Monday, 29 October 2012

जागी सी सोई सोई !-2 - Jagi Si Soyi Soyi 2


जागी सी सोई सोई !-2
प्रेषक : गुल्लू जोशी

मुझे ही बहुत ही आसक्ति से देख रही थी।

"भाभी … !"

"आह, … श … श्…" भाभी ने मेरे मुख पर अपनी अंगुली रख दी और चुप रहने का इशारा किया। उनकी कमर नीचे से तेजी से उछल रही थी, लण्ड को पूरा पूरा निगल रही थी।

भाभी का तमतमाया चेहरा जैसे कोई काम की देवी की तरह लग रहा था। हम दोनों की गति तेज हो गई थी।

… और अन्त समय आ गया था… कमरे में तेज चीखें उभरने लगी थी, भाभी तेज आवाज में सीत्कारें भर रही थी। मैं भी सुख में भरा जोर जोर से आहें भर रहा था।

और अह्ह्ह्ह्ह्ह … मेरे जिस्म ने जवाब दे दिया। साथ भाभी ने भी मुझे जोर से कस लिया। मेरा वीर्य भाभी की चूत में ही निकल पड़ा। हम दोनों एक दूसरे से चिपट कर लेट गये। तेज सांसों को नियंत्रण में करने में लगे थे।

हमारी नींद जाने कब लग गई, यह तो सवेरा होने पर ही पता चला।

सवेरे भाभी बड़ी चपलता से सारे काम निपटा रही थी। उनके चेहरे पर आज गजब की चमक थी। वो मुझे बार बार मुस्करा कर देख रही थी। वो आज बहुत खुश थी। अपनी खुशी उन्होंने मुझे मेरा मन पसन्द भोजन बना कर जताई। सब कुछ निपटा कर दोपहर में भाभी ने मुझे मेरे बिस्तर पर ही फिर से दबा लिया, मेरे गुप्त अंगों से खेलने लगी, बार बार मुझे प्यार करती रही।

"गुल्लू, तू तो बहुत अच्छा है, अब तो बस यहीं रह जा !"

"भाभी, भैया को मालूम हो गया तो?"

"तू भी मत बताना और मैं भी नहीं बताऊँगी ! बस, फिर कैसे पता चलेगा?"

"भाभी, रात को आपको चलने की आदत है?"

"नहीं तो, पर हाँ कई बार मैं अपने आप को अपने बिस्तर पर नहीं पाती हूँ, पर कल तो मैं जान कर के तेरे पास आई थी !"

"अरे ! क्यूँ भाभी?"

"क्योंकि, परसों मेरी नींद तेरे बिस्तर पर ही खुल गई थी, जब मैं जाने कैसे तेरे ऊपर चढ़ गई थी।"

"ओह ! तो फिर?"

"फिर क्या, मुझे पता चला कि तू तो मस्त हो रहा है, बस मैंने सोच लिया कि तू तो गया अब !" भाभी हंस पड़ी।

"धत्त, भाभी, मेरे लण्ड को चूत से रगड़ोगी तो मस्ती आयेगी ही ना?"

"तो आज मस्त से चुद ली … और क्या? अब तू कुछ और भी करेगा मेरे साथ या नहीं?"

मैंने भाभी को प्यार से चूमते हुए उनके एक स्तनाग्र को अपने मुख में भर लिया और चूसने लगा। बस भाभी ने तो जैसे हाय तौबा मचा कर मस्ती ही ला दी। फिर नीचे सरकता हुआ भाभी की चूत को पूरा ही चूस डाला, दाना भी हौले हौले जीभ से खूब कुचला। इसी बीच वो झड़ भी गई। अब भाभी ने मेरे मुख का चूम कर स्वाद लिया और मेरे तने हुये लण्ड को अपने मुख श्री में प्रवेश कर के उसे चूसने लगी।

नरम नरम सा मुख, गीला गीला सा कोमल स्पर्श, फिर पुच पुच की आवाजें माहौल को गर्म करने लगी थी।

मुझे अचानक जाने क्या सूझा, मैंने झट से क्रीम उठाई और भाभी को उल्टी करके उनकी गाण्ड में भर दी।

वो सिसकरी भरने लगी, उनकी गाण्ड का छेद लप लप करता हुआ ढीला पड़ने लगा।

मैंने झट से अपने को व्यवस्थित किया और अपने सख्त लण्ड को भाभी की गाण्ड के छेद से लगा दिया।

मैंने सधा हुआ जोर लगाया।

पहले तो मुश्किल आई पर भाभी ने मेरा साथ दिया और लण्ड उस तंग छेद में प्रवेश कर गया। इतना कसा हुआ, लगा मेरा सुपाड़ा पिचक कर टूट जायेगा। पर एक तेज मजा आया, मैंने कोशिश की और थोड़ा और अन्दर सरका दिया।

आह्ह्ह, एक बार अन्दर गया तो फ़ंसता हुआ अन्दर उतरता ही गया।

तेज मीठा सा, मस्ती भरा रंग चढ़ने लगा। गाण्ड में इतना मजा आता है, इतनी मस्ती आती है, यह तो आज ही पता चला।

भाभी के गाण्ड का छेद काला और चमकीला घिसा हुआ सा था। यानि भाभी गाण्ड मराने की शौकीन भी थी। भाभी पीछे मुड़ मुड़ कर मुझे आह भरती हुई देख रही थी। मेरी मस्ती के अहसास से वो भी

मस्त होने लगी।

कसे छिद्र का कमाल था कि मस्ती तेज होने लगी।

भाभी चूत भी रस से भर गई। प्रेम की बूंदे उसमें से रिसने लगी।

भाभी ने अपनी चूत की तरफ़ इशारा किया तो मुझे उसकी बात माननी ही पड़ी। उन्होंने धीरे से अपने चूतड़ ऊपर उठा लिये और गाण्ड को ऊपर कर लिया। उनकी गुलाबी चूत सामने से खिली हुई नजर आने लगी थी।

मैंने अपना लण्ड उसकी चूत में डाल दिया। प्यासी चूत को लण्ड मिल गया। भाभी चिहुंक उठी।

लण्ड सर सर करता हुआ, पूरा ही अन्दर बैठ गया। भाभी किलकारियाँ मार कर अपने आनन्द का परिचय दे रही थी। कसी हुई गाण्ड से निकला हुआ लण्ड उसकी मुलायम चूत में बड़ी सरलता से आ-जा रहा था।

भाभी ने खुशी की एक चीख मारी और झड़ने लगी।

मैंने भी अपना कड़कता लण्ड बाहर निकाल लिया।

भाभी ने कहा,"बड़ा दम वाला लण्ड है रे … अभी तक देखो कैसे इठला रहा है?"

उसने प्यार से अपने मुठ में उसे भरा और दबा कर जो मुठ मारी कि बस हाय रे …

मैं तो ये गया … सामने पहरेदार था, यानि भाभी का मुख ! उन्होंने अपना मुख खोल लिया था। मेरे सुपारे को मुख में लिया और दण्ड को फिर जो रगड़ा कि मेरा वीर्य सर्रर्ररर से छूट गया।

जोश में मेरा लण्ड उनके गले तक जा फ़ंसा था।

उसके पास कोई मौका नहीं था। निकला हुआ वीर्य बिना किसी दुविधा के सीधे गले में उतरता चला गया। फिर बचा खुचा वीर्य उसने गाय का थन दुहने की तरह खींच-खींच कर मेरा सारा माल निकाल लिया और पी गई।

मेरे और भाभी के मध्य एक मधुर अलौकिक सम्बंध स्थापित हो चुका था। भैया भी बहुत खुश थे कि भाभी मेरे साथ बहुत खुश रहती थी। अब वे बेहिचक अपनी व्यापारिक यात्राओं पर खुशी खुशी जाया करते थे इस बात से बेखबर कि भाभी की घर में जबरदस्त चुद रही है।

भाभी भी उन्हें बेहिचक बाहर जाने को कह देती थी। घर में चुदाई का आलम यह था कि भाभी और मैं, भैया की अनुपस्थिति में साथ-साथ ही सोते थे। रात को क्या, दिन को भी चुदाई में लीन रहते थे।

अब भाभी सन्तुष्ट रहती थी, उनके नींद में चलने की आदत भी नहीं रही थी। रात को चुदने बाद वो मस्ती से गहरी निद्रा में लीन हो जाती थी।

गुल्लू जोशी

ggullujoshi@gmail.com

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