Tuesday, 30 October 2012

मासूम यौवना-15 - Masoom Yuvana 15


मासूम यौवना-15
लेखिका : कमला भट्टी

जीजाजी पेट से जांघें, पिण्डली चूमते-चूमते सीधे मेरे पैरों के पंजों के पास चले गए और उन्होंने मेरे पैर के पंजे का अंगूठा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगे।

मैं उन्हें रोकती, तब तक मेरे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी, आज मुझे पता चला कि पैर के अंगूठे या अंगुलियों को चूसने से भी स्त्री कामातुर हो सकती है।

मैं सोचती रह गई कि जीजाजी ने यह ज्ञान कहाँ से लिया होगा !

मेरे मुँह से आनन्दभरी किलकारियाँ निकल रही थी पर अपने पैरों गन्दा समझ कर मैंने उनको वहाँ से हटाना चाहा और कहा- छीः ! कोई पैरों को भी चाटता है क्या?

वे बोले- तू मेरी जान है और तेरे अंग अंग में मुझे स्वर्ग नज़र आता है। तू कहे तो मैं तेरी गाण्ड भी चाट सकता हूँ !

मैंने शरमा कर कहा- धत्त !

फिर वे पैरों को छोड़ कर मेरे मनपसंद स्थान पर आ गए, यानि कि मेरी....चूत !

और उसे चाटने लगे !

चूत वैसे भी काफी गर्म हो रही थी और वो पानी छोड़ने लगी। मैंने कहा- अब आप ऊपर आ जाओ !

वे शरारत से बोले- साफ बोलो कि मुझे क्या करना है?

मुझे पता था अब ये मेरे मुँह से बुलवाकर छोड़ेंगे इसलिए मैंने जल्दी से अपनी आँखे बंद कर के कहा- आप मुझे चोद दो !

पर वे कौन से कम थे, बोले- मैंने सुना नहीं ! जरा जोर से बोलो !

मैं जोर से उन्हें अपने ऊपर खींचते हुए बोली- मुझे चोद दो ! चो....द दो !

अब उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी, मेरी चूत पूरी ऊपर हो गई, उन्होंने अपने सुपारे पर थूक मला, अपने तने हुए लण्ड को मेरी चूत के मुँहाने पर सटाया और हल्का सा ठेला यह देखने के लिए कि सही जगह है या नहीं क्योंकि मेरी चूत के पपोटे सूज गए थे और उनमें से चूत का सुराख़ दिख नहीं रहा था ! चूत के पपोटो से उनका सुपारा टकराया तो टीस सी उठी, मैंने दर्द को सहने के लिए दांत भींच लिए, मुझे पता था एक बार यह अन्दर चला गया तो फिर नहीं दुखेगा !

सुपारे के थोड़ा अन्दर जाते ही उन्हें पता चल गया कि सही जगह ही है और फिर उन्होंने अपने तन्नाये लण्ड का जबरदस्त धक्का मेरी चूत में लगा दिया। मैं थरथरा उठी और उनका लण्ड का सुपारा सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा गया। दर्द से मेरी आह निकल गई, साथ ही मेरी आँखों के कोने से आँसू की एक बूँद भी ढलक गई।

जीजाजी को पता चला तो बोले- ज्यादा जोर से लग गया क्या?

और उनकी चोदने की गति में भी कमी आ गई !

मैं आँखों में आँसू और चेहरे पर चुदने की ख़ुशी की मुस्कराहट के साथ बोली- आप मत रुको, दर्द आएगा तभी आनन्द आएगा ! हम औरतों को जब तक दर्द नहीं होता, आनन्द भी नहीं आता, आप तो चोदते रहो, दर्द चला गया अब तो आनन्द ही आनन्द आ रहा है।

अब वे दनादन मेरी चूत में अपना लण्ड पेल रहे थे, कम्बल धीरे धीरे नीचे सरक रहा था अब मेरे स्तन निरावृत हो गए थे ! जीजाजी पूरे जोर शोर से अपने लण्ड की चोट मेरी चूत में मार रहे थे उनके मुँह से हु.. हु..ह.. की आवाज़ें आ रही थी और वो मुझे बिल्कुल निर्दयी तरीके से चोद रहे थे जो मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था।

अब उनके माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगी थी जिसे वे बार बार अपने हाथ से पोंछ रहे थे ! कमरे में ऐसी चल रहा था पर हमें कुछ गर्मी लग रही थी चुदाई के तूफान के कारण !

अब उन्होंने कम्बल बिल्कुल हटा दिया, मैं चौंक गई, मैंने कहा- प्लीज़ आप पीछे कम्बल ओढ़ लें !

जीजाजी ने कहा- पीछे सोफे पर बैठ कर कोई तेरे चूत में घुसता हुआ लण्ड थोड़े ही देख रहा है या पीछे कोई कैमरा लगा है जो कोई फिल्म बन रही है? यार, इस कमरे में सिर्फ मैं और तू हैं। अब यह ओढ़ा-ओढ़ी मत कर ! देख मुझे पसीने आ रहे हैं और कम्बल के बोझ से मेरे कूल्हे भी धीमे ऊपर नीचे हो रहे है। मुझे इसका बोझ भी लग रहा है।

मैं ठंडी साँस भर कर निरुत्तर हो गई, उन्होंने पांव से ठेल कर कम्बल को भी पलंग से नीचे गिरा दिया, अब दो ट्यूबों की रोशनी में मेरा गोरा और नंगा बदन चमक रहा था, जीजाजी सांवले हैं और उनका विशाल शरीर मेरे पूरे शरीर को ऐसे दाब रहा था जैसे कोई परी किसी दानव के नीचे पिस रही हो !

मैं यह कह रही हूँ पर मेरे जीजाजी चेहरे से कोई दानव नहीं लगते, मुझे बहुत प्यारे लगते हैं। उनके कुछ बाल जरुर उड़ गए हैं पर नाक-नक्श अच्छे हैं और कीमती और शानदार कपड़े पहन कर रईस लगते हैं।

हम दोनों आकर पलंग पर लेट गए और टीवी देखने लगे ! इस सारे प्रोग्राम में टीवी बंद नहीं हुआ था, लगातार चल रहा था, सास-बहू के सीरियल आते जा रहे थे और पलंग पर हमारी कुश्ती चल रही थी। अब मैंने रिमोट हाथ में लेकर टीवी देखना शुरू किया और ए.सी. से ठण्ड लगने का बहाना कर कम्बल से कमर तक अपने को ढक लिया था !

मैं अधलेटी सी टीवी देख रही थी और जीजाजी फिर से कम्बल में घुस गए और मेरी जांघो पर हाथ फेर रहे थे और बातें भी कर रहे थे ! उनकी बातें घूम फिर कर मोबाईल की फिल्मों पर आ रही थी कि अँगरेज़ लड़कियाँ कैसे मुखमैथुन करती हैं या गाण्ड मराती है।

मैंने उन्हें साफ बता दिया कि ये दोनों ही बातें मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। मैंने उन्हें बताया कि सिर्फ मुखमैथुन का सोच कर ही मुझे उबकाई आ जाती है। मुँह के पास लण्ड आ गया तो मैं उलटी कर दूंगी !

उन्होंने कहा- कोई बात नहीं, मुझे तुम्हें लण्ड चुसाने की जरुरत ही नहीं है।

वे फिर धीरे धीरे मेरी चूत पर अपनी अंगुली फिरा रहे थे ! तभी मुझे अपनी चूत पर झनझनाहट सी महसूस हुई ! मैंने देखा जीजाजी ने अपना नोकिया 6303 मोबाईल जो स्लिम आता है और उसमें उन्होंने वाइब्रेटर सोफ्टवेयर डाऊनलोड किया हुआ था उसे चला कर मेरी चूत के दाने के पास कर रहे थे !

मैंने कहा- यह क्या है?

तो वो बोले- तुम हिलो मत, तुम्हें मजा आएगा और मोबाईल का पतला हिस्सा मेरी चूत में डाल कर अन्दर बाहर करने लगे !

मुझे उसकी कंपकंपी अच्छी नहीं लग रही थी, मैंने कहा- मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा है। यह जो कांप रहा है, मुझे पसंद नहीं है, इससे तो अच्छा है कि आप मेरी चूत में अंगुली कर दो !

उन्हें मेरी पसंद का पता चल गया और मोबाईल के वाइब्रेटर को बंद कर एक तरफ रख दिया और मेरी चूत में दाने के पास अंगुली फिराने लगे, यह मुझे अच्छी लग रही थी।

फिर उन्होंने कुछ ज्यादा अन्दर किया मैंने कहा- हाँ.. ऐसे ही करते रहो ! मुझे चुदाई से ज्यादा मज़ा आ रहा है। पर यह आपकी अंगुली या मेरे पति की अंगुली से ही आता है। मेरी खुद की अंगुली अच्छी नहीं लगती।

फिर वे दो अंगुलियाँ डाल कर मेरी चूत में चलाने लगे, मेरे मुँह से सी....सी...की आवाज़ें निकल रही थी। थोड़ी देर में मैंने चूत में कुछ कड़ा कड़ा सा महसूस किया, मैंने देखा कि जीजाजी ने अपने चश्मे के कवर जो चाइना का आता है, गोल गोल मोटे पेन जैसा, उसे मेरी चूत में डाल दिया है और अन्दर बाहर कर रहे हैं।

मैंने कहा- ज्यादा अन्दर मत डाल देना, दुखेगा !

उन्होंने कहा- जितना तुझे सहन होगा, उतना ही डालूँगा। वैसे भी यह ज्यादा बड़ा या मोटा नहीं है।

मैं मुस्कुरा कर रह गई।

मुझे थोड़ी देर में उन्होंने उस चश्मे के कवर से स्खलित करवा दिया और जब मैं उत्तेजना में स्खलित हो रही थी तब करीब करीब आधा अन्दर तक था ! मैंने स्खलित होते ही जीजाजी का हाथ रोक दिया और उनसे लिपट गई !

जीजाजी ने लिपटे ही मेरा स्तन अपने मुँह में भर लिया, उसे चूसने लगे और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर धर दिया। उनका लण्ड फिर से तन्ना रहा था, मैंने जल्दी से हाथ हटा लिया तो जीजाजी बोले- यार चूसने को थोड़े ही कह रहा हूँ, थोड़ा लण्ड तो मसल दे, अपने पति का भी मसला होगा !

मैंने कहा- कभी-कभी मसलती थी !

और उनका मन रखने के लिए मैंने उनका लण्ड पकड़ कर दबा दिया। वे सिहर कर बोले- धीरे ! साली तोड़ेगी क्या?

मैं हंस कर धीरे धीरे उनके लण्ड की मालिश करने लगी !

उन्होंने कहा- कैसा लगा मेरा लण्ड ?

और आपको तो पता है कि मैं साफ बोल देती हूँ, मैंने कहा- छोटा है आपका !

वे थोड़ा बुझ से गए। फिर मैंने कहा- मैंने या तो आपका देखा है या मेरे पति का ! उनका आपसे लम्बा और मोटा है पर आनन्द मुझे आपसे ज्यादा आया है, ऐसा क्यों ?

मैंने जब तक नहीं देखा था तब तक मैं आपका लण्ड उनसे बड़ा महसूस कर रही थी !

तो उन्होंने कहा- चोदने की कला और आसन का ज्ञान होना चाहिए, मेरे जितना लण्ड ही बहुत है, बहुत बड़ा लण्ड हो और दो मिनट में पानी छुट जाये तो उस लण्ड का कोई मतलब नहीं है। बड़े लण्ड से अन्दर चोट भी लगती है जो बाद में दुखती है। औरत की चूत में मजा सिर्फ दो इंच तक ही रहता है इसलिए तो अंगुली से भी आनन्द आ जाता है जो लण्ड से काफी छोटी और पतली होती है। डाक्टर का कहना है कि 4 इंच के लण्ड वाला भी सही आसन का प्रयोग कर स्त्री को संतुष्ट कर सकता है।

मैं उनकी बात से सहमत थी क्यूंकि मेरे पति से छोटे और पतले लिंग से उन्होंने मुझे बहुत आनन्द दिया !

ऐसी बातें करते-करते मैं उनके लण्ड को मसल रही थी, अब लण्ड तन्ना गया था, मैं सीधी लेटी थी, वे बैठ गए और मेरी टांगे थोड़ी ऊँची कर बैठे बैठे अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया और अपनी टांगे सीधी रखी जो मेरे सर के आजू-बाजू आ गई ! अब वे सीधे बैठे बैठे अपने हाथों के बल ऊपर उठकर धक्के लगा रहे थे। मेरे लिए यह नया आसन था, उनके पैर मेरे सर के पास आगे-पीछे हो रहे थे। मैंने उनके पैरों के पंजों को चूमा !

अब उन्होंने मेरे पैरों को अपने आजू-बाजू नीचे कर दिया और मेरे कंधे पकड़ कर मुझे बैठा कर दिया था अब मैं उनकी गोद में थी आमने सामने ! उनका लण्ड मेरी चूत में हरकत कर रहा था, वे मेरे स्तनों पर चुम्बन देते-देते मुझे हिला रहे थे और खुद भी आगे-पीछे हिल कर चूत में लण्ड अन्दर-बाहर कर रहे थे। अब मुझे उन्हें कुछ नया आनन्द देने की सूझी मैंने उन्हें पीछे गिरा कर लिटा दिया और मैं उन पर सवार हो गई और जो मैंने अपनी गाण्ड पीछे कर ठाप मारी तो मैं दर्द से कराह उठी। जल्दबाजी में मैंने सीधा ठाप नहीं लगाया था कुछ तिरछा लग गया था और उनका लण्ड मेरे सूजे पपोटों और जो चूत और गाण्ड के बीच चमड़ी होती है, वहाँ टकरा गया और दर्द से मेरी जान निकल गई।

मैं थोड़ी देर हिल भी नहीं सकी। जीजाजी ने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- अपने आप ही लगा ली है मैंने !

मैं बस उनकी जांघों पर बैठी रह गई ! यह चोट मेरी गलती से नहीं लगी थी, मैंने कई बार अपने पति को ऐसे चोदा था पर उनके लण्ड और जीजाजी के लण्ड की लम्बाई के अंतर के कारण जब मैं ऊपर होकर झटके लगा रही थी तो थोड़ा छोटा होने के कारण वो चूत से पूरा निकल गया और वापिस सही जगह घुसा नहीं और मुझे चोट लग गई !

मैं उनका लण्ड डाले-डाले ही बैठी रही और जीजाजी नीचे से धक्के लगाने लगे।

थोड़ी देर में मेरा दर्द भी कम हुआ और मुझे भी मजा आने लगा तो मैं भी उनके ऊपर कूदने लगी पर सवधानी के साथ कि कहीं दुबारा चोट न लग जाये !

थोड़ी देर में मैं थक चुकी थी, मैंने कहा- आप इतनी देर कैसे चोद लेते हो? मेरी तो जांघें दुखने लगी ! अब मैं और नहीं कर सकती !

उन्होंने कहा- उतर कर मेरे पास लेट जाओ।

मैं लेट गई तो उन्होंने मुझे दूसरी तरफ घुमा दिया और मेरी गाण्ड से चिपक कर लेट गए।

मैं सोच रही थी कि पता नहीं अब ये क्या करेंगे, कहीं गाण्ड में न घुसा दें पर उन्होंने पीछे से मेरी टांग उठाई और अपने लण्ड को पकड़ कर पीछे से चूत में घुसाने लगे।

मुझे ऐसे बहुत गुदगुदी होती है इसलिए मैं एकदम आगे सरक गई और उनका लण्ड बाहर ही झूलता रह गया !

उन्होंने कहा- क्या हुआ?

मैंने कहा- धीरे धीरे डालने से ऐसे मुझे गुदगुदी होती है। झटके से डाल दो, फिर एक बार घुस गया तो फिर गुदगुदी नहीं होगी !

उन्होंने कहा- ठीक है।

फिर उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर एक टांग थोड़ी ऊँची कि और एक झटके में अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया और धीरे धीरे घस्से लगाने लगे।

जीजाजी के धक्के मंथर गति से चल रहे थे ! वे मेरी बगलों से हाथ निकाल कर मेरे मेरे स्तन भी दबा रहे थे एक हाथ उनका मेरे नंगे कंधे पर फिर रहा था और मैं अपनी चुदाई से बेखबर तिरछी होकर टीवी में सीरियल देख रही थी ! मैं सोच रही थी अभी वे छुट कर हट जायेंगे, पर मेरा अनुमान गलत था वे लगातार धक्के मार रहे थे कि मेरे मोबाईल की घंटी बज गई।

मैंने पास पड़े रिमोट से टीवी की आवाज़ कम की, जीजाजी को रुकने का इशारा किया, जीजाजी धक्के लगते रुक गए पर अपना लण्ड बाहर नहीं निकाला।

मैंने मोबाईल उठाया और देखा मीना साहब का फोन था।

जीजाजी को पता था कि वो साहब मुझ पर मरता था इसीलिए उसने यहाँ बुलाकर यह नौकरी मुझे दी थी पर आगे उसकी हिम्मत नहीं होती थी और मैं कोई लिफ्ट देती नहीं थी बस कभी कभी फोन पर बात कर लेती थी पर जब मेरा मूड होता तब ही, नहीं तो मैं फोन उठाती ही नहीं थी। उसे मेरा स्वभाव पता था और वो मेरे गुस्से को भी जानता था इसलिए बस फोन पर भी वो सामान्य बाते ही करता था और मुझे बात करनी होती तो भी मैं मिस काल ही करती थी।

अब वो मुझसे पूछ रहा था कि मैं गाँव पहुँच गई क्या?

अब उसे क्या पता कि मैं होटल में बिल्कुल नंगी होकर चुदवा रही हूँ !

मैंने कह दिया- हाँ, पहुँच गई हूँ।

और वो मेरे साथ में काम करने वालों के बारे में पूछने लगा कि वे कोई आपको परेशान तो नहीं करते हैं।

तब तक जीजाजी ने अपने लण्ड को मेरी चूत में अकड़ा कर झटके देना शुरू कर दिया। मैंने भी जबाब में अपनी चूत को संकुचन किया उनका लण्ड मेरी चूत में फंसा तो उन्हें जोश आया और वो फिर से धक्के मारने लगे। अब मुझे फोन पर बात भी करनी पड़ रही थी और पीछे धक्के भी खाने पड़ रहे थे !

अब बात करते करते मुझे अपने आहों पर भी काबू करना पड़ रहा था, शायद इसी बात का जीजाजी को जोश आ रहा था। अब उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी, मेरी सांसों की आवाज़ तेज़ होने लगी, अब मुझे बात करना अच्छा नहीं लग रहा था।

मुझे हांफता जान कर मीना साहब ने पूछा- क्या हुआ?

तो मैंने बहाना किया- रसोई में चूल्हे पर दूध चढ़ाया हुआ था, वो उफन रहा है इसलिए बाहर से भागकर चूल्हे के पास आई हूँ उसे उतारने और अब मैं फोन रखती हूँ ! बाय !

ऐसा कहकर मैंने फोन काट दिया और उसका स्विच ऑफ ही कर दिया और जीजाजी को बनावटी घुस्से से बोली- जब मैं किसी से फोन पर बात करती हूँ तो आपको ज्यादा जोश आता हैक्या?

जीजाजी ने कहा- सही बात है। तेरी दीदी जब तेरी मम्मी से रात को बात करती है तब मुझे उसे चोदने का जोश ज्यादा आ जाता है।

फिर मैंने भी उनको कहा- अब ऊपर आकर चोद लो, मुझे भी अब आनन्द आने वाला है।

तो उन्होंने मुझे पलंग की किनारे पर घोड़ी बना दिया और खुद पलंग से नीचे खड़े हो गए, एक पांव अपना नीचे रखा और एक पांव पलंग पर रख दिया मैं पूरी पलंग के ऊपर ही घोड़ी बनी हुई थी और उन्होंने अपना लण्ड का मुँह पकड़ कर मेरी चूत में उतार दिया और जबरदस्त धक्के मारने लगे मेरी चूत बिल्कुल संकरी हो गई थी और उनका लण्ड फंसता फंसता अन्दर-बाहर हो रहा था।

मैंने उनसे एक बार फ़िर पूछ लिया- आपको कोई बीमारी है क्या जो आपका पानी इतनी देर से निकलता है? या आपने को अफीम या नशे की कोई गोली खाई है?

तो जीजाजी हंस पड़े और बोले- मेरी प्रकृति ही ही ऐसी है। तेरी दीदी मुझसे 20 सालों से चुदा रही है और मैं दावा करता हूँ कि मेरे अलावा उसे कोई संतुष्ट नहीं कर सकता ! उसे भी 20-25 मिनट चुदाये और 3-4 बार उसका पानी नहीं निकले तब तक उसको शांति नहीं मिलती। मेरे इस लम्बे स्तम्भन के कारण जब मैं कई प्रेमिकाओ को चोदता था तो वे या तो कोई आने के कारण या चुदाई से थक कर मेरा पानी निकाले बिना ही भाग जाती थी। और जो हकीम जड़ी-बूटी वाले आते और कहते बाबूजी यह जड़ी ले लो, आपका लण्ड ज्यादा उठेगा और काफी देर तक स्खलन नहीं होगा तो मैं कहता कि ऐसी जड़ी-बूटी है क्या जिससे कम उठे और जल्दी पानी छुट जाये?

तो वे मेरा मुँह ताकने लग जाते थे। अब मेरा बुढ़ापा है, उठता तो कम है पर स्तम्भन तो वही है। हालाँकि मैं अपने दिमाग से काबू कर लेता हूँ कि मुझे जल्द निकलना हो तो निकाल लेता हूँ पर आज तू चुदती रह, मैं चोदता रहूँगा।

मैं निरुत्तर हो गई और थक कर अपना मुँह बिस्तर पर टिका दिया। गाण्ड उठी हुई थी और मेरी पतली कमर दोनों तरफ से जीजाजी के दोनों हाथों के अंगूठे और उसके पास वाली अंगुली मैं जकड़ी हुई थी और वो पूरे जोर से खींच खींच कर धक्के लगा रहे थे !

घोड़ी बने बने मेरे पैर भी दर्द करने लगे थे मुझे चुदते हुए करीब 20 मिनट हो गए थे। अब मैंने उन्हें छोड़ देने की गुहार लगाई !

जीजाजी भी कुछ थक गए थे और उन्हें मुझ पर भी दया आ गई थी इसलिए उन्होंने कहा- चलो अब मैं अपना पानी निकाल लेता हूँ !

ऐसा कह कर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत से निकाला और मुझे पलंग पर सीधा लिटा दिया में बुरी तरह से थक गई थी इसलिए लेटते ही मुझे काफी आराम मिला !

पर वह आराम कुछ क्षण का ही था बहुत जल्द ही मेरी टांगें जीजाजी के कंधों पर थी और उन्होंने बहुत सारा थूक लेकर मेरी सूख चुकी चूत में लगाया कुछ अपने कंडोम लगे लण्ड पर लगाया और फिर उसे थूक से चिकनी हुई चूत में पेल दिया !

अब मुझे पता था कि अब जीजाजी अपना पानी निकलने की कोशिश में हैं इसलिए मैं भी मुँह से आ....ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊ ह्ह्ह्हह धीरे हु..म्मम्म यह क्या घुस रहा है मेरी चूत में ! कोई तो मुझे बचाओ ! मज़ा आ रहा है ! ओ..ओ....ह.ह.ह्ह्ह. की मादक आवाज़ें निकाल रही थी और उनका लण्ड मेरी चूत में पिस्टन की तरह सटासट अन्दर बाहर हो रहा था।

कभी ज्यादा जोर का धक्का लग जाता तो उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी से ही टकरा जाता था। अब वास्तव में भी मुझे मज़ा आ रहा था और मैं फिर से झड़ रही थी और फिर उनके बदन ने भी झटका खाया और उनकी गति कम पड़ गई। अब वे हौले हौले धक्के लगा रहे थे। थोड़ी देर में उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाला, कंडोम के मुँह पर गांठ लगाई और पलंग के पास लगी मेज की दराज़ में डाल कर बाथरूम में चले गए पेशाब करने !

वापिस आये और नंगे ही लेट गए।

अभी तक जो लण्ड मुझे परेशान कर रहा था, अब बिल्कुल छोटा होकर लटक गया था किसी बच्चे की नूनी की तरह ! उनका बैठा लण्ड काफी छोटा था, खड़ा होने पर काफी बड़ा हो जाता है। मैंने भी बाथरूम में जाकर पेशाब किया अपनी चूत धोई, ठंडा पानी लगते ही चूत में सिरहन हो रही थी और हवा सी लग रही थी अन्दर इसलिए चूत के ऊपर मैं तौलिया फंसा कर आई जिससे मुझे कुछ आराम मिल रहा था और फिर से लेट कर हम दोनों ने कम्बल ओढ़ लिया और टीवी देखने लगे!

रात के करीब 10 बज गए थे, मुझे भी थकान के कारण नींद आ रही थी, मैंने उनसे कहा- अब मैं मैक्सी पहन लूँ क्या?

पर उन्होंने कहा- नहीं, रात भर नंगे ही सोयेंगे और रात को कभी भी मूड बन गया तो मैं तुम्हें चोदना शुरू कर दूँगा।

मैंने कहा- ओ के ठीक है। मुझे क्या फर्क पड़ेगा, आप ही थकेंगे, मुझे तो सिर्फ टांगें चौड़ी करनी हैं, कूदना तो आपको है।

और एक पुरानी कहावत और जोड़ दी- सड़क का क्या बिगड़ेगा, इस पर चलने वाले थकेंगे !

कहानी तो चलती ही रहेगी !

kamlabhati@yahoo.com

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