Wednesday, 31 October 2012

मासूम यौवना-3 - Masoom Yuvana 3


मासूम यौवना-3
लेखिका : कमला भट्टी

मासूम यौवना-2 से आगे :

फिर मेरे पति वापिस चेन्नई चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़ दी और पीहर आ गई !

जब भी मेरे बड़े जीजाजी अजमेर आते तो मुझसे हंसी मजाक करते थे, मैं मासूम थी, सोचती थी कि मैं छोटी हूँ इसलिए मेरा लाड करते हैं। वे कभी यहाँ-वहाँ हाथ भी रख देते थे तो मैं ध्यान नहीं देती थी। कभी वो मुझे अपनी बाँहों में उठा कर कर मुझे कहते थे- अब तुम्हारा वजन बढ़ गया है !

मेरे जीजाजी करीब 46-47 साल के हैं 5'10" उनकी लम्बाई है, अच्छी बॉडी है, बाल उनके कुछ उड़ गए हैं फिर भी अच्छे लगते हैं। पर मैंने कभी उनको उस नजर से नहीं देखा था मैंने उनको सिर्फ दोस्त और बड़ा बुजुर्ग ही समझा था।

इस बीच में कई बार मैं अपनी दीदी के गाँव गई। वहाँ जीजा जी मुझसे मजाक करते रहते, दीदी बड़ा ध्यान रखती, मुझे कुछ गलत लगता था नहीं।

फिर एक बार जीजा जी मेरे पीहर में आये, दीदी नहीं आई थी।

वे रात को कमरे में लेटे थे, टीवी देख रहे थे। मेरे पापा मम्मी दूसरे कमरे में सोने चले गए। मेरी मम्मी ने आवाज दी- आ जा ! सो जा !

मेरा मनपसंद कार्यक्रम आ रहा था तो मैंने कहा- आप सो जाओ, मैं बाद में आती हूँ।

जीजा जी चारपाई पर सो रहे थे, उसी चारपाई पर बैठ कर मैं टीवी देख रही थी। थोड़ी देर में जीजाजी बोले- बैठे-बैठे थक जाओगी, ले कर देख लो।

मैंने कहा- नहीं !

उन्होंने दोबारा कहा तो मैंने कहा- मुझे देखने दोगे या नहीं? नहीं तो मैं चली जाऊँगी। थोड़ी देर तो वो लेटे रहे, फ़िर वे मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने साथ लिटाने की कोशिश करने लगे।

मैंने उनके हाथ झटके और खड़ी हो गई। वो डर गए। मैंने टीवी बंद किया और माँ के पास जाकर सो गई।

सुबह चाय देने गई तो वो नज़रें चुरा रहे थे। मैंने भी मजाक समझा और इस बात को भूल गई। फिर जिंदगी पहले जैसी हो गई। फिर मैं वापिस गाँव गई, मेरे पति आये हुए थे।

अब स्कूल में तो जगह खाली नहीं थी पर मैं एम ए कर रही थी और गाँव में मेरे जितना पढ़ा-लिखा कोई और नहीं था, सरपंच जी ने मुझे आँगन बाड़ी में लगा दिया, साथ ही अस्पताल में आशा सहयोगिनी का काम भी दे दिया।

फिर एक बार तहसील मुख्यालय पर हमारे प्रशिक्षण में एक अधिकारी आये, उन्होंने मुझे शाम को मंदिर में देखा था, और मुझ पर फ़िदा हो गए।

मैंने उनको नहीं देखा !

फिर उनका एक दिन फोन आया, मैंने पूछा- कौन हो तुम?

उन्होंने कहा- मैं उपखंड अधिकारी हूँ, आपके प्रशिक्षण में आया था !

मैंने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?

उन्होंने कहा- रजिस्टर में नाम और नंबर दोनों मिल गए !

मैंने पूछा- काम बोलो !

उन्होंने कहा- ऐसे ही याद आ गई !

मैंने सोचा कैसा बेवकूक है !

खैर फिर कभी कभी उनका फोन आता रहता ! फिर मेरा बी.एड. में नंबर आ गया और मैंने वो नौकरी भी छोड़ दी। फिर उनका तबादला भी हो गया, कभी कभी फोन आता लेकिन कभी गलत बात उन्होंने नहीं की।

एक बार बी.एड. करते मैं कॉलेज की तरफ से घूमने अभ्यारण गई तब उनका फोन आया। मैंने कहा- भरतपुर घूमने आए हैं।

तो वो बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा- मैं अभी भरतपुर में ही एस डी एम लगा हुआ हूँ, मैं अभी तुमसे मिलने आ सकता हूँ क्या?

मैंने मना कर दिया, मेरे साथ काफी लड़कियाँ और टीचर थी, मैं किसी को बातें बनाने का अवसर नहीं देना चाहती थी और वो मन मसोस कर रह गए !

फिर काफ़ी समय बाद उनका फोन आया और उन्होंने कहा- आप जयपुर आ जाओ, मैं यहाँ उपनिदेशक लगा हुआ हूँ, यहाँ एन जी ओ की तरफ से सविंदा पर लगा देता हूँ, दस हज़ार रुपए महीना है।

मैंने मना कर दिया। वे बार बार कहते कि एक बार आकर देख लो, तुम्हें कुछ नहीं करना है, कभी कभी ऑफिस में आना है।

मैंने कहा- सोचूँगी !

फिर बार बार कहने पर मैंने अपनी डिग्रियों की नकल डाक से भेज दी।

फिर उनका फोन आया- आज कलेक्टर के पास इंटरव्यू है !

मैं नहीं गई।

उन्होंने कहा- मैंने तुम्हारी जगह एक टीचर को भेज दिया है, तुम्हारा नाम फ़ाइनल हो गया है, किसी को लेकर आ जाओ।

मैं मेरे पति को लेकर जयपुर गई उनके ऑफिस में ! वो बहुत खुश हुए, हमारे रहने का इंतजाम एक होटल में किया, शाम का खाना हमारे साथ खाया।

मेरे पति ने कहा- तुम यह नौकरी कर लो !

दो दिन बाद हम वापिस आ गए। साहब ने कहा था कि अपने बिस्तर वगैरह ले आना, तब तक मैं तुम्हारे लिए किराये का कमरे का इंतजाम कर लूँगा।

10-12 दिनों के बाद मेरे पति चेन्नई चले गए और मैं अपने पापा के साथ जयपुर आ गई। साहब से मिलकर में पापा ने भी नौकरी करने की सहमति दे दी।

मैं मेरे किराये के कमरे में रही, एक रिटायर आदमी के घर के अन्दर था कमरा जिसमें वो, उसके दो बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियों के साथ रहता था। मकान में 5 कमरे थे जिसमें एक मुझे दे दिया गया। बुजुर्ग व्यक्ति बिल्कुल मेरे पापा की तरह मेरा ध्यान रखते थे।

मैं वहाँ नौकरी करने लगी। कभी-कभी ऑफिस जाना और कमरे पर आराम करना, गाँव जाना तो दस दस दिन वापिस ना आना !

साहब ने कह दिया कि तनख्वाह बनने में समय लगेगा, पैसे चाहो तो उस एन जी ओ से ले लेना, मेरे दिए हुए हैं।

मैंने 2-3 बार उससे 3-3 हजार रूपये लिए। साहब सिर्फ फोन से ही बात करते, मीटिंग में कभी सामने आते तो मेरी तरफ देखते ही नहीं। फिर मेरा डर दूर हो गया कि साहब कुछ गड़बड़ करेंगे। वो बहुत डरपोक आदमी थे, वो शायद सोचते कि मैं पहल करुँगी और मेरे बारे में तो आप जानते ही हैं !

फिर मैंने कई बार जीजा जी से बात की, उन्हें उलाहना दिया कि मैं यहाँ नौकरी कर रही हूँ और आप आकर एक बार भी मिले ही नहीं।

तो जीजा आजकल, आजकल आने का कहते रहे, टालते रहे।

मैंने कहा- घूमने ही आ जाओ दीदी को लेकर !

दीदी को कहा तो दीदी ने कहा- बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं तो नहीं आ सकती, इनको भेज रही हूँ !

एक दिन जीजा ने कहा- मैं आ रहा हूँ !

मैंने उस होटल वाले को कमरा खाली रखने का कह दिया जहाँ मैं और मेरे पति साहब के कहने पर रुके थे क्यूंकि मेरा कमरा छोटा था। वो होटल वाला साहब का खास था, उसने हमसे किराया भी नहीं लिया था।

और अब भी उसने यही कहा- आपके जीजा जी से भी कोई किराया नहीं लूँगा ! उनके लिए ए.सी. रूम खाली रख दूँगा।

उसके होटल 2-3 ए.सी. रूम थे।

मैंने कहा- ठीक है !

जीजा जी आए मेरे कमरे पर, दोपहर हो रही थी, खाना मैंने बना रखा था, खाना खाकर हए एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की तरफ़ पैर करके लेट गए।

शाम हुई तो हम घूमने के लिए निकले।

मैंने कहा- साहब के पहचान वाले के होटल चलते हैं, घूमने के लिए बाइक ले लेते हैं।

उसको साहब का कहा हुआ था, उसके लिए तो मैं ही साहब थी, मेरे रिश्तेदार आएँ तो भी उसको सेवा करनी ही थी होटल में ठहराने से लेकर खाना खिलाने की भी !

हम होटल गए तो वो कही बाहर गया हुआ था ! मैंने सोचा अब क्या करें?

मैंने उसको फोन कर कहा- मुझे आपकी बाइक चाहिए !

उसने बताया कि वो शहर से दूर है, एक घंटे में आ जायेगा, हमें वहीं रुक कर नौकर से कह कर चाय नाश्ता करने को कहा।

मुझे इतना रुकना नहीं था, मैं जीजाजी को लेकर चलने लगी ही थी, तभी उस होटल वाले का जीजा अपनी बाइक लेकर आया। वो भी मुझे जानता था, उसने पूछा- क्या हुआ मैडम जी?

वहाँ सब मुझे ऐसे ही बुलाते हैं, मैंने उसे बाइक का कहा तो उसने कहा- आप मेरी ले जाओ !

मैंने जीजाजी से पूछा- यह वाली आपको चलानी आती है या नहीं? कहीं मुझे गिरा मत देना !

तो जीजाजी ने कहा- और किसी को तो नहीं गिराया पर तुम्हें जरूर गिराऊँगा !

मैं डरते डरते पीछे बैठी, जीजाजी ने गाड़ी चलाई कि आगे बकरियाँ आ गई। जीजाजी ने ब्रेक लगा दिए, बकरियों के जाने के बाद फिर गाड़ी चलाई तो मैं संतुष्ट हो गई कि जीजाजी अच्छे ड्राइवर हैं !

अब वो शहर में इधर-उधर गाड़ी घुमा रहे थे, कई बार उन्होंने ब्रेक लगाये और मैं उनसे टकराई, मेरी चूचियाँ उनकी कमर से टकराई, उन्होंने हंस कर कहा- ब्रेक लगाने में मुझे चलाने से ज्यादा आनन्द आ रहा है !

मुझे हंसी आ गई।

थोड़ी देर घूमने के बाद हम वापिस होटल गए, उसे बाइक दी और पैदल ही घूमने निकल गए।

मैंने जीजाजी को कहा- अब खाना खाने होटल चलें?

उन्होंने कहा- नहीं, कमरे पर चलते हैं। आज तो तुम बना कर खाना खिलाओ !

मैंने कहा- ठीक है !

हम वापिस कमरे पर आ गए, मेरा पैदल चलने से पेट थोड़ा दुःख रहा था ! मैंने खाना बनाया, थोड़ी गर्मी थी, हम खाना खा रहे थे कि मेरी माँ का फोन आ गया।

उसे पता था जीजाजी वहाँ आये हुए हैं।

उन्होंने जीजाजी को पूछा- आप क्या कर रहे हो?

तो उन्होंने कहा- कमरे पर खाना खा रहा हूँ, अब होटल जाऊँगा।

फिर माँ ने कहा- ठीक है !

पर जीजा जी ने मुझसे कहा- मैं होटल नहीं जाऊँगा !

मैंने कहा- कोई बात नहीं ! यहीं सो जाना !

मैं कई बार उनके साथ सोई थी, हालाँकि पहले हर बार हमारे साथ जीजी या और कोई था पर आज हम अकेले थे पर मुझे कोई डर नहीं था।

हम खाना खाने के बाद छत पर चले गए। कमरे में मच्छर हो गए थे इसलिए पंखा चला दिया और लाईट बंद कर दी।

हम छत पर आ गए तो मैंने उन्हें कहा- यहाँ छत पर सो जाते हैं।

उन्होंने कहा- नहीं, यहाँ ज्यादा मच्छर काटेंगे।

मैंने कहा- ठीक है, कमरे में ही सोयेंगे।

फिर मेरे पेट में दर्द उठा तो जीजा जी ने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- पता नहीं क्यों आज पेट दुःख रहा है।

जीजाजी ने पूछा- कही पीरियड तो नहीं आने वाले हैं?

मैं शरमा गई, मैंने कहा- नहीं !

उन्होंने कहा- दर्द की गोली ले ली।

वो मुझे एक दर्द की गोली देने लगे, मैंने ना कर दिया, वो झल्ला कर बोले- नींद की गोली नहीं है, दर्द की है।

फिर मैंने गोली ले ली !

फिर हम लेट गए, दोपहर की तरह आड़े और दूर दूर ! कमरे का दरवाज़ा खुला था।

हम बातें करने लगे। जीजा जी ने लुंगी लगा रखी थी, मैंने मैक्सी पहन रखी थी। मैं लेटी लेटी बातें कर रही थी और जीजा जी हाँ हूँ में जबाब दे रहे थे।

मेरी बात करते हाथ हिलाने की आदत है, मेरे हाथ कई बार उनके हाथ के लगे, उन्होंने अपने हाथ पीछे कर लिए और कहा- अब सो जाओ, नींद आ रही है।

रात के ग्यारह बज गए थे, जीजाजी को नींद आ गई थी, मैं भी सोने की कोशिश करने लगी और मुझे भी नींद आ गई !

रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।

मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !

मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई...

कहानी जारी रहेगी।

kamlabhati@yahoo.com

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