नहीं आई, तो मैं भी अपने कपड़े बदलने के लिये अपने कमरे में चल दिया। कमरे में कोई भी नहीं था इसलिए मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपने कपड़े उतार दिए। मैं सिर्फ अंडरवीयर और बनियान में अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुसने लगा।
जैसे ही मैंने बाथरूम के दरवाजे को धकेला तो मैं अंदर का नजारा देखता ही रह गया, अंदर मनीषा नहा रही थी और उसने उस वक्त कुछ भी नहीं पहना हुआ था।
जैसे ही मनीषा ने मुझे देखा तो उसने अपना एक हाथ अपने वक्ष और दूसरा हाथ अपनी चूत पर रख लिया। मगर मनीषा को इस रूप में देख कर मेरी वासना जग चुकी थी और मैं अंदर घुस गया।
मुझे अंदर घुसता देखकर मनीषा इधर-उधर देखने लगी और बिल्कुल चुप हो गई, मनीषा के इस रूप को देख कर मेरा भी लण्ड खड़ा हो चुका था। उस वक्त मैं सिर्फ अन्डरवीयर और बनियान में था इसलिए मेरा खड़ा लण्ड साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था।
मैं सीधा अंदर घुसा और अपने हाथों से पकड़ कर मनीषा को खड़ा किया और अपनी बाहों में भर कर बोला- मनीषा, आज तुम बहुत ही सेक्सी लग रही हो !
मनीषा फिर भी बिल्कुल चुप खड़ी रही, कुछ नहीं बोली।
मैंने भी अन्तर्वासना के वशीभूत हो मनीषा का चुम्बन ले लिया और काफी देर तक मनीषा को चूमता रहा। मनीषा भी मेरा साथ दे रही थी इसलिए मुझे किसी का डर नहीं था। धीरे-धीरे मैं मनीषा के वक्ष की तरफ बढ़ने लगा और उसका एक चूचा अपने हाथ और दूसरा अपने मुँह में ले लिया। मगर तभी मुझे बाहर से किसी के दरवाजा बजने की आवाज आई, मैंने इस कार्यक्रम को बीच में रोका और बाहर आ गया और बाहर आकर कपड़े पहन लिए।
जब मैंने कमरे का दरवाजा खोला तो देखा कि प्रिया भाभी बाहर खड़ी थी।
भाभी अंदर आकर बोली- दूसरा बाथरूम खाली है, वहाँ नहा लो !
मुझे भाभी के ऊपर बहुत गुस्सा आया मगर मैं कुछ कर भी नहीं सकता था।
कुछ देर के बाद लड़के वाले भी आ गए, मैं उनको नाश्ता कराने लगा।
तभी प्रिया मनीषा को बाहर लेकर आई। मनीषा ने उस वक्त लाल रंग की साड़ी पहनी थी जिसमें वो एक परी सी लग रही थी।
जब बात शुरू हुई तब मुझे पता चला कि लड़का कौन है। लड़के का नाम सुमित था जो वैसे तो बहुत अमीर था मगर दिखने में बिल्कुल पतला सा था।
उसे देखकर मुझे हंसी आने लगी क्योंकि यह तो वही बात हो रही थी "लंगूर के मुँह में अंगूर"
कुछ देर बाद लड़के वाले चले गए और शादी छः महीने बाद की तय हुई क्योंकि लड़का अभी पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहता है।
तभी वो हुआ जिसकी मुझे उम्मीद भी नहीं थी। बुआ ने मेरी मम्मी से जाने की इजाजत मांगी। मैंने भी रोकने की कोशिश की मगर बुआ ने कहा कि उनकी तबियत भी ठीक नहीं है और चित्रा भी घर में अकेली है।
यह सुन कर मेरा दिल भी टूट गया क्योंकि मेरा आगे का सारा कार्यक्रम खत्म हो रहा था।फिर बुआ और मनीषा चले गए और मैं अपने कमरे में आकर लेट गया।
कुछ दिनों तक मैं मनीषा के बारे में सोचता रहा। फ़िर मैंने पढ़ाई की तरफ ध्यान देना ठीक समझा क्योंकि मेरा लास्ट सेमेस्टर था और पेपर भी आने वाले थे। कुछ दिनों तक मैंने अपना ध्यान पढ़ाई में लगाए रखा। मेरे पेपर शुरू होने से कुछ दिन पहले ही भाभी का तबादला दिल्ली से जयपुर (राजस्थान) हो गया। भाभी के तबादले से पढ़ाई में मेरी मदद करने वाला भी कोई नहीं बचा था इसलिए मैं पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देने लगा। आख़िरकार कुछ दिनों के बाद हमारे पेपर खत्म हो गए।
हमारे कॉलेज ने किसी कारण से पहले फेयरवेल पार्टी नहीं दी थी मगर उन्होंने हमारे कहने पर एक पार्टी का आयोजन कर दिया और पूरे कॉलेज को उसमें बुलाया। पार्टी खत्म होने के बाद मैं और योगी पार्टी से निकलने लगे कि तभी हमारे कॉलेज की एक लड़की सोनम हमारे पास आई। सोनम हमारे कॉलेज की मिस फ्रेशर भी रह चुकी थी, उसमें आत्मविशवास तो कूट-कूट कर भरा था और देखने में भी बहुत सुन्दर थी।
मगर मैंने कभी उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया था क्योंकि वैसे ही मेरे आगे पीछे कॉलेज की काफी लडकियाँ घूमती थी। मैंने सोनम की तरफ इसलिए भी ध्यान नहीं दिया क्योंकि सोनम एक मुस्लिम लड़की थी और उसके तीन भाई भी थे और आप सभी लोग तो जानते ही हैं कि मुस्लिम लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ छेड़ना मतलब मौत को दावत देना !
हमारे पास आकर सोनम बोली- हमारे सारे क्लासमेट जयपुर घूमने जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं, क्या तुम दोनों भी चलोगे?
मैं कुछ बोलता, इससे पहले ही योगी ने हाँ कर दी। मैंने भी अपने दिमाग में सोचा कि भाभी भी जयपुर में हैं, उनसे भी मिल आऊँगा और क्या पता इस बार उन्हें फिर से चोदने का मौका ही मिल जाए।
आखिर वो दिन भी आ गया जब हमें जयपुर के लिए निकलना था, हमें सुबह 10 बजे मिलना था मगर सुबह 8 बजे ही सोनम का मेरे पास फोन आया, मुझे लगा शायद जयपुर के टूअर के बारे में कुछ बात होगी मगर हुआ बिलकुल उल्टा, सोनम ने मुझसे पूछा- मैं आज क्या पहनूँ?
मुझे लगा कि सोनम मजाक कर रही है इसलिए मैंने भी मजाक में ही कह दिया- तुम बुरका पहन लो उसमें ही अच्छी लगती हो।
जब मैं दस बजे कॉलेज पहुँचा तो देखा कोई लड़की बुरका पहने खड़ी थी। पास जाकर पता चला कि वो सोनम ही थी। मैं हैरान था क्योंकि जो बात मैंने मजाक में कही थी वो भी सोनम ने मान ली।
जब मैंने यह बात योगी को बताई तो योगी मेरा मजाक उड़ाने लगा और बोलने लगा- लगता है अब तो मुस्लिम भाभी आएगी !
मैं बस में बैठ गया और योगी मेरे पास बैठने के बजाए कहीं और बैठ गया। मेरे साथ वाली सीट खाली देख सोनम मेरे पास आकर बैठ गई और बात करने की कोशिश करने लगी।
आखिर उसने मुझसे वो पूछा जिसके बारे में मैंने नहीं सोचा था, उसने कहा- तुम मुझसे और बाकी मुसलमानों से नफरत क्यों करते हो?
मैंने कहा- मैं नफरत नहीं करता।
तो वो बोली- तो तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते? जबकि बाकी पूरे कॉलेज के लड़के मेरे पीछे कुत्ते बने घूमते रहते हैं, तुम्हारा दोस्त योगी भी मेरे पीछे घूमता रहता है। मैं यह सुन थोड़ा हैरान रह गया क्योंकि वैसे तो मैं और योगी एक दूसरे से कुछ नहीं छुपाते थे मगर योगी ने मुझे यह बात नहीं बताई थी। फिर हम दोनों एक दूसरे से काफी देर तक बात करते रहे, बातें करते-करते हम दोनों को ही नींद आ गई।
जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि सोनम मेरे कंधे पर सिर रख कर सो रही थी।
सोती हुई सोनम बहुत ही मासूम लग रही थी, वैसे भी मुस्लिम लडकियाँ बहुत ही मासूम लगती हैं क्योंकि ज्यादातर मुस्लिम लड़कियाँ गोरी तो होती ही हैं साथ ही उनकी आँखें बहुत ही प्यारी होती हैं।
मैं काफी देर तक सोनम को ऐसे ही देखता रहा, सोनम वैसे तो उस वक्त बुरके में ही थी मगर उसके चेहरे पर से नकाब हटा हुआ था।
लगभग शाम के 4 बजे तक हम लोग जयपुर पहुँच गए, मैं प्रिय भाभी को बिल्कुल भूल चुका था और मेरे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सोनम का वो मासूम सा चेहरे घूम रहा था।
हमने एक धर्मशाला में कमरे ले लिए क्योंकि हम कमरों के ऊपर ज्यादा पैसे खर्च नहीं करना चाहते थे। शाम को 8 बजे हम जयपुर की गलियों में घूमने निकले। वहाँ एक जगह कठपुतलियों का खेल चल रहा था। हम सभी वो देखने लगे। उस खेल में दो कठपुतलियों की शादी दिखा रहे थे। मैं वो देख ही रहा था कि सोनम ने बीच में ही मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे एक तरफ़ चलने को बोला।
जैसे ही हम अलग आये तो सोनम ने मुझे एक लाल गुलाब पकड़ाया और मुझे "आई लव यू " बोलकर मेरे गले लग गई।
मैंने भी सोनम का दिल तोड़े बिना हाँ कह दी और सोनम को शादी का भरोसा भी दिलाया। हम दोनों लगभग दो घण्टे तक अलग ही घूमते रहे और उसके बाद हम धर्मशाला में वापिस आ गए।
जैसे ही हम दोनों कमरे में पहुँचे तो मैंने देखा कि सभी दोस्त वहाँ पहले से ही खड़े थे और सभी मेरी तरफ देख कर हंस रहे थे।
मुझे कुछ भी समझ नहीं आया और जब मैंने सोनम की तरफ देखा तो वो भी हंसने लगी और बोली कि उसने बाकी सभी से शर्त लगाई थी कि वो मुझे शादी के लिए मना लेगी और मैं इतनी जल्दी मान गया।
यह सुन कर मुझे शर्म आने लगी और मैं कमरे से बाहर आ गया और रोने लगा क्योंकि आज तक कभी मुझे कोई भी लड़की शादी लायक नहीं लगी थी और जब लगी तो वो भी मजाक निकला।
तभी किसी ने मेरे नाम से पीछे से आवाज दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो सोनम खड़ी थी।
कहानी जारी रहेगी।
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